किंगमेकर रहे ताऊ देवीलाल को याद कर रहा हरियाणा
भारत के उपप्रधानमंत्री रहे ताऊ देवीलाल को किंगमेकर और जननायक कहा जाता है। आज उनकी पुण्यतिथि पर हरियाणा सहित देशभर में याद किया जा रहा है लेकिन ये पहली बार है कि कोरोना संक्रमण के चलते कहीं भी सार्वजनिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जा रहा है।;
हरिभूमि न्यूज। चंडीगढ। चौधरी देवीलाल बाल्यकाल से ही परोपकारी व कल्याणकारी कार्यो के लिए संघर्ष करने लगे जिसके लिए उन्हे पुलिस हिरासत तक का सामना करना पड़ा। उनके लिए जेल यात्रा एक धार्मिक यात्रा बन गई थी। उन्होने 15 वर्ष की आयु से ही जेल यात्रा का अनुभव हासिल कर लिया, जिससे उनका मनोबल टूटने की बजाए और मजबूत हो गया। वे अनेक बार जेल गए लेकिन किसान काश्तकार और कामगार के हकों के लिए अपना समस्त जीवन लगा दिया।
अखिल भारतीय शहीद सम्मान संघर्ष समिति एवं जाट सभा, चंडीगढ व पंचकूल के प्रधान पूर्व डीजीपी महेंद्र सिंह मलिक ने बताया कि चौ० देवीलाल का जन्म 25 सितंबर 1919 को तेजाखेड़ा, जिला बठिंडा, अब सिरसा में हुआ। उनकी 2750 बीघे जमीन पैतृक संपत्ति थी लेकिन चौ० देवीलाल बचपन से ही एक समाज सुधारक के तौर पर उभरे। जोड़-तोड़ और छल कपट की राजनीति उन्होने कभी भी नहीं की। वे सत्ता में रहे या विपक्ष में सदा गरीब मजदूर के हितों के लिए संघर्षरत रहे तभी वे ''ताऊ'' कहलाए। भारत की राजनीति में एकमात्र ताऊ चौ० देवीलाल ही कहलाए। हमारी संस्कृति में 'ताऊ' सबसे सम्मानित व्यक्ति रहा है। उनका जीवन सीधा-सादा और सरल था, लेकिन चिंतन उतना ही जटिल था। चौ० देवीलाल को कभी कोई जाति-पाति, धर्म, समुदाय, क्षेत्रीयता की हदें रोक ना पाइर्, वे सदा गरीब, मजलूम और मजबूर के हकों के लिए लड़ते रहे। उन्होंने अपनी ही भूमि मुजारों को सहर्ष सौंप दी तथा 1953 में काश्तकारों के हितों में विधानसभा से बिल भी पारित करवा दिया।
संयुक्त पंजाब में हिंदी भाषी क्षेत्र के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया जाता था और यहां के नागरिकों को भी उजड़ और फूहड़ माना जाता था। उन्होंने संघर्ष किया ताकि अलग राज्य बन सके तथा यहां के नागरिकों को सम्मानपूर्वक जीवन यापन का हक मिल सके। इनके प्रयासों से पहली नवंबर 1966 को हरियाणा एक अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। चौधरी साहब ने 'प्रशासन आपके द्वार' शुरू करवाया ताकि जनता की समस्याएं उनके द्वार पर ही निपटाई जा सकें। उनका मानना था कि 'लोक राज- रोक लाज' से चलता है। वे खुद जन सेवक बने रहे। मुख्यमंत्री के तौर पर उनके घर पर एक 'हुक्का हाउस' स्थापित किया गया। यहां वे स्वंय उसमें शामिल होकर जनता से सीधा संवाद करते, उनकी दुख तकलीफें सुनते और उनका समाधान करते।
किसान के लिए उनका हृदय सदा धडक़ता रहा। कर्ज, मर्ज और गर्ज से दबे किसान को उसके उत्पाद का उचित रेट-वेट-डेट मिले, के प्रबंध उन्होने किए। जैसा कि 'भ्रष्टाचार बंद, पानी का प्रबंध' किसान को उत्तम किस्म के बीज, खाद, दवा और तकनीक मिले और उसके उत्पाद का उचित दाम मिले। कृषि में किसान को लागत मुल्य से भी कम दाम मिलता है। चौधरी साहब ने कीटनाशक रहित कृषि को बढ़ावा दिया। अब 35 लाख एकड़ से भी अधिक भूमि पर कीट नाशक रहित कृषि हो रही है। मित्र कीटों पर अध्यापन और अनुसंधान के वे संदेशवाहक रहे। चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय के माध्यम से इस दिशा में अनुसंधान की प्रथा को बढ़ावा दिया और आज यह विश्वविद्यालय किसान विकास की ओर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
अपने संघर्षशील जीवन में चौ० देवीलाल हार-जीत का परवाह किए बिना निष्काम सेवा भाव से जनता का प्रतिनिधित्व करते रहे। वे सन् 1952, सन् 1959, सन् 1962 में तीन बार पंजाब विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए तथा सन् 1956 में तत्कालीन संयुक्त पंजाब में मुख्य संसदीय सचिव भी रहे। उन्होने हरियाणा बनने से पूर्व आम आदमी को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष किए। वे अपनी दूरदर्शी व पारदर्शी सोच के द्वारा हर प्रकार की समस्या का समाधान निकाल लेते थे। राष्ट्रहित में किसी भी राजनैतिक व सामाजिक मुद्दे पर वे अपने विरोधियों तक से भी सलाह-मशविरा करने में संकोच नहीं करते थे। आज समाज में अंतर्जातीय विवाह, सगोत्र विवाह व खाप पंचायतों के निर्णयों आदि से उत्पन्न विवादों के मामले तीव्र गति से बढ़ रहे हैं, जिससे समाज में अराजकता, अशांति का माहौल बनने के साथ-साथ ग्रामीण समाज में सदभावना व भाईचारे का माहौल खराब हो रहा है। इस प्रकार के सामाजिक मुद्दों पर अंकुश लगाने व स्थाई समाधान के लिए चौ० देवीलाल जैसे जनप्रिय व दूरगामी सोच के एक छत्र नेता की आवश्यकता है जो कि अपनी सूझबूझ व विवेक से समाज के विभिन्न वर्गों के साथ परस्पर बातचीत द्वारा इस प्रकार के मुद्दों का समाधान कर सके।
उनका मानना था कि गांवों के विकास के बिना राष्ट्र तरक्की नहीं कर सकता क्योंकि शहरों की समृद्धि का मार्ग गांवों से होकर गुजरता है। इसलिए अपने शासनकाल में ग्रामीण मजदूर व काश्तकारों के साथ अन्याय नहीं होने दिया परंतु विडंबना है कि आज मजदूर व किसान विरोधी नीतियों के कारण इस वर्ग की हालत काफी दयनीय हो गई है जिसकी किसी भी राजनेता तथा प्रशासन को सुध लेने की फुरसत नहीं है।
पुलिस प्रशासन को चुस्त-दुरूस्त करने हेतू पुलिस कर्मियों के लिए उन्हे समयबद्ध तरक्की देना, पूरे राज्य में खेलों को बढ़ावा देने के साथ-साथ पुलिस विभाग के खिलाडिय़ों को भी खेल जगत में अव्वल प्रदर्शन करने पर विशेष तरक्की देना व निरीक्षक के पद तक खिलाड़ी कोटे से 3 प्रतिशत विशेष भर्ती करने का प्रावधान आदि अनेकों कल्याणकारी योजनाएं शुरू की। कुश्ती जैसे परंपरागत खेल को पूरे राष्ट्र में सर्वप्रथम वर्ष 1988 में राज्य खेल घोषित किया और पुलिस में कार्यरत सिपाही (पहलवान) राजेन्द्र सिंह को वर्ष 1978 में बंैकाक में हुए काम्रवैल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीतने पर सीधा पुलिस निरीक्षक पदौन्नत कर दिया जो आई पी एस अधिकारी सेवा निवृत हुए। अत: वास्तव में प्रदेश में खेलों के विकास की परंपरा जन नायक चौधरी देवीलाल ने शुरू की थी।
चौ० देवीलाल ने अपने शासनकाल में सबसे पहले गरीब-मजदूरों, छोटे दुकानदारों व काश्तकारों के व्यावसायिक व कृषि ऋण माफ करके समाज के सभी वर्गों को राहत पहुंचाने का कार्यक्रम शुरू किया। इसके अतिरिक्त उन्होने काश्तकारों व छोटे दुकानदारों को बैंकों से सस्ते ब्याज पर ऋण उपलब्ध करवाने व कृषि के लिए बिजली, पानी, उत्तम बीजों, उर्वरकों को प्रचुर मात्रा में उपलब्ध करवाने तथा प्राकृतिक प्रकोपों से फसल नष्ट होने पर किसानों व काश्तकारों को उचित मुआवजा दिलवाने की व्यवस्था करके कृषि व इससे संबंधित कार्यों पर आधारित लगभग 80 प्रशित ग्रामीण जन संख्या के जीवन स्तर को सुधारने का प्रयास किया। किसान के खेत के चारों तरफ सामाजिक वानिकी के वे कर्णधार थे ताकि किसान की फसल का नुकसान भी ना हो और वृक्षों से अतिरिक्त आय भी हो सके बल्कि किसान के खेत के साथ लगे सरकारी वृक्षों से छाया की वजह से किसान को हो रहे नुकसान की भरपाई के लिए उन्होने वृक्ष की आमदन में आधा हिस्सा किसान को दिलवाया था।
वास्तव में चौ० देवीलाल एक ऐसी शख्सीयत थे जिन्होनें किसान व गरीब वर्ग की अवस्था को बहुत करीब से देखा है। किसी भी प्रकार की प्राकृतिक व राष्ट्रीय आपदा के दौरान वे स्वंय जनता जनार्दन के बीच पहुंचकर उनके दु:खों को बांटते थे। वर्ष 1977-79 के दौरान आई बाढ़ में ग्रामीण जनता व बाढ़ पीडि़तों की रक्षा के लिए प्रदेश का मुख्यमंत्री होते हुए स्वयं बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में जाकर सिर पर मिट्टी का टोकरा उठाकर जनता को अपनी रक्षा करने के लिए प्रेरित किया। सन् 1978 में पहली बार ओलावृष्टिï से बर्बाद हुई किसान की फ सल का 400 रूपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजा देकर काश्तकार व इससे जुड़े वर्गों को राहत पहुंचाने का कार्य शुरू किया। लेकिन आज किसान व गरीब वर्ग की समस्याओं के प्रति कुछ राज्य सरकारों के उदासीन रवैये के कारण यह वर्ग उपेक्षा के कगार पर है। प्रदेश में प्रतिवर्ष कभी बाढ़, कभी ओलावृष्टिï, कभी सूखा व अन्य प्राकृतिक प्रकोपों से लाखों एकड़ फ सल तथा सैंकड़ों व्यक्तियों के घर नष्ट हो जाते हैं ,इसलिए आज चौ० देवीलाल जैसी शख्सीयत की अत्यंत आवश्यकता है जो जनता की समस्याओं को समझते हुए व्यक्तिगत तौर से रूचि लेकर उनके समाधान के लिए सुचारू कार्यक्रम निर्धारित कर सके।
चौ० देवीलाल का राजनैतिक जीवन एक खुली किताब की तरह पारदर्शी रहा है। उन्हे जोड़-तोड़ की राजनीति से सख्त नफरत थी। उनका मानना था कि राजनीति में भ्रष्टाचार एक विष की तरह है जिससे जनमानस की आकांक्षाओं का हनन होता है और लोकतत्र पर प्रहार होता है। इसलिए साऊ-सुथरेे व कुशल प्रशासन से ही सुदृढ़ प्रजातंत्र का मार्ग प्रस्त हो सकता है। अपनी ईमानदारी एवं निर्भिकता के वे कारण बड़े से बड़े राजनेताओं का विरोध करने से भी नहीं हिचकिचाए और जनमानस के प्रतिनिधि के तौर पर सशक्त भूमिका निभाते रहे। उनका मानना था कि जब तक हमारी संसद एवं विधानसभा में सिद्धांतवादी, कत्र्तव्यनिष्ठ, निर्भिक, निर्लोभी व समर्पित व्यक्तित्व नहीं प्रवेश करेगें तब तक संसद की संपूर्ण कार्यवाही कुछ व्यक्तियों तक ही सीमित रहेगी और लोकतंत्र के स्थान पर निरंकुशता बढ़ती रहेगी। वे जनता के मन से डर निकालकर उन्हे अपने अधिकारों व हितों के प्रति जागरूक करना चाहते थे।
चौ० देवीलाल एक महान त्यागी व तपस्वी व्यक्तित्व के धनी थे। इसका जीता-जागता उदाहरण यह है कि एक प्रभावशाली, कुशल राजनीतिज्ञ तथा सफल नेतृत्व के धनी होते हुए भी उन्होंने दो बार अपने सिर से प्रधानमंत्री का ताज उतार कर श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह व चंद्रशेखर के सिर पर रख दिया। उनके इस महान त्याग की भावना से आज उनके विरोधी भी मात खा रहे हैं। ऐसा उदाहरण भारतवर्ष के इतिहास में शायद ही देखने को मिलेगा। वे हमेशा ऐसी व्यवस्था के पक्षधर रहे हैं जो कि शोषित व पीडि़त वर्ग को अपनी अस्तित्व की लड़ाई लडऩे के लिए प्रेरित करती रहे। चौ० देवीलाल ने सदैव राजनेताओं के लिए लोकलाज के आदर्श पर आचार संहिता स्थापित करने पर बल दिया ताकि राजनीति में अनैतिकता को रोका जा सके। वे हमेशा कहते थे ''मैं कभी भी सत्ता के पीछे नहीं भागा क्योंकि मैं हमेशा ऐसे लोगों के साथ रहा हूं जो सत्ता से बाहर रहकर भी अपनी न्यायोचित मांगों के लिए संघर्षरत रहे हैं।'' इसीलिए ताऊ देवीलाल ने सतलुज यमुना लिंक नहर के मुद्दे पर 14 अगस्त 1985 को 7 अन्य विधायकों के साथ विधानसभा से इस्तिफा दे दिया और 1987 में पुन: चुने गए।
चौ० देवीलाल सन् 1987 में हरियाणा के पुन: मुख्यमंत्री बने और मुख्यमंत्री का पद संभालते ही उन्होनें अधिकारी वर्ग व चहेते राजनीतिज्ञों को स्वैच्छिक कोटे के तहत आंबटित किए जाने वाले हुडा के प्लाटों की सूची को रद्द कर दिया। चौधरी साहब की यह कार्यवाही लोकतांत्रिक प्रणाली को सुदृढ़ करने तथा प्रशासन में राजनैतिक दखल अंदाजी समाप्त करने का एक अहम प्रयास था। उनकी सरकार जनता की सरकार थी और उनकी राज्य प्रशासनिक व्यवस्था सरल, दक्ष, व्यवहारिक तथा पारदर्शी रही है। समाज के गरीब व शोषित वर्ग के उत्थान व कल्याण हेतू वृद्धावस्था पैंशन, विधवा पैंशन, काम के बदले अनाज योजना, घुमंतू परिवारों के बच्चों के लिए एक रूपया प्रति दिन, बेरोजगार नवयुवकों को साक्षात्कार के लिए जाने हेतू मुफत यात्रा सुविधा, गांव-गांव में हरीजन चौपाल, हरीजन व गरीब महिलाओं के लिए जच्चा-बच्चा योजना, काश्तकार के खेत के साथ लगते सरकारी वृक्षों में जमींदार का आधा हिस्सा दिलाने, किसान-मजदूरों व छोटे दुकानदारों को ऋण माफ ी दिलाना आदि महत्वपूर्ण समाज कल्याण योजनाएं लागू की जिनको आज सारे राष्ट्र में अनुशरण हो रहा है। इन योजनाओं को आज के संघर्षपूर्ण जीवन में अधिक प्रभावी व सुचारू रूप से जारी रखने की नितांत आवश्यकता है अन्यथा ग्रामीण, मजदूर व किसान वर्ग का विकास संभव न होगा।
आज आवश्यकता है कि ताऊ देवीलाल की नीतियों व सिद्धांतों का अनुशरण किया जाए। इससे सरकारी नीति व कार्यशैली निर्धारण में मदद मिलेगी। चौधरी साहब की जन कल्याणकारी योजनाओं व निश्छल राजनीति से प्ररेणा लेकर प्रशासनिक व राजनैतिक तंत्र की विचारधारा को बदलने की नितांत आवश्यकता है ताकि ग्रामीण गरीब-मजदूर व किसान वर्ग के कल्याण व उत्थान के साथ-साथ स्वच्छ प्रशासन के लिए मार्ग प्रशस्त हो सके। वास्तव में ताऊ देवीलाल गरीब व असहाय समाज की आवाज को बुलंद करने वाले एक सशक्त प्रवक्ता थे इसलिए आज जन साधारण विशेषकर ग्रामीण गरीब-मजदूर, कामगार व छोटे काश्तकारों को अपने अधिकारों व हितों के प्रति जागरूक करने की आवश्कता है ताकि दलगत राजनीतिज्ञ व संबंधित प्रशासन इनके हितों की अनदेखी न कर सकें तभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का एक स्वावलंबी व स्वस्थ ग्रामीण समाज का सपना पूरा किया जा सकता है। किसान, कामगार, काश्तकार का दर्द सीने में समेटे हुए धरती पुत्र एवं जगत ताऊ 6 अप्रैल 2001 को इसी मातृभूमि में विलीन हो गए।
वर्तमान समय में अगर चौधरी देवीलाल जीवित होते तो कोरोना वायरस की महामारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए स्वयं जनता के बीच जाकर उनको इससे बचने के लिए प्रेरित करते।अत: एक उदार हृदय एवं महान आत्मा - ताऊ देवीलाल को लेखक सदैव नत मस्तक होकर प्रणाम करता रहेगा। लेखक महेंद्र सिंह मलिक 1977 से 1979, 1987 से 1989 तथा अगस्त-सिंतबर 1999 से 2001 तक चौधरी देवीलाल के नजदीकी प्रशासनिक अधिकारी तथा पुलिस प्रमुख (गुप्तचार विभाग) रहे हैं।