Mangla Gauri Vart 2019 : मंगला गौरी व्रत शुभ मुहूर्त, महत्व, व्रत विधि, आरती, मंत्र और कथा

Mangla Gauri Vart मंगला गौरी का व्रत सावन के पहले सोमवार के अगले दिन यानी मंगलवार को सुहागने स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं विवाह सुख के लिए रखती हैं, लेकिन मंगला गौरी व्रत शुभ मुहूर्त, मंगला गौरी व्रत का महत्व, मंगला गौरी व्रत की पूजा विधि, मंगला गौरी आरती, मंगला गौरी मंत्र और मंगला गौरी व्रत कथा जानना आपके लिए बेहद आवश्यक है।;

Update: 2019-07-22 07:18 GMT

Mangla Gauri Vart 2019 मंगला गौरी व्रत शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा जानने से आप इस व्रत का पूरा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। मंगला गौरी व्रत में माता पार्वती (Mata Parvati) की पूजा की जाती है। इस व्रत को अगर कोई सुहागन स्त्री करती है तो उसका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है और उसके वैवाहिक जीवन में किसी भी प्रकार की कोई बाधा नहीं आती। मंगला गौरी व्रत (Mangla Gauri Vart) करने से संतान सुख की भी प्राप्ति होती है और अगर कोई कुंवारी कन्या इस व्रत को करती है तो उसके विवाह में आ रही सभी प्रकार की बाधा समाप्त होती है। तो आइए जानते हैं मंगला गौरी व्रत शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा के बारे में...


मंगला गौरी व्रत 2019 तिथियां (Mangla Gauri Vart 2019 Tithi)

1.पहला मंगला गौरी व्रत (23 जुलाई 2019)

2.दूसरा मंगला गौरी व्रत (30 जुलाई 2019)

3. तीसरा मंगला गौरी व्रत (6 अगस्त 2019)

4. चौथा मंगला गौरी व्रत (13 अगस्त 2019)

मंगला गौरी 2019 शुभ मुहूर्त (Mangla Gauri Vart 2019 Subh Muhurat)

मंगला गौरी शुभ मुहूर्तच - सुबह 5 बजकर 41 मिनट से 11 बजकर 20 मिनट तक


मंगला गौरी व्रत का महत्व (Mangla Gauri Vart Ka Mahatva)

मंगला गौरी का महत्व हिंदू शास्त्रों में बहुत अधिक बताया गया है। मंगला गौरी के दिन माता पार्वती का व्रत किया जाता है। इस व्रत को करने से सुहागन स्त्रियों को वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है साथ ही जो दंपत्ति नि: संतान है उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह व्रत संतान की लंबी आयु के लिए भी किया जाता है। अगर कोई कुंवारी कन्या इस व्रत को करती है तो उसकी शादी में आ रही सभी बाधांए समाप्त होती है।


मंगला गौरी व्रत पूजा सामग्री  (Mangla Gauri Vart Pujan Samigri)

एक चौकी, सफेद और लाल कपड़ा, कलश, गेंहू और चावल, आटे का चौ मुखी दीपक, अगरबत्ती, धूपबत्ती, कपूर, माचिस, रूई की बत्ती, साफ और पवित्र मिट्टी, साफ और शुद्ध जल, दूध और पंचामृत, मां के लिए लाल वस्त्र, पूजा की सभी सामग्री, 16 तरह के फूल, माला, पत्ते, आटे के लड्डू, फल, पांच तरह के मेवे, 7 प्रकार के अनाज, 16 पान, सुपारी, लोंग, श्रृंगार का सभी समान, श्रद्धा के अनुसार प्रसाद


मंगला गौरी व्रत की विधि (Mangla Gauri Vart Ki Vidhi)

1.मंगला गौरी का व्रत श्रावण मास के प्रथम मंगलवार के दिन रखा जाता है। इसके लिए महिलाओं को स्नान करने के बाद कोरे वस्त्र ही धारण करने चाहिए।

2.इसके बाद एक साफ चौकी लेकर पूर्व दिशा की और मुख करके बैठना चाहिए। चौकी पर आधे भाग में सफेद कपड़ा बिछाकर चावल की नौ छोटी- छोटी ढेरी बनानी चाहिए और आधे भाग में लाल कपड़ा बिछाकर गेहुं की सोलह ढेरी बनाएं।

3.इसके बाद थोड़े से चावल चौकी पर अलग रखकर पान के पत्ते पर सातिया बनाएं और उस पर भगवान गणेश की प्रतिमा रखें और ऐसे ही गेहूं की अलग ढेरी पर कलश स्थापित करें। उस पर पांच पान के पत्ते और नारियल रखें ।

4. इसके बाद चौमुखी दीपक में 16 रूई की बत्ती लगाकर जलाएं। दीपक को प्रज्ववलित करने के बाद भगवान गणेश की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं इसके बाद गणेश जी को जनेऊ, रोली -चावल, सिंदूर चढ़ाएं और पूजन करने के बाद भोग लगांए।

5.गणेश जी के पूजन के बाद एक साफ थाली में मिट्टी लें और उसमें गंगा जल मिलाकर उससे माता गौरी की प्रतिम बनाएं। प्रतिमा बनाने के बाद उसे पंचामृत से स्नान कराएं और वस्त्र धारण कराएं।

6. माता गौरी को श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करें और रोली - चावल, फूल माला, फल, पत्ते. आटे के लड्डू, पान, सुपारी, लोंग, इलायची तथा पांच मेवाओं का प्रसाद रखें।

7.इसके बाद माता की कथा, मंत्र जाप कपने के बाद आरती उतारें। सावन के प्रत्येक मंगलवार इसी तरह पूजन करें और अंत में प्रतिमा को विसर्जन कर दें। जब आपकी मन्नत पूरी हो जाए तब इस व्रत का उद्यापन कर दें।


मंगला गौरी व्रत कथा (Mangla Gauri Vart Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार श्रुतिकीर्ति नामक का एक सर्वगुण सम्पन्न राजा कुरु देश नाम के देश में राज करता था। वह अनेक विध्याओं में निपुण था। लेकिन फिर भी वह परेशान और दुखी रहता था। क्योंकि उसकी कोई संतान नहीं थी। राजा संतान प्राप्ति के लिए जप, तप, अनुष्ठान और देवी की विधिवत पूजा करता था।

देवी राजा की भक्ति- भाव को देखकर बहुत प्रसन्न हो गई और एक दिन राजा को सपने में दर्शन देकर राजा से कहा- हे राजन! मैं तुमसे बहुत अधिक प्रसन्न हुं। मांगों क्या मांगते हो। राजा ने माता से कहा- हे मां। मैं सभी चीजों से संपन्न हुं। यदि मेरे पास कुछ नहीं है तो वह है संतान सुख।मां मुझे अपना वंश चलाने के लिए एक पुत्र की आवश्यकता है।

मां ने राजा से कहा हे राजन! तुमने एक दुर्लभ वरदान मांगा हैं। लेकिन में तुमसे बहुत अधिक प्रसन्न हुं। मैं तुम्हें एक पुत्र का वरदान देती हुं पर वह पुत्र सोलह साल तक ही जीवित रहेगा। माता की यह बात सुनकर राजा और उसकी पत्नी बहुत अधिक व्याकुल हो उठे। सभी बातों को जानते हुए भी राजा और रानी ने माता से फिर भी यही वरदान मांगा।

मां के आर्शीवाद से रानी को कुछ महिनों बाद एक पुत्र की प्राप्ति हुई। राजा ने बड़ी धूमधाम से अपने पुत्र का नामकरण संस्कार किया। राजा ने अपने पुत्र का नाम चिरायु रखा। राजा का पुत्र जैसे - जैसे बड़ा होता गया राजा को उसकी मृत्यु की चिंता सताने लगी।

राजा ने इस समस्या के समाधान के लिए एक विद्वान से सलाह ली। उस विद्वान ने राजा से कहा कि वह अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से कर दे। जो मंगला गौरी का व्रत करती हो। राजा ने अपने पुत्र का विवाह ऐसी ही कन्या से कर दिया। जिसे सौभाग्यशाली और सुहागन रहने का वरदान प्राप्त था। इसके बाद राजा के पुत्र की मृत्यु का दोष भी समाप्त हो गया। इसलिए जो भी स्त्री या कुंवारी कन्या मंगला गौरी का व्रत रखती है। उसकी सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।


मंगला गौरी आरती (Mangla Gauri Aarti)

जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता ब्रह्मा सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।

जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता।

जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सिंह को वाहन साजे कुंडल है, साथा देव वधु जहं गावत नृत्य करता था।

जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सतयुग शील सुसुन्दर नाम सटी कहलाता हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता।

जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाता।

जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सृष्टी रूप तुही जननी शिव संग रंगराता नंदी भृंगी बीन लाही सारा मद माता।

जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

देवन अरज करत हम चित को लाता गावत दे दे ताली मन में रंगराता।

जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

मंगला गौरी माता की आरती जो कोई गाता सदा सुख संपति पाता।

जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।


मंगला गौरी मंत्र (Mangala Gauri Mantra)

सर्वमंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके

शरणनेताम्बिके गौरी नरायणी नमस्तुते


मंगला गौरी स्तोत्र (Mangala Gauri Stotra)

ॐ रक्ष-रक्ष जगन्माते देवि मङ्गल चण्डिके।

हारिके विपदार्राशे हर्षमंगल कारिके।।

हर्षमंगल दक्षे च हर्षमंगल दायिके।

शुभेमंगल दक्षे च शुभेमंगल चंडिके।।

मंगले मंगलार्हे च सर्वमंगल मंगले।

सता मंगल दे देवि सर्वेषां मंगलालये।।

पूज्ये मंगलवारे च मंगलाभिष्ट देवते।

पूज्ये मंगल भूपस्य मनुवंशस्य संततम्।।

मंगला धिस्ठात देवि मंगलाञ्च मंगले।

संसार मंगलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम्।।

देव्याश्च मंगलंस्तोत्रं यः श्रृणोति समाहितः।

प्रति मंगलवारे च पूज्ये मंगल सुख-प्रदे।।

तन्मंगलं भवेतस्य न भवेन्तद्-मंगलम्।

वर्धते पुत्र-पौत्रश्च मंगलञ्च दिने-दिने।।

मामरक्ष रक्ष-रक्ष ॐ मंगल मंगले।

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