मित्रता दिवस 2019 : भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की कहानी

श्री कृष्ण (Shri Krishna) और सुदामा (Sudama) की दोस्ती पूरे संसार में प्रसिद्ध है, भगवान श्री कृष्ण ने अपने दोस्त सुदामा की लाज रखते हुए न केवल उससे मिलने आए थे, बल्कि उसे गले लगाकर अपना मित्र भी माना था।;

Update: 2019-07-22 10:14 GMT

Friendship Day 2019 प्रत्येक साल अगस्त महिने के रविवार के दिन दोस्ती का दिन यानी फ्रेंडशिप डे मनाया जाता है। दोस्ती की सबसे बड़ी मिशाल के तौर पर आज भी भगवान श्री कृष्ण और सुदामा को जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने एक राजा होने के बाद भी अपना मित्र धर्म निभाया और सुदामा को अपने बराबर का स्थान दिया। फ्रेंडशिप डे इस साल 2019 (Friendship Day 2019) में 4 अगस्त 2019 (4 August 2019) के दिन मनाया जाएगा। भगवान श्री कृष्ण और सुदामा से सीख लेकर हमें भी अपने दोस्त की हर परिस्थिति में उसका साथ देना चाहिए और कभी भी उसका साथ नहीं छोड़ना चाहिए। तो चलिए जानते हैं फ्रेंडशिप डे पर श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की कथा के बारे में...


भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की कथा (Bhagwan Shri Krishna Or Sudama Ki Katha)

भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की कई कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन इन्हीं कथाओं में से एक कथा यह है कि जब भगवान श्री कृष्ण सुदामा से कई सालों के बाद मिलते हैं। यह कथा द्वापर युग की है। भगवान श्री कृष्ण उस समय अपनी नगरी द्वारका में राज कर रहे थे और सुदामा एक गरीब ब्राह्मण का जीवन व्यतीत कर रहा था। सुदामा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ भिक्षा मांगकर जीवन व्यतीत कर रहा था और हमेशा भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में लगा रहता था।

एक बार सुदामा की पत्नी ने अपने पति को भगवान श्री कृष्ण से मिलकर आने को कहा। लेकिन सुदामा ने इनकार कर दिया। क्योंकि सुदामा के पार भगवान श्री कृष्ण को देने के लिए भेंट नही थी। सुदामा की पत्नी यह जानती थी। इसलिए वह पड़ोस में से थोड़े से चावल बांधकर अपने घर लाई और अपने पति को दे दिए और कहा कि आप यह लेकर जाएं और इसे भगवान श्री कृष्ण को भेट कर दें।

सुदामा उस चावल की पोटली को लेकर द्वारका की और चल दिया जब वह भगवान श्री कृष्ण के महल पहुचां तो उसने लोगों से भगवान श्री कृष्ण के महल का रास्ता पूछा लोगों ने जब उसका परिचय पूछा तो उसने बताया की वह भगवान श्री कृष्ण का मित्र है। सुदामा की यह बात सुनकर लोग उस पर हंसने लगे। लोग सुदामा को पागल समझने लगे। क्योंकि वह अत्याधिक गरीब था। उसके पैरों में न तो चप्पल थी और न हीं तन पर जामा उसकी धोती भी फटी हुई थी।


वह जैसे - तैसे भगवान श्री कृष्ण के महल तक पहुंचा। महल के द्वार पर पहुंचते ही द्वारपालों ने उसके बारे में पूछा। सुदामा ने द्वारपालों को बताया की वह भगवान श्री कृष्ण का मित्र है और वह भगवान श्री कृष्ण से मिलना चाहता है। सुदामा की यह बात सुनकर एक बार फिर से उसे तिरस्कार का सामना करना पड़ा।

द्वारपाल भी उसे पागल कहकर संबोधित करने लगे। सुदामा ने द्वारपालो से भगवान श्री कृष्ण से मिलने की आज्ञा मांगी और अपना संदेश श्री कृष्ण को देने के लिए कहा। सुदामा का संदेश लेकर द्वारपाल भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंचा और उसे सारा किस्सा सुनाया।

जब भगवान को यह पता चला कि सुदामा उनसे मिलने आया है तो श्री कृष्ण बिना मुकुट और नगें पैरों सुदामा से मिलने पहुचें। लेकिन सुदामा को लगा की वह गरीब है और भगवान श्री कृष्ण बहुत अमीर। भगवान अब उन्हें अपना मित्र क्यों मानेंगे। श्री कृष्ण अगर उन्हें अपना मित्र मानेंगे तो उन्हें तिरस्कार का सामना करना पड़ेगा। यह सब बातें मन में सोचकर वह वहां से चल दिया। लेकिन भगवान श्री कृष्ण सुदामा से मिलने के लिए अत्यंत व्याकुल थे।

इसलिए वह सुदामा को ढुंढते हुए। द्वारका नगरी में इधर से उधर घुमने लगे और जैसे ही सुदामा मिले तो भगवान ने उन्हें अपने गले से लगा लिया। भगवान श्री कृष्ण ने अपने मित्र से मिले बिना ही जाने का कारण पूछा तो सुदामा ने उन्हें सारी बात बता दी। तब भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा से कहा कि तुम आज भी मेरे लिए मेरे वही मित्र हो जो सालों पहले हुआ करते थे।  

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