Holi 2020 Date And Time : होली 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा

Holi 2020 Date And Time होली के त्योहार (Holi Festival) के दिन लोग पवित्र अग्नि में अपने अहंकार और बुराईयों को जलाकर राख कर देते हैं, क्योंकि होली के त्योहार (Holi Festival) पर भी अच्छाई की ही जीत हुई थी, जिसे लोग रंग खेलकर हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं,तो आइए जानते हैं होली 2020 में कब है (Holi 2020 Mai Kab Hai), होली का शुभ मुहूर्त (Holi Ka Subh Muhaurat), होली का महत्व (Holi Ka Mahatva), होली की पूजा विधि (Holi 2020 Puja Vidhi) और होली की कथा (Holi Story);

Update: 2020-01-02 04:50 GMT

Holi 2020 Date And Time होली का त्योहार रंगो का त्योहार कहलाता है। इस दिन लोग एक- दूसरे को रंग लगाते हैं। होली (Holi) पर रंग खेलने से एक दिन पहले होलिका दहन (Holika Dahan) किया जाता है। जिसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। मथुरा में तो होली एक सप्ताह पहले से शुरु हो जाती है। यहां की होली देशभर में लोकप्रिय है। मथुरा की होली (Mathura Ki Holi) को देखने के लिए लोग देश से नहीं बल्कि विदेशों से भी आते हैं। इसके अलावा बरसाना में लट्ठमार होली भी खेली जाती है। जो लोगों के बीच में काफी लोकप्रिय भी है तो आइए जानते हैं होली 2020 में कब है, होली का शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा


होली 2020 तिथि (Holi 2020 Tithi)

9 मार्च 2020

होली 2020 शुभ मुहूर्त (Holi 2020 Subh Muhurat)

होलिका दहन मुहूर्त- शाम 6 बजकर 22 मिनट से रात 8 बजकर 49 मिनट तक 18:22 से 20:49

भद्रा पूंछ- सुबह 9 बजकर 37 मिनट से 10 बजकर 38 मिनट तक

भद्रा मुख- 10 बजकर 38 मिनट से दोपहर 12 बजकर 19 मिनट तक

पूर्णिमा तिथि आरंभ- सुबह 3 बजकर 3 मिनट से (9 मार्च 2020)

पूर्णिमा तिथि समाप्त- रात 11 बजकर 16 मिनट तक (9 मार्च 2020)


होली का महत्व (Holi Ka Mahatva)

होली का त्योहार फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की चतुदर्शी के दिन मनाया जाता है। होली का त्योहार भी बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन होलिका दहन किया जाता है और इसके अगले दिन रंग खेले जाते हैं। जिसे रंगावली या घुलंडी के नाम से भी जाना जाता है। लोग होलिका की अग्नि में अपने अहंकार, बुराईयों आदि सबको जला देते हैं और रंग लगाकर एक दूसरे को होली की शुभकामनाएं देते हैं। होला का त्योहार बड़े ही हर्ष के साथ मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था। वह भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्वाद को लेकर अग्नि में बैठ गई थी। लेकिन प्रह्वाद को कुछ भी नही हुआ और स्वंय होलिका ही उस अग्नि में भस्म हो गई।


होली की पूजा विधि (Holi Ki Puja Vidhi)

1. होलिका पूजन शाम के समय किया जाता है। इसके लिए आप पूर्व या उत्तर की तरफ अपना मुख करके बैठें।

2. इसके बाद अपने आस -पास पानी की कुछ बूंदे छिड़कें। ऐसा करने से आपके पास की सभी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है।

3. इसके बाद गोबर से होलिका बनाएं या फिर सार्वजनिक जगह पर जाकर जहां होलिका बनी हो वहां जाकर पूजन करें। होलिका पूजन से पहले गणेश जी का पूजन अवश्य करें

4. पूजन के लिए एक थाली में रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबुत हल्दी, बताशे, फल और एक लोटा पानी अवश्य लें।

5.इसके बाद नरसिहं भगवान का स्मरण करें होलिका पर रोली , चावल,फूल,बताशे अर्पित करें और मौली को होलिका के चारों और लपेटें।

6.इसके बाद होलिका पर प्रह्वाद का नाम लेकर फूल चढ़ाएं। नरसिहं भगवान का नाम लेते हुए पांच अनाज चढ़ाएं।

7.इसके बाद अपना नाम लेकर अपना नाम, पिता का नाम और गोत्र का नाम लेते हुए चावल चढ़ाएं।

8. अंत में होलिका दहन करें और उसकी परिक्रमा करें और हाथ जोड़कर नमन करें।

9. होलिका दहन की अग्नि में गुलाल डालें और अपने बड़ों के पैरों में गुलाल लगाकर उनका आर्शीवाद लें।

10. होलिका दहन के दिन बालें बुझने का भी रिवाज है। इस दिन बाले बुझकर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों शुभकामनाएं दें।


होली की कथा (Holi Ki Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार असुर राज हिरण्यकश्यप का बेटा प्रह्नाद एक परम विष्णु भक्त था। प्रह्लाद का पिता उससे इसी बात से नफरत करता था और प्रह्लाद की हत्या करना चाहता था। उसने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयत्न किए लेकिन वह प्रह्लाद को मार नहीं सका। इसके लिए उसने अपनी बहन होलिका की भी मदद ली। असुर राज हिरण्यकश्यण ने ब्रह्मदेव की घोर तपस्या करके अमर होने का वरदान प्राप्त कर लिया था। उसने यह वर मांगा थी की उसे जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य, रात, दिन, पृथ्वी, आकाश, घर, या बाहर मार न सके।

इसी कारण से उसमें अत्याधिक अहंकार आ गया था और वह चाहता था कि धरती पर सिर्फ उसी की ही पूजा हो। लेकिन प्रह्लाद हमेशा भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। उसने कई बार प्रह्लाद को विष्णु भक्ति न करने को कहा लेकिन प्रह्लाद ने उसकी एक न मानी। उसने कई असुरों द्वारा प्रह्लाद को मारने का प्रयत्न किया लेकिन वह हर बार ही असफल रहा। जिससे वह परेशान रहने लगा। जब उसकी बहन होलिका ने उसकी परेशानी का कारण पूछा तो उसने अपनी बहन को सारी बात बता दी।

होलिका ने अपने भाई से कहा कि वह चिंतित न हो क्योंकि उसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका ने अपने इसी वरदान का फायदा उठाया और प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई लेकिन होलिका का यह वरदान उसके कोई काम न आ सका क्योंकि होलिका उस अग्नि से स्वंय ही जलकर भस्म हो गई। इस प्रकार से उस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई और तब ही से होली का पर्व मनाया जाने लगा। 


होली पर होलिका की नहीं बल्कि इनकी की जाती है पूजा (Holi Per Holika ki Nahi Balki Inki Ki Jati Hai Puja)

होलिका दहन के दिन होलिकी की पूजा की जाती है। लेकिन शास्त्रों की मानें तो वह पूजा होलिका की नहीं बल्कि अग्नि देव की जाती है। क्योंकि अग्नि देव ने ही प्रहलाद को अग्नि से जलने नहीं दिया था। इसी कारण से होली से एक दिन पहले होलिका के रूप में अग्नि देव की पूजा की जाती है और उनसे आशीर्वाद मांगा जाता है कि जिस प्रकार अग्नि देव ने प्रह्लाद की रक्षा की थी उसी प्रकार से वह हमारी और हमारे परिवार की भी रक्षा करें।


होली पर रंगों का महत्व (Holi Per Rango Ka Mahatva)

होली को रंगों का त्योहार भी कहा जाता है। यह त्योहार दो दिन मनाया जाता है। होली के पहले दिन होलिका दहन किया जाता है। इसके अगले दिन रंगो से होली खेली जाती है। जिसे धुलंडी या धुल के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन सभी प्रकार के द्वेष को भूलाकर एक- दूसरे को गले लगाकर रंग लगाने का होता है और लोग मिलकर गुंजिया और मिठाईयां खाते हैं।रंगों का जीवन में अधिक महत्व होता है। यह सभी रंग जीवन के महत्वपूर्ण अंगों को दर्शाते हैं। जो होली के त्योहार पर रंगों के द्वारा देखा जाता है।


क्यों नहीं जलाई जाती भद्रा काल में होली (Kyu Nahi Jalayi Jati Bhdra Kaal Mai Holi)

शास्त्रों के अनुसार भद्र का समय अशुभ माना जाता है। जिसमें कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता। वहीं शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि भद्रा का स्वाभाव काफी उग्र है। इसी वजह से कोई भी शुभ काम करना भद्रा काल में वर्जित होता है। वहीं एक कथा के अनुसार भद्रा काल के समय ही भगवान शिव ने तांडव किया था और जब भगवान शिव तांडव करते हैं तब वह रोद्र रूप में होते हैं। इसी कारण से भद्रा काल में होलिका दहन नहीं किया जाता।

जानिए क्या है होलाष्टक (Kya Hai Holashtak)

हिंदू शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन से आठ दिन पहले ही होलाष्टक माना जाता है। जिसमें कोई भी शुभ कार्य जैसे गृह प्रवेश,विवाह, मुंडन, सगाई, नया कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य बिल्कुल भी नहीं किया जाता। शास्त्रों के अनुसार इस समय से होली का प्रारंभ हो जाता है। जिसमें कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य करने का कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। इसके साथ ही यदि इस समय में कोई भी शुभ कार्य किए जाए तो उसका अशुभ फल ही प्राप्त होता है।


होली के मंत्र (Holi Ka Mantra)

1.अहकूटा भयत्रस्तै:कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम:

2.गुरु गृह पढ़न गए रघुराई अल्पकाल विद्या सब पाई

3.ऊं नमों नग्न चीटी महावीर हूं पूरों तोरी आशा तूं पूरो मोरी आशा

4.ॐ नमो भगवते रुद्राय मृतार्क मध्ये संस्थिताय मम शरीरं अमृतं कुरु कुरु स्वाहा


नरसिंह भगवान की आरती (Narsingh Bhagwan Ki Aarti)

आरती कीजै नरसिंह कुँवर की।

वेद विमल यश गाऊँ मेरे प्रभुजी॥

पहली आरती प्रह्लाद उबारे,

हिरणाकुश नख उदर विदारे।

दूसरी आरती वामन सेवा,

बलि के द्वार पधारे हरि देवा।

आरती कीजै नरसिंह कुँवर की।

तीसरी आरती ब्रह्म पधारे,

सहसबाहु के भुजा उखारे।

चौथी आरती असुर संहारे,

भक्त विभीषण लंक पधारे।

आरती कीजै नरसिंह कुँवर की।

पाँचवीं आरती कंस पछारे,

गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले।

तुलसी को पत्र कण्ठ मणि हीरा,

हरषि-निरखि गावें दास कबीरा।

आरती कीजै नरसिंह कुँवर की।

वेद विमल यश गाऊँ मेरे प्रभुजी॥

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