पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पीटीआई की याचिका पर सरकार से मांगा जवाब

हटाए गए पीटीआई ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर हरियाणा सरकार के 28 व 29 मई के उस आदेश पर रोक की मांग की है जिसके तहत तीन दिन के भीतर सभी टीचर की सेवा समाप्त करने के आदेश जारी किए गए।;

Update: 2020-06-03 14:24 GMT

चंडीगढ़ । पंजाब एवं हरियाण हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार (Haryana Government) को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। इस मामले में हटाए गए पीटीआई ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर हरियाणा सरकार के 28 व 29 मई के उस आदेश पर रोक की मांग की है जिसके तहत तीन दिनके भीतर सभी टीचर की सेवा समाप्त करने के आदेश जारी किए गए। याचिका में बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने उनकी एसएलपी को खारिज करते हुए सरकार को पांच महीने के भीतर नई नियुक्ति करने का आदेश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने उनको हटाने के बारे कोई आदेश जारी करने को नही कहा था। याची ने कोर्ट को बताया कि नई भर्ती में पांच माह का समय लगेगा तब तक स्कूलों में पीटीआई टीचर का काम कौन करेगा। याची ने हाई कोर्ट से मांग कि जब तक नई भर्ती नही होती तब तक उनको हटाया ना जाए। हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुननें के बाद सरकार को नोटिस जारी कर जवाब देने का आदेश दिया है।

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में हाई कोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया था जिसमें हाई कोर्ट ने हुडा सरकार के दौरान भर्ती किए गए 1983 पीटीआई टीचर की भर्ती को रदद कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को एक तय समय में नए सीरे से भर्ती करने का भी आदेश दिया था। इससे पहले हाई कोर्ट की एकल बेंच ने 11 सितम्बर 2012 को भर्ती रद्द करने का फैसला दिया था। जिसके बाद 30 सितम्बर 2013 को हाईकोर्ट की डिविजन बैंच ने भी एकल बैंच के आदेश पर मुहर लगा दी थी। हरियाणा स्टाफ सलेक्शन कमीशन ने 10 अप्रैल 2010 को फाइनिल सिलेक्शन लिस्ट जारी कर यह नियुक्तियां की थी। हाईकोर्ट ने कमीशन को निर्देश जारी किए था कि आयोग नियमों के तहत नए सिरे से भरती प्रक्रिया शुरू करे और पांच महीने के अंदर इस भरती प्रक्रिया को पूरा कर लिया जाए। हाईकोर्ट ने इस नियुक्ति प्रक्रिया में आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठाया था। हाईकोर्ट ने कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान साक्षात्कार होल्ड करवाने वाले आयोग की सिलेक्शन कमेटी के सदस्यों द्वारा कार्यवाहियों में शामिल न होने से आयोग की नाकारात्मक छवि को उजागर करता है।

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