Diwali 2022 : पीतल नगरी में फीकी पड़ी पीतल की चमक, स्टील की तरफ बढ़ा लोगों का रुझान
दीपावली पर्व पर पीतल-कांसी के बर्तनों की खरीददारी हमारे रीत-रिवाज का बड़ा हिस्सा है। समय के साथ पीतल-कांसी की जगह स्टेनलेस स्टील और एलुमिनियम के बर्तनों ने ले ली है। आज स्थिति यह है कि पीतल नगरी के नाम से ख्याति प्राप्त रेवाड़ी में ना तो पीतल-कांसी बनाने वाले कारीगर रहे और ना ही इन बर्तनों को खरीदने वाले ग्राहक।;
हेमंत शर्मा. रेवाड़ी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पीतल नगरी की पहचान बनाने वाले रेवाड़ी में आज पीतल की चमक काफी फीकी पड़ चुकी है। पिछले 25 साल पहले जहां शहर में पीतल व कांसे के बर्तन नजर आते थे। वहीं आज यह व्यापार मात्र 10 प्रतिशत रह गया है। दीपावली पर्व पर पीतल-कांसी के बर्तनों की खरीददारी हमारे रीत-रिवाज का बड़ा हिस्सा है। समय के साथ पीतल-कांसी की जगह स्टेनलेस स्टील और एलुमिनियम के बर्तनों ने ले ली है। आज स्थिति यह है कि पीतल नगरी के नाम से ख्याति प्राप्त रेवाड़ी में ना तो पीतल-कांसी बनाने वाले कारीगर रहे और ना ही इन बर्तनों को खरीदने वाले ग्राहक। हांलाकि कोरोना के बाद से पीतल, तांबे व कांसे के बर्तनों का स्वास्थ्य के प्रति रुझान कुछ बढ़ा है, लेकिन इन बर्तनों की जगह अब पूरी तरह स्टील के बर्तनों ने ले ली है। इसका मुख्य कारण बढ़ती महंगाई के कारण कच्चा मॉल महंगा होना भी बताया जा रहा है। बर्तन विक्रेताओं की माने तो पीतल, तांबा व कांसे के बर्तन आम लोगों की पहुंच से बहुत दूर हो रहे है।
पहले पीतल और कांसी के बर्तन ही घरों में इस्तेमाल होते थे, लेकिन समय के साथ-साथ यह बाजार से गायब होते चले गए। पीतल व कांसी के बर्तनों की जगह एल्युमिनियम व स्टील से बने बर्तनों ने ले ली। स्टील व एल्युमिनियम से बने बर्तन काफी सस्ते होते हैं तथा आधुनिक डिजाइन व उनकी चमक ग्राहकों को अपनी ओर खूब खींच रही है। हालांकि स्वास्थ्य के प्रति अच्छे होने के कारण कुछ हद तक लोग फिर से बाजार में पीतल, तांबा व कांसी के बर्तन खरीदने लगे हैं, लेकिन शहर में इन बर्तनों को बनाने वाले कारीगर लगातार घटते जा रहे है। बाजार में दुकानों पर लोग स्टील के बर्तन व स्टील के डिनर सेट की ज्यादा डिमांड कर रहे है।
आम आदमी के बजट में नहीं समा रहा पीतल
शहर में पीतल के बर्तन बनाने वाले ठठेरा समाज के करीब 800 परिवार है। 30 साल पहले सभी परिवार पीतल के बर्तन बनाने का कार्य करते थे, लेकिन अब करीब 25 से 30 परिवार ही यह काम करते है। पीतल का कारोबार सिमटने से बर्तन निर्माण के काम से जुड़े कई परिवारों पर रोजी रोटी का भी संकट आ गया था, लेकिन बदलते समय के अनुसार इन परिवारों ने अपना काम ही बदल लिया। बर्तन विके्रता बताते हैं कि पीतल के बर्तनों का भाव 600 रुपए प्रति किलो, तांबे का भाव 700 रुपए प्रति किलो तथा कांसी के बर्तनों का भाव 1400 रुपए प्रति किलो का है। जोकि आज आम आदमी की पहुंच से दूर हो चुके है। पिछले साल पीतल के भाव 450 रुपए प्रति किलो के करीब थे। अब पीतल की स्क्रेप भी 470 रुपए प्रति किलो मिल रही है। बढ़ी महंगाई ने पीतल को आम आदमी के बजट से दूर कर दिया है। पीतल का काम शहर में 10 प्रतिशत के करीब ही रह गया है।
पीतल महंगा, लेकिन स्वास्थ्यवर्धक
बाजार में पीतल, तांबे व कांसे के बर्तन स्टील व एलुमिनियम की तुलना में कई गुना महंगे जरूर हैं, लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम है। पीतल की तुलना में स्टील के भाव काफी कम है। स्टील के बर्तन बाजार में 60 से 150 रुपए प्रति किलो के हिसाब से मिल रहे है। पीतल के बर्तनों में भोजन पकाना व खाना सेहत के लिए उत्तम बताया गया है, जबकि एलुमिनियम और स्टील में भोजन की पौष्टिक पूरी खत्म हो जाती है।
ब्रास मार्केट में पीतल का काम तक नहीं
सन 1992 में पीतल के बर्तन बनाने वाले लोगों के लिए बने ब्रास मार्केट में करीब 250 दुकानें है, लेकिन आज तक यहां बर्तनों की एक भी दुकान नहीं खुल पाई है। लोगों को बताया गया था कि जमीन पर बनने वाली मार्केट में पीतल का काम होगा। इसी आधार पर मार्केट का नाम भी ब्रास मार्केट रखा गया था। आज इस ब्रास मार्केट में कोचिंग सेंटर, अस्पताल, शॉपिंग मार्ट, बैंक, रेडीमेड के ब्रांडेड और नॉन ब्रांडेड शोरूम, होटल सहित अन्य शोरूम चल रहे है।
यहां तक जाते थे पीतल के बर्तन
शहर में बनने वाले पीतल के बर्तनों की डिमांड देश के कई राज्यों में थी। आज कुछ कारीगर पीतल के बर्तनों की शहर की ही दुकानों में सप्लाई कर रहे है। पीतल नगरी में बने पीतल के बर्तन गोवाहटी, मध्यप्रदेश, गुजरात, असाम, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व दिल्ली सहित अनेक शहरों में सप्लाई होते थे। जिनमें पीतल की टोकनी, परात, कढ़ाई, डेगची, तामड़ी की मुख्य रुप से डिमांड रहती थी।
पीतल के बर्तनों का कम हुआ चलन
पहले पीतल के बर्तन मिट्टी से साफ करते थे। अब बर्तन बार से भी साफ करने में लोग असमर्थ है। पीतल के बर्तनों का चलन काफी कम हो गया है। इसके अलावा महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी है। जीएसटी से सिर्फ सरकार को फायदा हो रहा है। आम आदमी व व्यापारी परेशान है। लोग अपने बजट में समाने वाले स्टील के बर्तनों को ज्यादा अहमियत दे रहे है। स्टील के बर्तनों के सेट कई वैरायटियों में उपलब्ध है, जिसमें सभी चीजे मिल रही -भोलाराम, बर्तन व्यापारी।
पहले शहर में गूजंती थी बर्तन बनाने की आवाज
पहले शहर में चारो तरफ पीतल के बर्तन बनाने की आवाज गूंजती थी। आज कुछ गिने चुने मोहल्लों के कुछ घरों में ही बर्तन बनाने का काम चल रहा है। 15 साल से तो शहर में पीतल के बर्तन बनाने का काम ना के बराबर रह गया है। कुछ परिवार अपनी रोटी-रोटी के लिए यह काम कर रहे है। जिममें बचत भी काफी कम रह गई है। - गोपीचंद, बर्तन कारीगर।