Tulsi Vivah 2019 : तुलसी विवाह पर जानिए माता तुलसी ने क्यों दिया था भगवान विष्णु को श्राप
तुलसी विवाह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि किया जाता है, इस दिन तुलसी का पौधा धरती पर आया था, लेकिन माता तुलसी ने भगवान श्री हरि विष्णु को उनके छल के कारण श्राप भी दिया था तो आइए जानते हैं किसी वजह से माता तुलसी ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था।;
Tulsi Vivah 2019 तुलसी विवाह का पर्व इस साल 2019 में 9 नवंबर 2019 के दिन मनाया जाएगा। इस दिन माता तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराया जाता है। शालिग्राम को भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का ही स्वरूप माना जाता है। इस दिन माता तुलसी (Mata Tulsi) का पूरे विधि विधान और रीति रिवाज से किया जाता है। लेकिन माता तुलसी ने भगवान विष्णु को उनकी एक गलती के कारण श्राप दिया था। तो आइए जानते हैं किसी वजह से माता तुलसी ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था।
माता तुलसी ने किस कारण दिया भगवान विष्णु को श्राप (Mata Tulsi Na Kis Karan Diya Tha Mata Tulsi Ko Srap)
श्रीमद्देवी भगवत पुराण के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपने तेज को समुद्र में फेंक दिया था। जिससे जलंधर की उत्पत्ति हुई थी कहा जाता है कि जलंधर के अंदर अद्भुत शक्तियां थी और उसकी शक्तियों का कारण उसकी पतिव्रता पत्नी वृंदा थी। वृंदा के पतिव्रता धर्म के कारण ही सभी देवी देवता जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे और इस प्रकार जलंधर को अपनी शक्तिशाली होने का अभिमान हो गया और वह वृंदा के पतिव्रता धर्म की नकारने करने लगा। जलंधर ने स्वंय को सर्वशक्तिमान साबित करने के लिए पहले इंद्र को परास्त किया।
उसके बाद जलंधर ने भगवान विष्णु को परास्त कर देवी लक्ष्मी को उनसे छीन लेने की योजना बनाई। इस कारण उसने बैकुंठ लोक पर आक्रमण कर दिया। लेकिन देवी लक्ष्मी ने जलंधर से कहा कि हम दोनों का जन्म जल से हुआ है। इस कारण से हम दोनों भाई बहन हैं। उनकी बातों ले जलंधर प्रभावित हुआ और वह वहां से चला गया। जलंधर को यह पता था कि ब्रह्मांड में अगर कोई शक्तिशाली है तो वो है देवों के देव महादेव और इसलिए उसने कैलाश पर आक्रमण करने की योजना बनाई और तब महादेव को उससे युद्ध करना पड़ा था।
लेकिन उसकी पत्नी वृंदा के तप के कारण भगवान शिव का हर प्रहार जलंधर पर निष्फल साबित हो रहा था। जलंधर ने अपनी माया से महादेव सहित सभी देवताओं को भ्रमित कर दिया था और वह स्वंय महादेव के रूप में कैलाश पर्वत पर पहुंच गया पर माता पार्वती उसको देखकर ही समझ गईं कि वह जलंधर है और वह महादेव के रूप में आया है। इस वजह से माता पार्वती अत्याधिक क्रोधित हो जाती हैं और जलंधर को मारने के लिए अपना अस्त्र उठा लेती हैं। जलंधर को यह पता था कि माता पार्वती शक्ति का ही स्वरूप है।
जलंधर सोचता है कि वह माता पार्वती को पराजित नहीं कर सकता है। इसलिए वह वहां से चला जाता है। इसके बाद देवी पार्वती इस पूरी घटना का वर्णन भगवान विष्णु से करती हैं। तब भगवान विष्णु ने बताया कि जलंधन की शक्ति का कारण उसकी पतिव्रता पत्नी वृंदा है। जो जलंधर के हर युद्ध से पहले तप करती है। जिसकी वजह से ही जलंधर को यह अद्भुत शक्तियां प्राप्त होती हैं। इसके बाद भगवान विष्णु ने योजना बनाकर देव वृंदा के पास पहुंच गए। वृंदा भगवान विष्णु को अपना पति समझकर उनके साथ पति के समान व्यवहार करने लगी।
इससे वृंदा का तप टूट गया और भगवान शिव ने जलंधर का वध कर दिया। तब देवी वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि एक दिन वह भी अपनी पत्नी से बिछड़ जाएंगे और इसी कारण भगवान विष्णु राम अवतार में सीता हरण के कारण माता सीता से बिछड़ जाते हैं। भगवान विष्णु के द्वारा सतित्व भंग किए जाने पर देवी वृंदा ने आत्मदहन कर लिया था और देवी वृंदा के आत्मदह के बाद उस राख पर तुलसी का पौधा जन्मा। तुलसी का पौधा देवी वृंदा का ही स्वरूप है और तब से ही भगवान विष्णु की पूजा तुलसी जी के बिना अधूरी मानी जाती है।
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