बाढ़सा एम्स : विश्राम सदन के उद‍्घाटन में न बुलाने पर दीपेंद्र हुड‍्डा नाराज, कह दी बड़ी बात

सांसद दीपेंद्र ने कहा कि एम्स-2 बाढ़सा परिसर स्थित कैंसर संस्थान के विश्राम सदन के उद्घाटन समारोह में अगर उन्हें बुलाया जाता तो वे प्रधानमंत्री जी से बाकी बचे 10 मंजूरशुदा संस्थानों को बनवाने की अपील करते।;

Update: 2021-10-21 13:02 GMT

चंडीगढ़। सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने आज एक बार फिर प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में न बुलाने पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई और कहा ऐसी हरकतों से मेरी आवाज को दबाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि एम्स-2 बाढ़सा परिसर स्थित कैंसर संस्थान के विश्राम सदन के उद्घाटन समारोह में अगर उन्हें बुलाया जाता तो वे प्रधानमंत्री जी से बाकी बचे 10 मंजूरशुदा संस्थानों को बनवाने की अपील करते। यूपीए सरकार के दौरान मंजूरशुदा संस्थानों के निर्माण की मांग उठाना सांसद होने के नाते मेरा कर्तव्य और प्रधानमंत्री का दायित्व बनता है। उन्होंने कहा कि राजनीति में आने से पहले वे खुद इंफोसिस में काम कर चुके हैं और उन्होंने भी इंफोसिस फाउंडेशन से इस विश्राम सदन के निर्माण का अनुरोध किया था।

उन्हें खुशी है कि आज यह विश्राम सदन बनकर तैयार हो गया है, इसके लिये वो इन्फोसिस फाउंडेशन का धन्यवाद करते हैं। लेकिन, सांसद दीपेन्द्र ने इस बात की पीड़ा व्यक्त करी कि यूपीए सरकार के समय काफी मेहनत से मंजूर कराये गए बाकी बचे 10 संस्थानों के काम में एक इंच भी प्रगति नहीं हुई। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में मुझे न बुलाने से मेरी आवाज़ कमजोर नहीं पड़ेगी। वो यूपीए सरकार के समय मंजूर कराये गये इन सभी 11 संस्थानों के निर्माण होने तक चुप नहीं बैठेंगे और पूरी ताकत से अपनी आवाज उठाते रहेंगे।

उन्होंने कहा कि यदि मुझे समारोह में शामिल होने का मौका दिया जाता तो प्रधानमंत्री जी का स्वागत करता और इस पूरे प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से बताता कि कब मंजूर हुआ, कब टेंडर हुआ, कब काम हुआ और क्या काम अब बचा हुआ है और उन्हें पूरा कराने की अपील भी प्रधानमंत्री जी से करता। उन्होंने कहा कि वे इस संस्थान से अंतर्रात्मा से जुड़े हुए हैं। क्योंकि उन्होंने UPA सरकार के समय अथक प्रयास करके इस पूरी स्वास्थ्य परियोजना की परिकल्पना करके उसे मंजूर कराया, बजट दिलवाया, एम्स-2 ओपीडी और NCI का काम कराया। उनके लिए महम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और सोनीपत रेल कोच फैक्ट्री की तरह ही ये प्रोजेक्ट भी राजनीतिक जीवन के सबसे महत्त्वाकांक्षी प्रोजेक्ट हैं।

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