पर्यावरण प्रदूषण के लिए किसान नहीं जिम्मेदार, वैज्ञानिकों को बदलने होंगे शोध के तरीके

लॉकडाउन की वजह हमें कितनी ही परेशानियां पिछले 39-40 दिन से क्यों न झेलनी पड़ रही हो। लेकिन हमारा पर्यावरण पूरी तरह से स्वच्छ बना हुआ है। यह पर्यावरणविदों के लिए काफी सुखद है। प्रदूषण को लेकर किसानों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा था। लेकिन अब लॉकडाउन के दौरान स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट हो गई है कि किसान प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार नहीं है। लॉकडाउन में फसल कटाई का सीजन चरम पर रहने के बाद भी आबोहवा एक दिन भी जहरीली नहीं हुई। वैश्विक महामारी की वजह से जहर उगलने वाले कल-कारखाने और वाहन पूरी तरह से बंद हैं। इससे प्रदूषण न केवल कम हुआ बल्कि सामान्य बना हुआ है। इसमें किसी को शक नहीं होगा कि जिस दिन लॉकडाउन खत्म होगा। फिर से आबोहवा जहरीली बन जाएगी। ऐसे में पर्यावरणविदों ने पर्यावरण को लेकर अपने शोध के आयाम बदलने होंगे। पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि सरकार की ठोस नीतियों के अभाव में हमने पर्यावरण को इतना जहरीला बना दिया है कि साल के 365 दिनों में से मुश्किल से 40-50 दिन ऐसे होते हैं, जब हमें सांस लेने को स्वच्छ हवा मिलती है। ये दिन तब होते हैं, जब झमाझम बारिश होती है। क्योंकि बारिश से जहरीले कण जमीन पर गिर जाते हैं और हवा स्वच्छ हो जाती है। बारिश का दौर जितना लम्बा चलता है, उतने दिन तक ही हमें हवा स्वच्छ मिलती है।;

Update: 2020-05-05 00:38 GMT

स्वच्छ आबोहवा को लेकर लॉकडाउन 3.0 में एक और रिकॉर्ड कायम हो गया। सोमवार 4 मई को रोहतक की आबोहवा दूसरी बार सबसे ज्यादा स्वच्छ रही। शाम को पौने छह बजे तक हवा इतनी शुद्ध हुई कि एयर क्वालिटी इंडक्स(एक्यूआई) 30 तक पहुंच गया। इससे पहले लॉकडाउन 1.0 के चौथे दिन 28 मार्च को एक्यूआई 26 दर्ज किया गया था।

लॉकडाउन में जहर उगलते वाहन और फैक्ट्री बंद होने की वजह से बीते 39 दिन में एक बार भी आबोहवा का खतरे के निशान तक पहुंचना तो दूर की बात है, उसके नजदीक भी नहीं पहुंची। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य तो यह भी है कि इन 39 दिनों में रबी फसलों की कटाई-कढ़ाई किसानों ने की। लेकिन आबोहवा में पीएम 2.5 की मात्रा सामान्य ही बनी रही।

अमूमन हर साल जब भी प्रदूषण का स्तर बढ़ता है तो इसका दोष किसानों के सिर यह कहकर मढ़ जाता है कि वे फसलों के अवशेष जलाते हैं। जिसकी वजह से प्रदूषण बढ़ता है। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि साल भर प्रदूषण का प्याला वाहनों और कल-कारखानों से निकलने वाली जहरीली गैसों की वजह से गले तक भरा रहता है। जब फसलों की कटाई-कढ़ाई शुरू होती है तो यह छलकने लगता है और निशाने पर किसान आ जाते हैं। जबकि वाहनों और फैक्ट्री के प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए ठोस काम सिस्टम द्वारा नहीं किए जाते हैं।

बारिश के बाद ऐसे कम होता गया प्रदूषण

बीते रविवार को बारिश से पहले शाम सात बजे एक्यूआई 67 पर था। इसके बाद तेज हवाओं के साथ बारिश हुई और प्रदूषण कम होना शुरू हुआ। हालांकि रविवार को भी आबोहवा सामान्य ही थी। लेकिन बारिश से स्वच्छता और बढ़ी। रविवार रात पौने बजे रोहतक का एक्यूआई 54 था। सोमवार को दोपहर पौने दो बजे यह 32 और फिर शाम को 3 बजकर 40 मिनट पर यह 31 हो गया। इसके बार पौने छह बजे इसमें एक अंक की और गिरावट हुई और 30 तक पहुंच गया।

अप्रैल 2019 पर डालें सरसरी नजरें

नेशनल इंडक्स एयर क्वालिटी के अनुसार वर्ष 2019 में 1 अप्रैल को आबोहवा में पीएम 2.5 की मात्रा 72,2 काे 114, 3 को 123, 4 को 159, 5 को 148, 6 को 185, 7 को 275, 8 को 344, 9 को 192, 10 को 127,

11 को 93,12 को 105, 13 को 99, 14 को 79, 15 को 90,16 को 120, 17 को 60, 18 को 84, 19 को 65,और 20 अप्रैल काे 93, 21 को 118, 22 को 146, 23 को 119, 25 को 242, 26 को 141, 27 को 203, 28 को 224, 29 को 235 और 30 अप्रैल को एक्यूआई 260 दर्ज किया गया।

अप्रैल 2020 पर डालें निगाहें

अप्रैल के 30 दिनों में से 7 दिन एक्यूआई 50 से नीचे रहा। 16 दिन 50-100 के बीच में और 7 दिन 100 से अधिक रहा। 100 अधिक रहने वाले दिन में वह दिन 5 अप्रैल भी शामिल है। जिस दिन लाेगों ने कोरोना महामारी को लेकर न केवल दीये जलाए। बल्कि पटाखे तक फोड़ डाले। इसकी वजह से आबोहवा में 24 घंटे में ही 45 अंकों की बढ़ोतरी दर्ज हो गई। 5 अप्रैल को पीएम 2.5 की मात्रा 58 थी, जो बढ़कर 6 अप्रैल को 103 तक पहुंच गई।

नेशनल इंडक्स एयर क्वालिटी के मुताबिक एक अप्रैल को आबोहवा में पीएम 2.5 की मात्रा 43, 2 को 40, 3 को 33, 4 को 47, 5 को 58, 6 को 103, 7 को 53, 8 काे 52, 9 को 66, 10 को 63, 11 को 65, 12 को 53, 13 को 86, 14 को 104, 15 को 186, 16 को 92, 17 को 56, 18 को 64, 19 को 38, 20 को 84, 21 को 54, 22 को 70, 23 को 143, 24 को 98, 25 को 26 को 101, 27 को 49, 28 को 67, 29 को 137 और 30 अप्रैल को रोहतक का एयर क्वालिटी सूचकांक 205 पर पहुंचा था।

किसानों पर न लगाए आरोप

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ते ही राजनीति शुरू हो जाती है। हरियाणा और पंजाब के किसानों पर आराेप लगाए जाते हैं कि वे फसल अवशेष जलाते हैं। जिसकी वजह से प्रदूषण बढ़ता है। लेकिन अब लॉकडाउन में यह प्रमाणित हो गया है कि प्रदूषण बढ़ाने के लिए किसान जिम्मेदार नहीं हैं। इसके लिए कोई भी अप्रैल 2020 में अप्रैल 2019 का तुलनात्मक अध्ययन कर सकता है। अप्रैल 2019 की बजाय अप्रैल 2020 में प्रदूषण नहीं रहा। इसकी वजह लॉकडाउन है। क्योंकि कारखाने और वाहन पूरी तरह से बंद हैं।

लॉकडाउन की वजह पर्यावरण कैसे स्वच्छ हुआ है, उसके आंकड़े एकत्रित किए जा रहे हैं। अब वैज्ञानिकों को शोध का के आयाम बदलने होंगे। पर्यावरण में प्रदूषण फैलाने के लिए जो कारक ज्यादा जिम्मेदार हैं, उनका अध्ययन करवाया जाना जरूरी है।

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