एशियन गेम्स मेडलिस्ट दीपक पूनिया के पिता बोले- मेरा एक सपना था, जो मेरा बेटा पूरा कर रहा है...

पहलवान दीपक पूनिया झज्जर जिले के गांव छारा से हैं। इनके पिता सुभाष छोटे किसान थे, दूध भी बेचते थे। अपने समय में पहलवानी करते थे और इन्होंने भी विश्व में तिरंगा लहराने का ख्वाब देखा था।;

Update: 2023-10-08 08:30 GMT

मनीष कुमार. बहादुरगढ़। हर खिलाड़ी की तरह मेरा भी एक सपना था, देश के लिए गोल्ड मेडल लाना। जो मैं करना चाहता था, वो मेरा बेटा करके दिखाएगा और अपना तिरंगा सबसे ऊपर लहराएगा। ये लाइनें कुश्ती पर बनी फिल्म में एक पिता द्वारा कही गई, जो असल जिंदगी में एशियन गेम्स मेडलिस्ट दीपक पूनिया और उसके पिता सुभाष पर भी बिलकुल फिट बैठती हैं। पिता के त्याग-समर्पण और बेटे के संघर्ष की कहानी आज देश को गौरवान्वित कर रही है।

दरअसल, पहलवान दीपक पूनिया झज्जर जिले के गांव छारा से हैं। इनके पिता सुभाष छोटे किसान थे, दूध भी बेचते थे। अपने समय में पहलवानी करते थे और इन्होंने भी विश्व में तिरंगा लहराने का ख्वाब देखा था। हालात ऐसे बने कि खेल छोड़ना पड़ा और परिवार की जिम्मेदारियों में उलझते चले गए। वर्ष 1999 में दीपक पैदा हुआ। पहलवानों का गांव होने के कारण मिट्टी में कुश्ती रमी हुई थी और दीपक भी इससे अछूता न रहा। नन्ही उम्र में ही पिता सुभाष ने उसको गांव में ही आर्य वीरेंद्र के अखाड़े में छोड़ दिया। वहां आर्य वीरेंद्र से कुश्ती की एबीसीडी सीखनी आरंभ की। दीपक ने अपने पिता की आंखों में उनके सपनों को पढ़ लिया था। यही वजह थी कि बाल अवस्था में ही यह प्रतिभाशाली सबको प्रभावित करने लगा। परिवार इतना संपन्न नहीं था, लिहाजा मुश्किलें भी बहुत आई लेकिन पिता सुभाष ने उन तमाम मुश्किलों को अपने बेटे की राह में नहीं आने दिया। एक समय ऐसा भी आया कि उन्हें बेटे के लिए काम तक छोड़ना पड़ गया। उसे नामी पहलवान बनाने के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया। उसे दंगल में छोड़ने जाते। दिल्ली गया तो रोजाना उसकी डाइट देने जाते।

पिता के समर्पण और बेटे के संघर्ष की इस कहानी का सुखद परिणाम तब सामने आया, जब दीपक ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़नी शुरू की। वर्ष 2018 में स्लोवाकिया में हुई जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में पदक जीता। फिर मुड़कर नहीं देखा। अगले साल इसी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक झटक डाला। एशियाई चैंपियनशिप में 2019 में रजत, 2020 में कांस्य, 2021 में रजत और 2022 में रजत जीता। हालांकि इस बीच बुरा दौर भी आया। इस चैंपियन ने अपनी मां को खो दिया। लेकिन फिर से उठ खड़ा हुआ। अपने वर्ग में वर्ल्ड चैंपियन बन चुके दीपक ने 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता और टोक्यो ओलंपिक में भी देश का प्रतिनिधित्व किया है। अब चीन में मेडल जीतकर अगले ओलंपिक के लिए अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। अर्जुन अवॉर्ड प्राप्त कर चुके दीपक सेना में सूबेदार हैं। दीपक का लक्ष्य ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतना है।

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