Navratri 2019 : पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा, जानें महत्व, पूजा विधि, माता स्कंदमाता की कथा, मंत्र और आरती
Navratri 2019 नवारात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के भक्त स्कंदमाता की पूजा (Skandmata Ki Puja) करते हैं, मां के इस रूप की पूजा करने से संतान संबंधी सभी परेशानियां समाप्त होती है, स्कंदमाता (Skandmata) ने अपनी गोद में अपने प्रिय पुत्र कार्तिकेय को बैठाया है, इसी कारण से ही इनका नाम स्कंदमाता रखा गया है तो आइए जानते हैं माता स्कंदमाता की पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व, मां स्कंदमाता की पूजा विधि, देवी स्कंदमाता की कथा, स्कंदमाता का मंत्र और माता स्कंदमाता की आरती;
Navratri 2019 नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता का रूप अत्यंत ही दयालु है। माता के इस रूप में उन्होंने अपने पुत्र को अपनी गोद में बैठा रखा है। मां के इस रूप में उनकी चार भुजाएं हैं और वह सिंह पर विराजमान है। शारदीय नवरात्र का पर्व (Shardiya Navratri Festival) इस साल 2019 में 29 सितंबर 2019 के दिन मनाया जाएगा। नवरात्रि में मां दुर्गा (Maa Durga) के नौ रूपों की पूजा की पूजा की जाती है। मां दूर्गा के पाचंवे रूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है तो आइए जानते हैं पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा, महत्व, पूजा विधि, माता कुष्माण्डा की कथा, मंत्र और आरती के बारे में...
पांचवें शारदीय नवरात्र 2019 तिथि (Fifth Shardiya Navratri 2019 Date)
3 अक्टूबर 2019
पांचवें शारदीय नवरात्र 2019 शुभ मुहूर्त (Fifth Shardiya Navratri 2019 Subh Muhurat)
सर्वार्थ सिद्धि योग- सुबह 6 बजकर 19 मिनट से दोपहर 12 बजकर 11 मिनट तक (3 अक्टूबर 2019)
स्कंदमाता का स्वरूप (Skandmata Ka Swaroop)
स्कंद मां की गोद मे विराजित है और भगवान कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। मां की चार भुजाएं हैं जिसमें दोनों हाथों में कमल के पुष्प हैं। देवी स्कंदमाता ने अपने एक हाथ से कार्तिकेय को अपनी गोद में बैठा रखा है और दूसरे हाथ से वह अपने भक्तों को आर्शीवाद प्रदान कर रही हैं। मां सिहं पर पद्माआसन धारण करके बैठी हुई हैं। पुराणों में मां को कुमार और शक्ति कहकर संबोधित किया गयाा है। स्कंदमाता मां दुर्गा का ही स्वरूप हैं। इसलिए नवरात्र के पांचवे दिन मां के इस रूप की पूजा की जाती है।
स्कंदमाता की पूजा का महत्व (Skandmata Ki Puja Ka Mahatva)
नवरात्र के दिन स्कंदमाता की पूजा पूरे एकाग्र मन से की जाए तो मां अपने भक्तों को सभी प्रकार का सुख प्रदान करती हैं। जिन लोगों को संतान प्राप्त नहीं हो रही है या फिर संतान प्राप्ति में अधिक समस्या उत्पन्न हो रही है तो वह नवरात्र में मां स्कंदमाता की पूजा कर सकते हैं। मां की पूजा करने से संतान संबंधी सभी परेशनियां समाप्त होती हैं। कमजोर बृहस्पति को भी मजबूत करने के लिए स्कंदमाता की पूजा अवश्य करनी चाहिए।इसके अलावा मां की पूजा से घर के कलेश भी दूर होते हैं। जो भी व्यक्ति मां की विधिवत पूजा करता है। वह अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है।
स्कंदमाता की पूजा विधि (Skandmata Ki Puja Vidhi)
1.स्कंदमाता की पूजा नवरात्र के पांचवें दिन की जाती है। इनकी पूजा के लिए सुबह स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें।
2. इसके बाद मां की प्रतिमा एक चौकी पर स्थापित करके कलश की भी स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका, सप्त घृत मातृका भी स्थापित करें।
3. इसके बाद मां को चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल और पान भी अर्पित करें।
4. इसके बाद हाथ में फूल लेकर सिंहासनागता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।। इस मंत्र का जाप करते हुए फूल चढ़ा दें।
5. इसके बाद मां की विधिवत पूजा करें, मां की कथा सुने और मां की धूप और दीप से आरती उतारें। उसके बाद मां को केले का भोग लगाएं और प्रसाद के रूप में केसर की खीर का भोग लगाकर प्रसाद बांटें।
स्कंदमाता की कथा (Skandmata Ki Katha)
नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। कार्तिकेय को देवताओं का कुमार सेनापति भी कहा जाता है। कार्तिकेय को पुराणों में सनत-कुमार, स्कन्द कुमार आदि नामों से भी पुकारा गया है। मां इस रूप में अपने पुत्र को मातृत्व की छांव देती है यानी उन पर ममता लुटाती हैं। माता का यह रूप सफेद रंग का है। मां अपने इस रूप में शेर पर सवार होकर अत्याचारी दानवों का संहार करती हैं और संत जनों की रक्षा करती हैं। स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। माता ने अपने दो हाथों में कमल का फूल ले रखा है।
एक हाथ से अपने पुत्र यानी कार्तिकेय को अपनी गोद मे बैठा रखा है और मां का एक हाथ वरमुद्रा में है। स्कंदमाता पर्वतराज हिमालय की पुत्री भी है। इसलिए इन्हें माहेश्वरी और गौरी के नाम से भी जाना जाता है। पर्वतराज की बेटी होने के कारण इन्हें पार्वती भी कहते हैं। भगवान शिव की पत्नी होने के कारण इनका एक नाम माहेश्वरी भी है। इनके गौर वर्ण के कारण इन्हें गौरी भी कहा जाता है। मां को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है इसलिए इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है जो अपने पुत्र से अत्याधिक प्रेम करती हैं।
स्कंदमाता के मंत्र (Skandmata Ke Mantra)
1.सिंहासनागता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
2.या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
3.ॐ स्कन्दमात्रै नम:
4.ॐ ऐं श्रीं नम: दुर्गे स्मृता हरसि भीतिम शेष-जन्तोः,
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।
दारिद्रय दुख भय हरिणी का त्वदन्या,
सर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता नमो श्रीं ॐ।।
स्कंदमाता की आरती (Skandmata Ki Aarti)
जय तेरी हो अस्कंध माता
पांचवा नाम तुम्हारा आता
सब के मन की जानन हारी
जग जननी सब की महतारी
तेरी ज्योत जलाता रहू मै
हरदम तुम्हे ध्याता रहू मै
कई नामो से तुझे पुकारा
मुझे एक है तेरा सहारा
कही पहाड़ो पर है डेरा
कई शेहरो मै तेरा बसेरा
हर मंदिर मै तेरे नजारे
गुण गाये तेरे भगत प्यारे
भगति अपनी मुझे दिला दो
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो
इन्दर आदी देवता मिल सारे
करे पुकार तुम्हारे द्वारे
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये
तुम ही खंडा हाथ उठाये
दासो को सदा बचाने आई
'चमन' की आस पुजाने आई
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