मिलावटखोरी का काला कारोबार : 60 रुपये का रिफाइंड, 40 का वनस्पति और 10 रुपये का इम्पोर्टेड सेंट, तैयार हो गया एक किलो देसी घी
त्योहारी सीजन में इसी एडिबल ऑयल को देसी घी की मिठाइयां का नाम से बेचा जाता है क्योंकि खास तरीके से उबाले गए इस मिक्सचर के साथ इम्पोर्टेड सेंट से इसकी खूश्बू हूबहू देसी घी के जैसे हो जाती है। हिसार जिले में इस समय करीब डेढ़ दर्जन फैक्ट्रियां हैं और इस समय कई जगह में यही मिलावट का धंधा चल रहा है। कुछ लोग बिना फैक्टरी के चोरी-छुपे भी नकली लेवल लगाकर उपभोक्ताओं की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं।;
डॉ. अनिल असीजा : हिसार
यह खबर आपको दुखी और स्तब्ध करने वाली है। बाजार से जिसे देसी घी समझकर आप घर ले आते हैं वह असल में रिफाइंड ऑयल और वनस्पति घी का प्योर मिश्रण है। अनजाने में इसी घी का दीया आप अपने आराध्य देवी-देवता के समक्ष जलाते हैं। उस डिब्बे पर गौर करेंगे तो अंग्रेजी के साफ अक्षरों में एडबल ऑयल (खाद्य योग्य तेल) अंकित होता है। यह बात न तो आपको दुकानदार बताता है और न आपका दिमाग इस ओर सोचता है। यह पता लगने पर अगली बार आप इस देसी घी समझे जाने वाले मिश्रण को खाना तो दूर, उसे छूने से पहले भी कई बार सोचेंगे। त्योहारी सीजन में इसी एडिबल ऑयल को देसी घी की मिठाइयां का नाम से बेचा जाता है क्योंकि खास तरीके से उबाले गए इस मिक्सचर के साथ इम्पोर्टेड सेंट से इसकी खूश्बू हूबहू देसी घी के जैसे हो जाती है। जिले में इस समय करीब डेढ़ दर्जन फैक्ट्रियां हैं और इस समय कई जगह में यही मिलावट का धंधा चल रहा है। कुछ लोग बिना फैक्टरी के चोरी-छुपे भी नकली लेवल लगाकर उपभोक्ताओं की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि जिले में प्रतिदिन करीब दो हजार टिन की तेल बिक्री हो रही है। आलम यह है कि किसी भी जिले में वर्षभर में खाद्य सुरक्षा अधिकारी को सौ नमूने लेने का लक्ष्य दिया जाता है। ज्यादातर जिलों में अधिकारी तो नमूने लेने का लक्ष्य भी पूरा नहीं कर पाते हैं। कुछ अरसा पहले हांसी निवासी एक व्यक्ति फतेहाबाद में बिना एफएसएसआई लाइसेंस देसी घी बेचने पर पकड़ा गया था। बाहरी पैकिंग पर जो नम्बर दिए गए थे वह भी फर्जी निकले थे।
मिलावटी घी बनाने की लागत पैकिंग समेत बमुश्किल 130 रुपये प्रति किलोग्राम ही होती है। नकली घी बनाने के बाद वे एजेंट को केवल 10 रुपये मुनाफे के साथ बेच देते हैं। ये एजेंट बड़े विक्रेताओं को 160 रुपये तक बेचते हैं और छोटी दुकान वाले इसे 350 रुपये में लेते हैं। अब बारी आती है खरीदार की जो 500 रुपये में नकली घी खरीदता है। इतनी ऊंची कीमत पर उसे असली के नाम पर ठगा जाता है। अधिक मुनाफे के लालच में बनावटी सामान तैयार करने वाले लोग और दुकानदार दोनों मालामाल होते हैं। इन्हें किसी की सेहत से लेना देना नहीं है।
ऐसा बनता है मिलावटी घी
सबसे पहले वनस्पति घी को धीमी आंच पर पकाया जाता है। करीब एक घंटे तक भूनने पर सोंधी-सोंधी खुशबू आने लगती है। करीब 40 प्रतिशत रिफाइंड के साथ उसी वनस्पति घी को करीब 3-4 घंटे तक पकाया जाता है। इस दौरान एक व्यक्ति मिश्रण को लगातार कड़छी से घोटते रहता है। कुछ फैक्टरी संचालक एक बर्तन में पानी और सोडे में जानवरों की चर्बी वाले मिश्रण को छानने के बाद रिफाइंड व वनस्पति को इसमें मिलाते हैं। जब तक इसका रंग कुछ पीला न हो जाए, इसे ठंडा होने दिया जाता है। देसी घी की तरह दिखने वाली यही चीज असल में जानवरों की चर्बी का तेल होती है। फिर, अन्य सामग्रियों को मिलाकर तैयार किए जाने वाले नकली घी को शुद्ध देसी घी के नाम पर पैक कर खुले बाजार में बेच दिया जाता है। नकली देसी घी को तैयार करने के लिए हानिकारक इम्पोर्टेड सेंट का प्रयोग किया जाता है। एक साथ मिलाने के बाद इसमें उबला हुआ आलू और कोलतार डाई का भी प्रयोग किया जाता है।
खतरनाक : एक क्विंटल में मिलाया जाता है 30 एमएल सेंट
मिलावटी घी वनस्पति से इसलिए तैयार किया जाता है क्योंकि यह दानेदार होता है। क्वालिटी को अच्छा करने के लिए 5 से 10 प्रतिशत असली देसी घी को मिलाया जाता हैं। देशी घी स्वाद के साथ कड़कपन लाता है। फिर इसके साथ 5 से 6000 रुपये प्रति लीटर वाला इम्पोर्टेड सेंट मिलाया जाता है। यह इम्पोर्टेड सेंट सेहत के लिए बेहद घातक है, फिर भी यह चोरी-छुपे बाजार में आसानी से बिक जाएगा। एक क्विंटल तैयार मिलावटी माल तैयार करने में मात्र 30 एमएल ही इम्पोर्टेड सेंट भी मिलाया जाता है। इससे तैयार माल में असली घी सी महक आती है। तैयार मिलावटी घी की बाद में मशीन से पैकिंग की जाती है।
रिफाइंड-वनस्पति घी में रंग व खुशबू से महक रहा काला कारोबार
असली घी में मिलावट करने के लिए मिलवाटखोर अधिकतर वनस्पति घी में हल्का बटर येलो, इम्पोर्टेड सेंट, वजन बढ़ाने के लिए उबले आलू का स्टार्च व प्रिजरवेटिव का प्रयोग कर रहे हैं। जिसके बाद घी में मिलावट का पता चलना बेहद मुश्किल हो जाता है। यह घी अधिकतर बिना लेबलिंग के खुला या पैकेट में मिलता है
शाहजहां के समय दिल्ली में घी का सेवन हुआ था मशहूर
कहा जाता है कि मुगलकाल में आगरा से शाहजहां ने राजधानी दिल्ली की तो शाही हकीम ने कहा कि यहां का पानी खराब है। बादशाह ने इसका विकल्प पूछा तो कहा गया कि खूब मसालेदार खाना होगा। अब मसालेदार खाने का साइड इफेक्ट भी बहुत था तो इसे खत्म करने के लिए घी के इस्तेमाल की सलाह दी गई। यही वजह है कि दिल्ली में खाना भले ही सरसों के तेल में बनता हो लेकिन उस पर ऊपर से खूब घी डाला जाता है। नॉनवेज खाने वालों के लिए भी व्यवस्था है और जो लोग वेजीटेरियन हैं उनके लिए घी की बनी चाट की व्यवस्था की गई। इसलिए जामा मस्जिद और चावड़ी बाजार में खाने भले ही अलग हों लेकिन उनमें घी एक ही पड़ता है। मिलावटखोरों की वजह से घी भी शुद्ध नहीं रहा। इस प्रकार से बनाया गया मिलावटी देसी घी लोगों के स्वास्थ पर बुरा असर डाल रहा है।
सजा का प्रावधान : शशि भूषण
एडवोकेट शशी भूषण ने बताया कि मिलावटी घी साबित होने पर अलग-अलग एक्ट के तहत सजा का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि सेक्शन 272-273 में अधिकतम छह माह सजा व जुर्माने का प्रावधान है जबकि असेंशियल कोमोडिटी एक्ट के सेक्शन 7 (1) धारा 3 के तहत अधिकतम एक साल तक सजा व जुर्माने का प्रावधान है।
बीमार होने का खतरा : डॉ. दीपक
अग्रोहा मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रो. डॉ. दीपक गहलान का कहना है कि खाने की कोई भी चीज मिलावट वाली है तो वह सेहत के लिए नुकसानदायक है। मिलावटी घी की बात करें तो इसे खाने से ह्दय संबंधी परेशानियांे के अलावा ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है। मिलावटी घी का सेवन करने से लीवर फैटी हो सकता है।
अब तक 86 सैंपल भरे : भंवर सिंह
हिसार व जींद के खाद्य सुरक्षा अधिकारी भंवर सिंह का कहना है कि उनके सवा माह के कार्यकाल में अकेले हिसार जिले में 86 घी के नमूने लिए हैं। आमतौर पर एक तिहाई सैम्पल अनसेफ आते हैं। त्योहारी सीजन में तो नमूने फेल पाए जाने का आंकड़ा और बढ़ जाता है। विभाग पूरी तरह से मुस्तैद है। सीएम फ्लाइंग भी समय-समय पर छापेमारी करती है।