Navratri 2019 : अष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा, जानें महत्व, पूजा विधि, माता महागौरी की कथा, मंत्र और आरती

Navratri 2019 अष्टमी को दुर्गा अष्टमी भी कहा जाता है, शारदीय नवरात्रि का आरम्भ 29 सितंबर से हो रहा है और दुर्गा अष्टमी यानी कन्या पूजन 6 अक्टूबर को होगा, नवरात्रि (Navratri) की अष्टमी तिथि के दिन महागौरी की पूजा के साथ ही कुछ लोग माता को विदा कर देते हैं, जब मां महागौरी (Maa Mahagauri) ने कठोर तपस्या की थी तब मां का रंग काला पड़ गया था, इसके बाद भगवान शिव ने मां के पूरे शरीर को गंगाजल से धोया था। इसी कारण से मां को महागौरी नाम मिला था, तो आइए जानते हैं माता महागौरी की पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व, मां महागौरी की पूजा विधि, देवी महागौरी की कथा, महागौरी का मंत्र और माता महागौरी की आरती;

Update: 2019-09-07 10:03 GMT

Navratri 2019 नवरात्रि के दिन अष्टमी (Navratri Ashtami) के दिन मां महागौरी का पूजन किया जाता है। कुछ लोग अष्टमी के दिन कन्या पूजन करके मां को विदा कर देते हैं तो वहीं कुछ लोग नवमी के दिन कन्या पूजन करते हैं। मां महागौरी अत्ंयत ही करूणामयी और दयालु हैं। जो भी साधक मां की सच्चे मन से आराधना करता है। मां उस पर अपनी कृपा बरसाती है। शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri) का प्रारंभ इस साल 2019 में 29 सितंबर 2019 से हो रहा है। मां को महागौरी के अलावा श्वेताम्बरधरा और वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है तो आइए जानते हैं माता महागौरी की पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व, मां महागौरी की पूजा विधि, देवी महागौरी की कथा, महागौरी का मंत्र और माता महागौरी की आरती


अष्टमी शारदीय नवरात्र 2019 तिथि (Eight Shardiya Navratri 2019 Date)

6 अक्टूबर 2019

अष्टमी शारदीय नवरात्र 2019 शुभ मुहूर्त (Eight Shardiya Navratri 2019 Subh Muhurat)

अमृत काल मुहूर्त- सुबह 9 बजकर 56 मिनट से 11 बजकर 39 मिनट तक (6 अक्टूबर 2019)

अभिजित मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 32 मिनट तक (6 अक्टूबर 2019)


मां महागौरी का स्वरूप (Maa Mahagauri Ka Swaroop)

नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। मां गौरी के नाम से ही पता चलता है कि इनका रंग गौण यानी गोरा है। देवी महागौरी को शंख, चंद्र और कुंद के फूल की उपमा दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। मां के वस्त्र और सभी आभूषण श्वेत रंग के हैं। इसलिए मां महागौरी का एक नाम श्वेताम्बरधरा भी है। मां सिंह के साथ साथ बैल की भी सवारी करती हैं इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा कहकर भी संबोधित किया जाता है। मां गौरी की चार भुजाएं है। जिसमें दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बांए हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है।


मां महागौरी के पूजन का महत्व (Maa Mahagauri Ke Pujan Ka Mahatva)

मां महागौरी की पूजा करने अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मां का विधि विधान से पूजन करने पर उनके भक्तों के जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। देवी महागौरी की कृपा से असंभव से असंभव कार्य भी संपन्न हो जाते हैं। इसलिए नवरात्र की अष्टमी के दिन ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सदैव शुभ रहती हैं। मां गौरी के पूजन से मनुष्य सत्य की और अग्रसर होता है और असत्य का त्याग करता है। महागौरी की कृपा से उनके साधकों के जीवन के सभी कष्ट समाप्त होते हैं और उन्हें जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।


मां महागौरी की पूजा विधि (Maa Mahagauri Ki Puja Vidhi)

1.इस दिन साधक को प्रात: काल स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।

2. इसके बाद एक लकड़ी की चौकी पर मां की प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए। प्रतिमा स्थापित करने के बाद मां को लाल चुनरी चढ़ानी चाहिए।

3.इसके बाद मां को सुहाग का सभी समान अर्पण करना चाहिए। इसके बाद मां को फल, फूल ,नैवेध आदि अर्पण करने चाहिए और मां की कथा सुनकर धूप व दीप से उनकी आरती उतारनी चाहिए।

4. इसके बाद मां को हलुआ, चने और पुड़ी के प्रसाद का भोग लगाकर। नौ वर्ष से छोटी नौ कन्याओं का पूजन करके उन्हें भोजन करना चाहिए।

5. भोजन कराने के बाद सभी कन्याओं को उपहार दें और उनका आर्शीवाद लें।


मां महागौरी की कथा (Maa Mahagauri Ki Katha)

मां पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए बड़ी ही कठोर तपस्या की थी। उनकी इस तपस्या के कारण उनका शरीर काला पड़ गया था। जब मां की कठोर तपस्या के कारण भगवान शिव का सिहांसन हिलने लगा तो उन्होंने मां पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार लिया और उनके पूरे शरीर को गंगा जल से धोया। गंगा जल से मां पार्वती के शरीर को धोने के बाद उनका शरीर कांतिवान और गौरा हो गया तब ही से मां का नाम गौरी पड गया। मां का यह रूप अत्यंत ही करुणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल है।

मां के इस रूप का ऋषिगणों ने कुछ इस प्रकार वर्णन किया है "सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।"। मां महागौरी को लेकर एक और कथा शास्त्रों में दी गई है। जिसके अनुसार एक जंगल में एक शेर काफी समय से भूखा था और वह भोजन की तलाश करता हुआ मां महागौरी के पास पहुंच गया जहां वह तपस्या कर रही थी। वह शेर अत्यंत ही भूखा था और मां को देखकर उसकी भूख और भी ज्यादा बढ़ गई थी। लेकिन वह वहीं बैठकर मां की तपस्या का खत्म होने का इंतजार कर रहा था।

जब मां न तपस्या के बाद अपनी आंखे खोली तो उन्होंने देखा की उनके सामने एक सिंह अत्यंत ही दयनीय स्थिति में पड़ा है। उस शेर को देखकर मां को उस पर दया आ गई और मां ने उसे अपनी सवारी के रूप में स्वीकार कर लिया। क्योंकि मां के साथ- साथ उस सिंह ने भी तपस्या की थी। इसलिए मां महागौरी के वाहन के रूप में बैल के साथ- साथ सिंह को भी गिना जाता है।


मां महागौरी के मंत्र (Maa Mahagauri Ke Mantra)

1.श्वेते वृषे समारुढ़ा, श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरीं शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया।।

2.या देवी सर्वभूतेषु कालरात्रि रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥


मां महागौरी की आरती (Maa Mahagauri Ki Aarti)

जय महागौरी जगत की माया।

जया उमा भवानी जय महामाया॥

हरिद्वार कनखल के पासा।

महागौरी तेरी वहां निवासा॥

चंद्रकली ओर ममता अंबे।

जय शक्ति जय जय माँ जगंदबे॥

भीमा देवी विमला माता।

कौशिकी देवी जग विख्यता॥

हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा।

महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥

सती सत हवन कुंड में था जलाया।

उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥

बना धर्म सिंह जो सवारी में आया।

तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥

तभी माँ ने महागौरी नाम पाया।

शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥

शनिवार को तेरी पूजा जो करता।

माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥

भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो।

महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो॥

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