Navratri 2019 : क्या है माता वैष्णो देवी और भगवान विष्णु के कल्कि अवतार का रहस्य
Navratri 2019 शारदीय नवरात्रि इस साल 2019 में 29 सितंबर 2019 से शुरू हो रहे हैं, धरती पर असुरों के नाश के लिए मां काली, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती ने अपने तेज से एक कन्या को जन्म दिया, जो आज के समय में त्रिकुटा पर्वत पर वास करती हैं और इन्हें मा वैष्णो देवी के नाम से जाना जाता है, लेकिन इनका भगवान विष्णु के कल्कि अवतार से क्या रिश्ता है , आइए जानते हैं क्या है माता वैष्णो देवी और भगवान विष्णु के कल्कि अवतार का रहस्य;
Navratri 2019 नवरात्रि पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है और इस समय लोग मां के तीर्थ स्ठानों की भी यात्रा करते हैं। जिनमें से मां वैष्णों देवी मंदिर में हिंदू धर्म के लोगों की बड़ी आस्था है। लेकिन क्या आप जानते हैं कैसे आई मां वैष्णों देवी त्रिकुटा पर्वत पर और क्या है मां वैष्णो देवी (Vaishno Devi) और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के कल्कि अवतार का रहस्य अगर नहीं तो हम आपको इसके बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं क्या है माता वैष्णो देवी और भगवान विष्णु के कल्कि अवतार का रहस्य
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माता वैष्णो देवी और भगवान विष्णु के कल्कि अवतार का रहस्य (Vaishno Devi Ka Rahasya / Vishnu Kalki Avrtar Rahasya)
त्रेतायुग में कई सारी असुरी शक्तियों का आतंक था। राक्षसों के आतंक से त्रिदेव भी परेशान थे कि उनके दिए हुए वरदान ही पृथ्वीं लोक पर आतंक का कारण बन रहे हैं। यह देखकर मां काली, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती ने निश्चय किया कि वह त्रिदेवों की चिंता को दूर करने का प्रयास करेंगी और फिर तीनों देवियों ने अपने अपार तेज से एक बालिका को उत्पन्न किया। उस बालिका ने तीनों देवियों से अपने जन्म का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उसके जन्म का कारण है पृथ्वीं लोक पर असुरी शक्तियों का विनाश करना। उन्होंने उस बालिका से कहा जाओ और दक्षिण भारत में रहने वाले विष्णु भक्त रत्नाकर के यहां जन्म लो।
वहीं दूसरी और संतानहीन रत्नाकर सो रहे थे तो उनके सपने में आकर इस बात को बोध कराया कि उनके यहां एक पुत्र जन्म लेगी। जिसके भक्तों की संख्या कई गुना होगी। कुछ समय के बाद ही रत्नाकर के घर पुत्री का जन्म हुआ। जिसका नाम उन्होंने त्रिकुटा रखा। बचपन से ही त्रिकुटा को दिव्य ज्ञान प्राप्त करने की तीव्र इच्छा थी । जल्द ही उन्हें यह ज्ञान हो गया कि वह यह ज्ञान ध्यान और तपस्या से ही अर्जित कर सकती हैं। लेकिन परिवार में रहकर यह असंभव था। जब यह बाच त्रिकुटा ने अपने माता पिता को बताई कि वह घर को त्याग कर समुद्र किनारे तपस्या करना चाहती है तो वह तैयार हो गए। क्योंकि उन्हें पता था कि उनकी पुत्री कोई साधारण बालिका नही है।
बल्कि उसमें दिव्य शक्ति समाहित है। इसके बाद त्रिकुटा ने समुद्र किनारे तपस्या प्रारंभ कर दी। एक दिन समुद्र किनारे माता सीता की खोज करते हुए प्रभु श्री राम पर त्रिकुटा की नजर पड़ गई। वह तत्काल ही पहचान गईं की प्रभु श्री राम कोई और नहीं बल्कि भगवान विष्णु के अवतार हैं। वह प्रभु श्री राम के पास गई और पुष्प अर्पित किए और उनसे आग्रह किया कि वह उन्हें अपने में समाहित कर लें। लेकिन भगवान श्री राम ने कहा कि मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हुं मगर यह समय अभी उचित नही है। इसलिए अब से तुम्हारा नाम वैष्णवी होगा। वनवास के पश्चात मैं फिर से तुम्हारे पास आऊंगा
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अगर तुम मुझे पहचान गईं। तो मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूर्ण कर दूंगा और यह कहकर वह सीता जी की खोज में निकल गए। काफी समय बीत गया लेकिन वैष्णवी का भगवान श्री राम के प्रति इंतजार समाप्त नही हुआ। तब ही एक दिन एक वृद्ध व्यक्ति वैष्णवी के समक्ष आया और उनसे कहा कि तुम अति सुंदर हो और इस एकांत स्थान पर रहना तुम्हारे लिए उचित नही है। तुम मुझ से विवाह कर लो।
यह सुनकर वैष्णवी ने उस वृद्ध से कहा कि तुम चले जाओ यहां से मैं पहले से ही प्रभु की हो चुकी हूं। वह मुझे स्वीकार करने के लिए आने ही वाले हैं। तब ही एकाएक उन्हें लगा कि उनसे कुछ गलती हो गई है। लेकिन जब तक वह कुछ जान पाती तब तक बहुत देर हो चुकी थी। क्योंकि वह वृद्ध कोई और नहीं बल्कि स्वंय प्रभु श्री राम थे। वैष्णवीं ने उनसे श्रमा मांगी। परंतु श्री राम ने कहा कि आपका मुझे पहचान न पाना यह दर्शाता है कि आपकी इच्छा पूर्ण करने का अभी उचित समय नही आया है।
क्योंकि अभी आपको पृथ्वीं पर रहकर बहुत से कार्य संपन्न करने हैं। त्रेतायुग में नहीं बल्कि कलयुग में आप मुझमें समाहित हो सकेंगी। जब मैं कल्कि अवतार में पृथ्वी लोक पर जन्म लूंगा। इसके बाद श्री राम ने वैष्णवीं को यह आदेश दिया कि वह उत्तर भारत में त्रिकुटा पर्वत पर जाकर तपस्या करें। वहीं पर अपना धाम बनाकर लोगों का कल्याण करें। तब जाकर वह कलयुग में वह श्री राम से विवाह करके उनमें समाहित हो सकेंगी।
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