Happy Women's Day: टीवी एक्ट्रेस मौली गांगुली जैसी नामचीन हस्तियों से जानिए लैंगिक समानता लाने के लिए करने होंगे कितने काम

Happy Women's Day 2022- 21वीं सदी (21st Century) दुनिया के लिए बड़े बदलाव का समय है। इस दौर में समाज बड़ी तेजी से बदला है, इसमें कई सकारात्मक परिवर्तन (Positive Changes) आए हैं। लेकिन जब बात लैंगिक समानता (Gender Equality) की आती है, हमें निराशा ही हासिल होती है। इस स्टोरी में हम लेकर आए हैं आपके लिए टीवी एक्ट्रेस मौली गांगुली जैसे कई नामचीन हस्तियों के विचार।;

Update: 2022-03-08 09:39 GMT

Happy Women's Day 2022- 21वीं सदी (21st Century) दुनिया के लिए बड़े बदलाव का समय है। इस दौर में समाज बड़ी तेजी से बदला है, इसमें कई सकारात्मक परिवर्तन (Positive Changes) आए हैं। लेकिन जब बात लैंगिक समानता (Gender Equality) की आती है, हमें निराशा ही हासिल होती है। आज भी हमारी दुनिया लैंगिक समानता से काफी दूर है। इसे लेकर बड़े-बड़े दावे तो किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। महिलाएं (Women) समानता के लिए लगातार संघर्ष कर रही हैं। आखिर वे कौन से कारण हैं, जो लैंगिक समानता की राह में बाधा बने हुए हैं? इन्हें कैसे दूर किया जाए? इस स्टोरी में हम लेकर आए हैं आपके लिए टीवी एक्ट्रेस मौली गांगुली जैसे कई नामचीन हस्तियों के इस बारे में विचार और लैंगिक समानता लाने के लिए हमें क्या- क्या उपाय करने चाहिए...

बेटियों को शिक्षा और आगे बढ़ने के समान अवसर मिलें

मौली गांगुली (Mouli Ganguly) टीवी एक्ट्रेस

एंडटीवी के सीरियल 'बाल शिव' में महासती अनुसूइया की भूमिका में नजर आ रहीं मौली गांगुली का मानना है कि लैंगिक समानता पर हमारे समाज में बात होनी चाहिए, इसके लिए प्रयास करने चाहिए। मौली कहती हैं, 'आज भी अगर लैंगिक असमानता मौजूद है तो इसका कारण पितृसत्तात्मक सोच है, जिसमें पुरुष को सुप्रीम मान लिया गया। इस वजह से हमारी सोसायटी में एक बड़ा जेंडर गैप आ गया और महिलाओं को समान अवसरों से वंचित रखा गया। लेकिन कोई भी समाज और देश तब तक तरक्की नहीं कर सकता, जब तक वहां के हर नागरिक चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, को समान अवसर ना मिलें। इसलिए जरूरी है कि लैंगिक असमानता को दूर किया जाए। इसकी शुरुआत घर से होनी चाहिए। हमें चाहिए कि परिवार में बेटा-बेटी के बीच भेद ना हो, बेटियों को पढ़ने और आगे बढ़ने के समान अवसर मिलें। इसी के साथ बेटों की परवरिश ऐसी हो कि वे हर महिला का सम्मान करें। इन्हीं कारगर प्रयासों से लैंगिक समानता आएगी और हमारा आने वाला कल बहुत ही अच्छा होगा। महिलाओं को मैं महिला दिवस पर यही संदेश देना चाहूंगी कि आप भगवान की खास कृति हैं। आप ऐसा बहुत कुछ कर सकती हैं, जो पुरुष नहीं कर सकते। इसलिए अपने भीतर की शक्ति पहचानें और आगे बढ़ें। दूसरी महिलाओं को भी आगे बढ़ने में मदद करें। सभी को मेरी तरफ से हैप्पी वूमेंस-डे।'

बेटा-बेटी की परवरिश एक समान करें

सूर्यबाला (Suryabala), साहित्यकार

लैंगिक असमानता का सबसे बड़ा कारण यही है कि सामाजिक और अर्थ की सत्ता शुरुआत से पुरुष के हाथ में रही। इस वजह से वह संरक्षक की भूमिका में आ गया, महिलाएं उन पर निर्भर रहीं। इसी निर्भरता के कारण लैंगिक असमानता बढ़ी। लेकिन अब बहुत हद तक यह निर्भरता खत्म हुई है। महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हुई हैं, लेकिन लैंगिक समानता नहीं आई है। इसका कारण है कि हम अपने बच्चों की परवरिश ऐसी नहीं कर रहे हैं, जिससे वे एक-दूसरे को समान समझें, कम या ज्यादा ना समझें। इस स्थिति को भी स्त्रियां ही बदल सकती हैं। वे मां के रूप में बेटा-बेटी को बराबर समझें और उनकी परवरिश एक समान करें। मैंने अपने घर में हमेशा ऐसा ही माहौल देखा था। हम चार बहनें थीं, एक सबसे छोटा भाई। हम सबको हमेशा समान अवसर मिले। अपनी बात कहने का पूरा मौका मिला। साथ ही घर से जुड़े जरूरी निर्णयों पर पिता जी हमेशा मां के विचार पूछते थे, उनको महत्व देते थे। मां को वह पूरा सम्मान देते थे। ऐसा ही माहौल अगर सभी घरों में हो तो लैंगिक असामनता सरलता से दूर हो जाएगी। कहने का मतलब है कि स्त्री-पुरुष के संबंध, चाहे वे भाई-बहन हों, पति-पत्नी हों या मित्र के रूप में हों, सबके बीच एक समान होने का भाव हमें विकसित करना होगा। उनकी प्रगाढ़ता पर जोर देना होगा। ऐसा होने पर ही लैंगिक असमानता समाप्त हो जाएगी। इसी के साथ महिला दिवस पर महिलाओं से मैं यही कहना चाहूंगी कि आप विवेकपूर्ण तरीके से अपने हक की बात करें। फिर आपको जरूर समान अवसर मिलेंगे, कोई आपकी राह में बाधा नहीं बनेगा।

बेटियों को सबल बनने की सीख बचपन से देनी होगी

डॉ. किरणमयी नायक (Dr. Kiranmayee Nayak), अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग

जब हम लैंगिक असमानता की बात करते हैं, तो इस समस्या की शुरुआत घर से ही हो जाती है। हम अपनी बेटियों को बचपन से यही सीख देते हैं कि पढ़ने के साथ घर के काम की जिम्मेदारी भी तुम्हारी है, तुम्हें शादी करके दूसरे घर जाना है। बेटियों पर तरह-तरह के बंधन लगाए जाते हैं। इस वजह से उनके भीतर एक संकोच पैदा होता है, वे मुखर नहीं बन पाती हैं। वहीं बेटे को कभी भी घर के काम करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। इसी के साथ कभी भी बेटों पर किसी तरह के बंधन नहीं लगाए जाते या रोक-टोक नहीं होती है। इस वजह से वे खुद को ज्यादा महत्वपूर्ण समझने लगते हैं। यही सोच आगे चलकर उनके मन में महिलाओं से बेहतर होने का भाव डालती है। इसलिए इस सोच को बदलना जरूरी है। हमें पहला कदम देहरी के भीतर उठाना होगा। अपनी बेटियों को समान अवसर देने होंगे, साथ ही उनको सबल बनने की सीख बचपन से देनी होगी। वहीं बेटों को भी घर के काम करने की सीख देनी होगी, उनको यह भी बताना होगा कि उनकी बहनें और बाहर की दूसरी लड़कियां भी, हर मामले में उनके बराबर हैं। ऐसा होने पर ही पुरुषों में, महिलाओं के प्रति सम्मान का भाव जागृत होगा। यही सोच आगे चलकर देश, दुनिया में लैंगिक असमानता को दूर करेगी। महिला दिवस पर सभी लड़कियों, महिलाओं को मैं यही संदेश देना चाहूंगी कि आप मुखर बनें, अत्याचार का, गलत बात का विरोध करें। खुद को सबल, सशक्त बनाएं। तभी समाज में लैंगिक समानता संभव होगी।

परिवार-समाज को अपनी भूमिका निभानी होगी

रंजना कुमारी (Ranjana Kumari), सामाजिक कार्यकर्ता

लैंगिक समानता की राह में हर स्तर पर बाधाएं हैं। हर साल दुनिया में अनेक देशों की सरकारें, लैंगिक समानता के लिए प्रयास करने की बात करती हैं। लेकिन धरातल पर यह प्रयास कम ही नजर आते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। गंभीरता से सरकारों और प्रशासन को अपने स्तर पर इसके लिए प्रयास करने चाहिए। बिना ऐसा किए, हम एक दुनिया या देश के तौर पर कभी भी आगे नहीं बढ़ पाएंगे। लेकिन सिर्फ प्रशासन या सरकारों के काम करने से बड़ा बदलाव नहीं आएगा। इसके लिए परिवार और समाज को अपनी भूमिका निभानी होगी। क्योंकि आज भी हमारे परिवारों और समाज में बेटा-बेटी में भेद किया जाता है। सबसे पहले इस भेदभाव को खत्म करना है। हमें दोनों को ही समान अवसर देने होंगे। समान रूप से आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। इस काम में सबसे बड़ी भूमिका एक मां निभा सकती है। वह अपनी बेटियों को आगे बढ़ने में पूरा सपोर्ट करे। बेटों की भी ऐसी परवरिश करे कि वे किसी को भी कमतर ना समझें। मुझे भी मेरी मां ने बहुत सपोर्ट किया था, जब मैं आगे पढ़ना चाहती थी तो घर में दादी राजी नहीं थीं। तब मैंने घर में अनशन किया था, अपने हक की बात की थी। मां ने उस समय मुझे पूरा सपोर्ट किया था। ऐसे ही हर मां को अपनी बेटी का सपोर्ट करना चाहिए, हर महिला को दूसरी महिलाओं को सपोर्ट करना चाहिए। इससे लैंगिक समानता की उनकी लड़ाई बहुत हद तक आसान हो जाएगी। महिला दिवस पर महिलाओं को मैं यही कहूंगी कि आप मुखर बनें। अपने हक की बात करें। एक-दूसरे को सपोर्ट दें, आगे बढ़ने में मदद करें, तभी हमारा समाज लैंगिक समानता की तरफ बढ़ पाएगा।

प्रस्तुति- पूनम बर्त्वाल (Poonam Bartwal) 

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