Jallianwala Bagh Massacre: जलियांवाला बाग जहां एक जनरल के इशारे ने ली थी हजारों जानें, जानिए क्या है इसकी कहानी
Jallianwala Bagh Massacre: हमारे देश में अंग्रेजो (British Rule) ने 200 साल राज किया, इस दौरान उन्होंने भारतीयों (Indians) को कई तरह की यातनाएं दी। ब्रिटिश सरकार (British Government) ने हर तरीके से भारतीय नागरिकों का शोषण किया। अपने शासन के दौरान अंग्रेजों ने 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड को अंजाम दिया जिसमें हुए खून खराबे के निशान उस जगह पर मौजूद है। यहां हम उस नृशंस हत्याकांड के बारे में बात करेंगे।;
Jallianwala Bagh Massacre: हमारे देश में अंग्रेजो (British Rule) ने 200 साल राज किया, इस दौरान उन्होंने भारतीयों (Indians) को कई तरह की यातनाएं दी। ब्रिटिश सरकार (British Government) ने हर तरीके से भारतीय नागरिकों का शोषण किया। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हमारे हजारों देशवासियों की जानें गईं और उस समय भारतीयों द्वारा किए गए कड़े संघर्षों के बाद जाकर भारत को स्वतंत्रता (India's Freedom) हासिल हुई। भारत के इतिहास (Indian History) में 13 अप्रैल 1919 का दिन काले अक्षरों में लिखा गया है, इसी दिन देश में एक ऐसा नरसंहार हुआ जब निहत्थे भारतीय जिसमें औरतें, बच्चे और बुजु्र्ग भी शामिल थे उन पर गोलियों की बरसात कर दी गई। वो मनहूस दिन था 13 अप्रैल 1919 का बैसाखी मनाने के लिए हजारों की संख्या में लोग जलियांवाला बाग(Jallianwala Bagh Massacre) में इकट्ठा हुए थे। कल यानी बुधवार को ब्रिटिश सरकार के इस नृशंस कृत्य को 103 साल पूरे हो जाएंगे। तो चलिए यहां हम आपको बताते हैं कि बैसाखी की उस रोज क्या हुआ था, जिसके निशान आज भी जलियांवाला बाग में मौजूद हैं।
हत्याकांड से पहले
1914-1918 प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत की ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी आपातकालीन शक्तियों की एक श्रृंखला बनाई जिसका उद्देश्य विध्वंसक गतिविधियों का मुकाबला करना था। युद्ध के अंत तक, भारतीय जनता में उम्मीदें अधिक थीं कि इनमें ढील दी जाएगी और भारत को अधिक राजनीतिक स्वायत्तता दी जाएगी। 1918 में ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट ने वास्तव में सीमित स्थानीय स्वशासन की सिफारिश की थी। इसके बजाय, भारत सरकार ने 1919 की शुरुआत में रॉलेट एक्ट पारित किया, जिसने अनिवार्य रूप से दमनकारी युद्धकालीन उपायों को बढ़ाया।
इस एक्ट ने विशेष रूप से पंजाब क्षेत्र में भारतीयों के बीच क्रोध और असंतोष की स्थिती को पैदा कर दिया। अप्रैल की शुरुआत में महात्मा गांधी ने पूरे देश में एक दिवसीय आम हड़ताल का आह्वान किया। अमृतसर में प्रमुख भारतीय नेताओं को उस शहर से गिरफ्तार कर लिया गया और 10 अप्रैल को हिंसक विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसमें सैनिकों ने नागरिकों पर गोलियां चलाईं, इमारतों को लूट लिया गया और जला दिया गया, और गुस्साई भीड़ ने कई विदेशी नागरिकों को मार डाला और एक ईसाई मिशनरी को बुरी तरह पीटा। ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर के नेतृत्व में कई दर्जन सैनिकों का एक दल को व्यवस्था बहाल करने का काम दिया गया, जिसने सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिए गए।
13 अप्रैल 1919, जलियांवाला बाग
13 अप्रैल की दोपहर को, जलियांवाला बाग में कम से कम 10,000 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की भीड़ जमा हो गई। इस मैदान में आने-जाने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता था जबकि चारों ओर ऊंची दीवारें थी। यहां पर कुछ लोग सार्वजनिक सभाओं पर लगे प्रतिबंध का विरोध कर रहे थे तो कुछ आसपास के क्षेत्र से बसंत उत्सव बैसाखी का त्यौहार मनानें के लिए एकत्रित हुए थे। जनरल डायर को जब इस बात की खबर लगी तो वह अपने सैनिकों और हथियारों के साथ वहां पहुंच गया। वहां पहुंचने पर उसने बिना कुछ सोचे समझे दरवाजे को घेर कर बंद कर दिया। फिर वो हुआ जिसकी कल्पना मात्र से किसी की भी रूह कांप सकती है। बिना किसी चेतावनी और ये सोचे कि इनमें से कितने दोषी हैं और कितने निर्दोष, जनरल डायर के एक इशारे पर सैनिकों ने भीड़ पर गोलियां बरसानी शुरु कर दीं। कहते हैं कि उस समय जब तक कि उनके पास गोला-बारूद खत्म नहीं हो गया तब तक सैकड़ों राउंड फायरिंग की गई। इस बात का कोई फिक्स नंबर नहीं है कि इस दिन कितने लोग मारे गए, लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जनरल डायर और उसके सैनिकों ने 379 लोगों की जान ली थी और लगभग 1,200 लोगों को घायल कर दिया था। गोलीबारी बंद करने के बाद जनरल और उसके सैनिक घायलों को पीछे छोड़कर वापस लौट गए। कहते हैं कि जब गोलियां चल रही थी लोग जान बचाने के लिए कुएं में कूद गए और कईयों ने अपनी जान बचाने के लिए दीवार पर चढ़ कर छलांग लगाने की कोशिशें की थी।
हत्याकांड के बाद क्या हुआ
शूटिंग के बाद पंजाब में मार्शल लॉ की घोषणा की गई जिसमें सार्वजनिक कोड़े लगने और अन्य अपमान शामिल थे। शूटिंग और उसके बाद की ब्रिटिश कार्रवाइयों की खबर पूरे भारत में फैलते ही भारतीयों के बीच आक्रोश बढ़ गया। बंगाल के प्रसिद्ध कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने 1915 में प्राप्त नाइटहुड का त्याग कर दिया। गांधी शुरू में कार्य करने से हिचकिचा रहे थे, लेकिन उन्होंने जल्द ही अपना पहला बड़े पैमाने पर और निरंतर अहिंसक विरोध (सत्याग्रह) अभियान, असहयोग आंदोलन (1920-22) का आयोजन करना शुरू कर दिया। इस आंदोलन ने उन्हें भारतीय राष्ट्रवादी संघर्ष में प्रमुखता प्रदान की। अमृतसर में जलियांवाला बाग स्थल अब एक राष्ट्रीय स्मारक है। जलियांवाला बाग को एक संग्राहलय बनाया गया है जहां पर आपको इस हत्याकांड जुड़ी सभी जरूरी जानकारी मिल जाएगी।
जनरल डायर का क्या हुआ
भारत सरकार ने घटना (Hunter Commission) की जांच का आदेश दिया, जिसने 1920 में डायर को उसके कार्यों के लिए निंदा की और उसे सेना से इस्तीफा देने का आदेश दिया। हालांकि, नरसंहार के लिए ब्रिटेन में प्रतिक्रिया मिली-जुली थी। कई लोगों ने डायर के कार्यों की निंदा की- जिसमें सर विंस्टन चर्चिल, तत्कालीन युद्ध सचिव, 1920 में हाउस ऑफ कॉमन्स के एक भाषण में शामिल थे। लेकिन हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने डायर की प्रशंसा की और उन्हें "पंजाब के उद्धारकर्ता" के आदर्श वाक्य के साथ एक तलवार दी। इसके अलावा, डायर के हमदर्दों द्वारा एक बड़ा फंड जुटाया गया और उसे भेंट किया गया। इस घटना के 21 सालों बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ'डायर भाषण देने पहुंचा था। सरदार उधम सिंह उस बैठक में पहुंचे और किताब में छिपाकर लाई गई रिवॉल्वर से उन्होंने डायर पर गोलियां दाग दी। इनमें से दो गोलियां जनरल 'ओ' डायर को लगी जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई।