Eid 2019 : बकरीद पर जानें कैसा होना चाहिए कुर्बानी का जानवर
ईद के दिन कुर्बानी का जानवर कैसा होना चाहिए, यह बात कई इस्लामिक किताबों में बताई गई है, ईद -उल-जुहा पर मेढा जाति की कुर्बानी को सबसे अच्छा माना गया है।;
Eid 2019 ईद पर कुर्बानी का जानवर कैसा होना चाहिए। ईद को मुस्लिम धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। ईद इस साल 2019 में 12 अगस्त 2019 के दिन मनाई जाएगी। ईद को ईद -उल-जुहा और बकरीद के नाम से भी जाना जाता है। ईद-उल-अजहा (बकरीद) का त्योहार ईद-उल-फित्र के लगभग दो महीने के बाद मनाई जाती है। ईद-उल-फित्र को मीठी ईद के नाम से भी जाना जाता है। ईद उल अजहा की नामज पढ़ी जाती है। जिसके बाद ही कुर्बानी दी जाती है। तो आइए जानते हैं। ईद पर कैसा होना चाहिए कुर्बानी का जानवर
कैसा होना चाहिए कुर्बानी का जानवर (Kaisa Hona Cahiya Kurbani Ka Jaanwar)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया अच्छे जानवर कुरबानी करो क़यामत के दिन यह तुम्हारी सवारियां होंगे। एक रिवायत है कि हज़रत अली ने आयत जिस दिन परहेज़गार लोग रहमान वफ्द बन कर उठाये जायेंगे, तिलावत फरमाई (और फ़रमाया वह गरोह जो अपनी कौम या हुकूमत की नुमाएंदगी करता है आला किस्म के ऊंटों पर सवार हो कर आता है) पुल सिरात से गुज़रने के लिए उनकी सवारियां (ऊंटनियां) यही कुर्बानी के जानवर होंगे, फिर उनको ऐसी ऊटनियां अल्लाह तआला मरहमत फ़रमायेगा कि ऐसी किसी मख़लूक ने नही देखी होंगी, उनके कुजावे सोने के और उनकी मुहारे ज़मुर्रद की होंगी यह ऊंटनियां उनको जन्नत तक ले जायेंगी, इतने करीब पहुंचा देगी कि वह जाकर जन्नत का दरवाज़ा खटखटायेंगे।
एक रिवायत है कि हुजूरे अकदस सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि कुर्बानियां बतीबे ख़ातिर किया करो क्योंकि जो शख़्स अपनी कुर्बानी ( कुरबानी के जानवर से मुराद है) को पकड़ कर उसका रुख़ किब्ला की तरफ़ करता है तो कुरबानी के बाल उसका खून उसके लिए कयामत के दिन के लिए महफूज़ रखा जाता है। वजह यह है कि जो ख़ून मिट्टा पर गिरता है वह अल्लाह तआला की निगरानी व निगहदाश्त में रहता है, तुम थोड़ा ख़र्च करोगे तो जब भी तुम को अज्र ज़्यादा दिया जायेगा।
रिवायत है कि रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने सियाही माएल बड़े बड़े सींगो वाले दो दूंबे तलब फरमाये फिर एक को लिटाकर बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहिम, बिस्मिल्लाह वल्लाहु अकबर, इलाही यह (दुंबा) मोहम्मद और अहले बैते मोहम्मद की तरफ़ से है फिर दूसरे को लिटाकर आप ने पढ़ा बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहिम,बिस्मिल्लाह वल्लाहु अकबर अल्लाहुम्मा हाजा अन मोहम्मदिवं व अन उम्मतेही इलाही यह (कुरबानी) मोहम्मद और उम्मते मोहम्मद की तरफ से है।
हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने कुरबानी के दिन कुरबानी फरमाई। शैख़ हिबतुल्लाह ने बिल असनाद हजरत आइशा सिद्दीका से रिवायत की है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जो शख्स कुर्बानी के दिन अपनी कुर्बानी के जानवर के नज़दीक उसको ज़िबह करने के इरादे से पहुंचाता है तो अल्लाह तआला उसको जन्नत के नज़दीक कर देता है और जब वह उसको ज़िबह कर देता है तो उसके ख़ून का पहला क़तरा ज़मीन पर गिरते ही अल्लाह तआला उसको बख़्श देता है और उस ज़बीहा को कयामत के लिए उसके वासते ( पुल सिरात ऊबूर के लिए) सवारी बना देता है
ताकि उस पर सवार होकर जाए। उसके हर बाल और ऊन के गिनती के मुताबिक यानी हर बाल के एवज में उसको नेकियां दी जाएगी। हज़रत अनस बिन मलिक से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने सियाही माएल रंग के सींगों वाले दो मेंढ़ों की कुर्बानी ज़िबह करते वक़्त उसकी गरदन पर अपना पाए मुबारक उसके मुंह के रूख़ पर रखा और बिस्समिल्लाह पढ़ी। हजरत अबू उबैदा फ़रमाते हैं कि अमलह वह मेंढ़ा होता है। जिसमे सियाही और सफ़ेदी की आमेज़िश हो मगर सियाही का ग़लबा हो।
हज़रत आइशा फ़रमाती है कि हुजूर के हुक्म से सीगों वाला एक मेढ़ा लाया गया जो सिपाही में चलात सियाही में देखता और सियाही में बैठता था यानी उसके पांव, मुंह और उसके पहलू सियाह रंग के थे। आप ने उस मेढ़े की कुर्बानी की और उस को लिटा कर ज़िबह किया और फ़रमाया बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहिम, इलाही! इस को मोहम्मद, आले मोहम्मद और उम्मते मोहम्मद की तरफ़ से कबूल फ़रमा। अहले हदीस ने इस हदीस से तशरीह की है कि मेंढा गोश्त और चर्बी की ज़्यादती की वजह से अपने साया में चलता, अपने साया में देखता और अपने साया में बैठता था। अहले लुग़त ने इसके मानी बयान किए हैं कि वह है जो सियाह हाथ पांव, सियाह आंखों और सियाह पहलूओं वाला हो।
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