Lockdown : साहब ! बस किसी तरह घर वापसी की व्यवस्था करवा दो, खेतों में मेहनत कर पेट भर लेंगे
लॉकडाउन (Lockdown) के बीच फरीदाबाद के विभिन्न हिस्सों में फंसे रह गए हजारों मजदूरों का अब धैर्य जबाव दे गया है। बड़ी तादाद में प्रवासी मजदूर यूपी-बिहार के लिए पैदल ही निकल पड़े हैं। इनमें महिलाएं से लेकर छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल हैं।;
फरीदाबाद। मई की चिलचिलाती धूप में खुले आसमान के नीचे घण्टों से बिना कुछ खाए पिए घर वापस जाने की जिद पर अड़े मजदूर बस एक ही रट लगाए हुए है कि साहब बस किसी तरह हमें अपने घर भिजवा दो। हम वहां अपने खेतों में कड़ी मेहनत कर अपना व अपने परिवार का पेट तो भर ही लेंगे। कम से कम भूखो तो नही मरेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना की रोकथाम के लिए किए गए लंबे लॉकडाउन में फरीदाबाद के विभिन्न हिस्सों में फंसे रह गए हजारों बिहार व यूपी के मजदूरों का अब धर्य जबाव दे गया है। देश के अन्य हिस्सों की तरह ही यहां फंसे मजदूरों ने भी अब पलायन करना शुरू कर दिया है। मजदूर अपने कपड़े-चिमटे लेकर व कमरों पर ताला जड़कर हाईवे व रेलवे स्टेशन की ओर निकल लिए है तथा इस ओर जाने वाले रास्तों पर जिधर निगाह पड़ती है उधर परेशान प्रवासी मजदूर ही नजर आते है।
हाल चाल जाना तो उनका दर्द बाहर निकल पड़ा
ओल्ड फरीदाबाद के समीप ही स्थित अन्डर पास की दीवार के सहारे तपती धूप के नीचे भूखे प्यासे खड़े ऐसे ही मजदूरों से जब हरिभूमि संवाददाता ने हाल चाल जाना तो उनका दर्द बाहर निकल पड़ा और फूट-फूट कर रोते हुए अपनी आपबीती सुनाने लगे। बिहार के गया जिला निवासी मुन्ना यादव ने बताया कि लॉकडाउन होने के बाद भी वह व उनके कुछ साथी इस आस में यहां रुक गए की एक न एक दिन तो लॉकडाउन खुल ही जाएगा व उनको फिर से रोजगार मिल जाएगा। इस आस में वह उस पूंजी को भी खर्च बैठे जो कि उन्होंने मेहनत मजदूरी कर कमाई थी और इसलिए बचा कर रखी थी जब घर जाएगे तो ले जाएगे और टूटी छांन पर फूंस रखवा लेंगे या और कई जरूरी कार्य कर लेंगे।
भूखे पेट घर जाने की आस संजोए बैठे
शुरुआती दिनों में उनके खाने की व्यवस्था की गई किन्तु पिछले कई दिनों से तो कोई उनसे यह पूछने भी कोई नही आया की वह भूखे है या प्यासे है। वह कमाए गए सारे पैसों को यहीं खर्च कर बैठे है तथा घर जाने तक के पैसे उनके पास नही रह गए है। यहां तक की पैसे न होने की स्थिति में कई दिनों से उनके पेट में अन्न का एक दाना भी नही गया है। भूखे पेट घर जाने की आस संजोए बैठे ऐसे ही कई अन्य मजदूर बस एक ही रट लगाए हुए थे कि साहब हमको बस किसी तरह घर जाने की व्यवस्था करवा दो। हम अपने गांव में जाकर अपने खेतों में कड़ी मेहनत कर अपने परिवार का पेट अवश्य ही पाल लेंगे और अगर भूखों मरना भी अगर नसीब में हुआ तो कम से कम अपने परिजनों के बीच तो मरेंगे। कुछ सहासी मजदूरों का तो यहां तक कहना था कि वह हुनरमंद है तथा घर वापस पहुंच कर कोई छोटा-मोटा अपना ही काम शुरू कर देंगे तथा अपनी गुजर-बसर के साथ-साथ देश के विकास में योगदान देंगे।