कांग्रेस ने एक तीर से साधे कई निशाने, पढ़ें
पार्टी ने चन्नी की ताजपोशी करके एक तरफ पंजाब के दलित वोट बैंक पर निशाना लगाया है, वहीं भाजपा और अकाली दल के दलित मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के मुद्दे को करारा जवाब दिया है। बीते सालभर से किसान आंदोलन से दो-चार हो रहे पंजाब में 32 प्रतिशत दलित वोट बैंक है। इनमें सिख और हिंदू समाज के दलित शामिल हैं। राज्य में जट्टसिख सिर्फ 19 फीसदी है, लेकिन अब तक उन्हीं का पंजाब में राज रहा है। यही वजह है कि राजनीतिक दलों ने इसे मुद्दा बनाना शुरू कर दिया।;
Haribhoomi Editorial : कांग्रेस ने पंजाब में सिख दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर एक तीर से कई निशाने लगाने का प्रयास किया है। ये तीर कितने निशाने पर लगते हैं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल इन तीरों की धमक देशभर की सियासत में साफ-साफ सुनाई दे रही है।
पार्टी ने चन्नी की ताजपोशी करके एक तरफ पंजाब के दलित वोट बैंक पर निशाना लगाया है, वहीं भाजपा और अकाली दल के दलित मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के मुद्दे को करारा जवाब दिया है। बीते सालभर से किसान आंदोलन से दो-चार हो रहे पंजाब में 32 प्रतिशत दलित वोट बैंक है। इनमें सिख और हिंदू समाज के दलित शामिल हैं। राज्य में जट्टसिख सिर्फ 19 फीसदी है, लेकिन अब तक उन्हीं का पंजाब में राज रहा है। यही वजह है कि राजनीतिक दलों ने इसे मुद्दा बनाना शुरू कर दिया। भाजपा, अकाली दल और आम आदमी पार्टी ने अपने-अपने स्तर पर दलितों को चुनाव के बाद आकर्षक पद देने के वादे किए थे। अकाली दल ने चुनाव जीतने पर दलित उपमुख्यमंत्री बनाने का वादा किया। अकाली दल से अलग होने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि चुनाव जीते तो हम दलित मुख्यमंत्री बनाएंगे। आम आदमी पार्टी भी अक्सर कहती रही है कि उन्होंने दलितों को सम्मान देते हुए पंजाब विधानसभा में विपक्षी नेता के तौर पर हरपाल चीमा को नियुक्त किया है।
चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने से अब दलितों को रिझाने वाले इन सब मुद्दों के लिए कांग्रेस ने जवाब तैयार कर लिया है। बिहार में जीतन राम माझी के 2015 में सीएम पद से हटने के बाद बीते छह साल में किसी भी राज्य में एससी मुख्यमंत्री नहीं था। इसीलिए पंजाब के सियासी झगड़े के बीच कांग्रेस ने अपनी राजनीति को नए सामाजिक समीकरण का स्वरूप देने का यह फार्मूला निकाला है। इस ताजपोशी के पीछे एक कारण यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी से अलग होने के बाद अकाली दल ने बसपा से चुनावी गठबंधन किया है। चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस इस गठबंधन की हवा निकालने के प्रयास में है। जाहिर है कि कांग्रेस का यह फैसला पंजाब में बसपा को जरूर नुकसान पहुंचाएगा। केवल पंजाब ही नहीं कांग्रेस इसका लाभ पूरे देश खासकर उत्तरप्रदेश में उठाना चहाती है। देश के यूपी में इसी साल अंत में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का इरादा उत्तरप्रदेश के दलितों को अपने पक्ष में करने का भी है।
चरणजीत सिंह चन्नी पूरे देश में इस समय एससी समुदाय के इकलौते मुख्यमंत्री होंगे। झारखंड और पूर्वोत्तर के साथ आंध्र प्रदेश जैसे कुछ राज्यों मंत आदिवासी और ईसाई समुदाय के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन 28 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में कहीं भी एससी मुख्यमंत्री नहीं था। चन्नी की ताजपोशी सीधा नुकसान बहुजन समाज पार्टी को होने वाला है। इसीलिए इस नियुक्ति पर मायावती ने अपनी बात की शुरुआत तो की चन्नी को बधाई देकर की, लेकिन अगले ही मिनट पर उन्होंने कांग्रेस पर ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए। उन्होंने चन्नी को मुख्यमंत्री बनाए जाने को कांग्रेस का चुनावी हथकंडा बताया।
असल में मायावती प्रबुद्ध ब्राह्मण सम्मेलन के जरिए बीएसपी ब्राह्मण और दलित वोट बैंक को साथ लाने का वही फॉर्मूला आजमाने की कोशिश में है, जिसने साल 2007 में मायावती की पार्टी को पहली बार अकेले दम पर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुमत दिलाया था। किसी समय में यही समीकरण कांग्रेस के लिए सत्ता का रास्ता तैयार करता था। इस बार भी प्रियंका गांधी वाड्रा को आगे करते हुए कांग्रेस उत्तर प्रदेश में पुराने फार्मूले को आजमाने की कोशिश में है। इसीलिए बसपा गुस्से में है। हालांकि यह प्रयोग कितना सफल हो पाएगा, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना जरूर है कि चन्नी को पंजाब की कमान सौंपकर कांग्रेस ने दिन प्रतिदिन हाथ से निकल रहे पंजाब की सियासत को नई करवट देने की कोशिश तो जरूर की है।