Nirjala Ekadashi 2020: निर्जला एकादशी व्रत कैसे करें, पूजा करने की विधि, उपाय और व्रत कथा

जो लोग साल में एक भी एकादशी का व्रत नहीं रख पाते हैं उन्हें निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत करना चाहिए, क्योंकि इस व्रत को रखने से सभी एकादशियों के बराबर का पून्य प्राप्त हो जाता है।निर्जला एकादशी व्रत (Nirjala Ekadashi Vart) में उस दिन के सूर्य उदय से दूसरे दिन के सूर्य उदय तक जल नहीं पीने का विधान है। निर्जला एकादशी व्रत करने से दीर्घ आयु और मोक्ष की प्राप्ति होती है।;

Update: 2020-05-24 14:07 GMT

Nirjala Ekadashi 2020: निर्जला एकादशी का व्रत सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इसे भीमसैनी एकादशी भी कहते हैं। बिना पानी के व्रत को निर्जला व्रत कहते हैं। निर्जला एकादशी का व्रत किसी भी प्रकार के भोजन और पानी के बिना किया जाता है। उपवास के कठोर नियमों के कारण सभी एकादशियों में निर्जला एकादशी सबसे अधिक कठिन होता है। साल 2020 में निर्जला एकादशी का व्रत या निर्जला एकादशी व्रत 2020 2 जून को है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही निर्जला एकादशी या भीम सेन एकादशी के नाम से जाना जाता है। ज्येष्ठ मास में सूर्य अपने रौद्र रूप में होता है। नदियां तालाब सूख जाते हैं और जल की कमी आने लगती है, ज्येष्ठ मास में जल बचाने का संदेश भी देता है। यह पर्व पानी की कीमत समझाते हैं।

जो लोग साल में एक भी एकादशी का व्रत नहीं रख पाते हैं उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत करना चाहिए, क्योंकि इस व्रत को रखने से सभी एकादशियों के बराबर का पून्य प्राप्त हो जाता है। इस व्रत में उस दिन के सूर्य उदय से दूसरे दिन के सूर्य उदय तक जल नहीं पीने का विधान है। निर्जला एकादशी व्रत करने से दीर्घ आयु और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन कलश दान करने से भगतों को साल भर की एकादशी का फल प्राप्त होता है। जो भी श्रद्धापूर्वक इस एकादशी का व्रत करता है वह समस्त पापों से मुक्त होकर अभिनाशि पद प्राप्त करता है। निर्जला एकादशी पर व्रती को जल, जूता, छतरी, गाय, अन्न, वस्त्र, आसन, फंखा और फल आदि का दान करना चाहिए।

निर्जला एकादशी के दिन पहले भगवान विष्णु का पूजन करें, फिर गौ दान ब्राह्मणों की मिठाई व दक्षिणा दें और जल से भरे कलश का दान भी करें। एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत का पारण अगले दिन सूर्य उदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के अंदर पारण न करना अच्छा नहीं मान जाता है। व्रत तोडने के लिए सबसे उपयुक्त समय सुबह होता है। भगवान के भोग के लिए तुलसी और वेला पत्तर के पत्ते एक दिन पहले तोड कर रख लें, क्योंकि इस दिन तुलसी और वेला पत्तर नहीं तोड़े जाते हैं।

निर्जला एकादशी व्रत विधि

इस दिन सुबह स्नान आदि करके भगवान विष्णु की मूर्ति को जल और गंगाजल से स्नान करवाएं। उन्हें व्रत अर्पित करें और रोली चंदन का टिका करें और पुष्प अर्पित करें, बाद में नारियल भी अर्पित करें। मिठाई और फल के साथ तुलसी का पत्ता रखकर भगवान विष्णु को भोग लगाएं और घी का दीपक जलाए। इस दिन भगवान विष्णु के विधि विधान से पूजा करें और भगवान का ध्यान करते हुए ऊँ नमों भगवतो वासुदेवाय् नम: मंत्र का जाप करें। इस दिन कुछ लोग दान भी करते हैं। इस दिन भक्ति भाव से भगवान का भजन करना और कथा सुननी चाहिए। इस दिन व्रती जल से भरे कलश को सफेद कपड़े से ढक कर रख दे और उस पर चीन तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दें और गरीबों को भी दान करें, तभी निर्जला एकादशी व्रत का विधान पूरा होता है।

निर्जला एकादशी व्रत कथा

यह बात महाभारत काल की है। एक बार पांडु पुत्र भीम ने महर्षि व्यास जी से पूछा की हे आदरणीय मुनिवर मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी व्रत करते हैं और मझे भी व्रत करने के लिए कहते हैं। लेकिन मैं भूखा बिल्कुल भी नहीं रह सकता हूं। आप मुझे बताएं की बिना उपवास किए एकादशी का फल कैसे मिल सकता है। भीम के अनुरोध पर वेद व्यास जी ने कहा कि पुत्र तुम निर्जला एकादशी का व्रत करों, बाकी एकादशियों का व्रत भी नहीं कर पाए तो कम से कम निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य करों।

इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है। इसलिए जो भी मनुष्य निर्जला एकादशी तिथि के सूर्य उदय से पहले और द्वादशी के सूर्य के बाद तक बिना पानी ग्रहण के सच्ची श्रद्धा से निर्जला व्रत का पालन करता है। इस एकादशी का व्रत समस्त तीर्थों और दानों से अधिक है। जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें मृत्यु के समय यमदूत आकर घरते नहीं है बल्कि पुष्पक विमान में बैठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। इस लिए संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत हैं। इस प्रकार व्यास जी आज्ञानुसार भीम ने इस व्रत को किया। इस लिए इस एकादशी को भीम सैनी एकादशी कहते हैं।

जो निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं वह चाहए ब्रह्म हत्यारा या मद पान करता हो या मजबूरी में चोरी की हो या गुरु के साथ कपट किया हो, वह इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग को जाता है। जो मनुष्य इस कथा को भक्तिपूर्वक पढ़ते है या सुननते हैं उन्हें निश्चित ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

निर्जला एकादशी के दिन किए जाने वाले उपाय

निर्जला एकादशी पर भगवान विष्णु को पीले रंग के वस्त्र, फल और अनाज अर्पित करें। भगवान विष्णु की पूजा के बाद इन चीजों को ब्राह्मण को दान में दें। ऐसा करने से घर में कभी कलेश नहीं होगा।

निर्जला एकादशी के दिन शिव मंदिर में नारियल, वेला पत्र, सीता फल, सुपारी और मौसमी आदि चड़ाएं।

निर्जला एकादशी के दिन किसी गरीब को तिल, वस्त्र, फल और मिठाई का दान जरूर करें।

निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को खीर का भोग जरूर लगाएं। इसमें तुलसी का पत्ता भी अवश्य ड़ालें। ऐसा माना जाता है कि तुलसी पत्र समेत खीर विष्णु भगवान को भोग लगाने से घर परिवार में शांति बनी रहती है।

इस दिन पीलल के पेड़ में जल चड़ाएं क्योंकि पीपल के पेड़ में भगवान विष्णु निवास करते हैं। ऐसा करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है।

निर्जला एकादशी के दिन स्नान के बाद श्रीमद् भागवत गीता का पाठ करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं।

निर्जला एकादशी के दिन तुलसी की माला से ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का का जाप करें।

इस दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा का केसर मिले दूध से अभिषेक करें।

इस दिन मंदरिों में जल पात्र मटके आदि का दान करें। घर की छत पर या बार पक्षियों के लिए जल पात्र भी रखें।

निर्जला एकादशी के दिन आवले का रस डालकर स्नान करने से बहुत ही पून्य मिलता है शास्त्रों के अनुसार जो ऐसा करता है उसके समस्त पाप नष्ट होते हैं।

निर्जला एकादशी पर पीले फूल चड़ाए, इससे आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। 

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