Father's day : कोरोना ने छीने पापा, अब बची हैं सिर्फ यादें

अब पापा के बिना घर सुनसान लगता है लेकिन उनकी यादों में आंखों से आंसू बहते रहते हैं क्योंकि अब घर की जिम्मेवारी उसके कंधों पर है।अब बची हैं तो मात्र पापा की पुरानी यादें।;

Update: 2021-06-20 07:53 GMT

भूना। ( फतेहाबाद )

पापा के बिना घर सुनसान लगता है लेकिन उनकी यादों में आंखों से आंसू बहते रहते हैं। क्योंकि अब घर की जिम्मेवारी उसके कंधों पर है। पापा उन्हें अच्छी शिक्षा दिलवाकर अफसर देखना चाहते थे, परंतु कोरोना काल ने उनकी पूरी खुशियों को छीन लिया। बची हैं तो मात्र पापा की पुरानी वह यादें, जो प्यार और दुलार से इकलौता बेटा होने के कारण अपने गोद में उठाए रखते थे। चार बहनों के बाद मेरा जन्म हुआ था।

बेटे की चाहत हर पिता को होती है लेकिन जिसका पिता बेटे को छोड़कर संसार से चला जाए तो उस मासूम बच्चे पर क्या बीतती है, वह तो जिसके लागे वो जानै। यह बात कहते-कहते गांव ढाणी गोपाल का 18 वर्षीय प्रदीप गोदारा रोने लग जाता हैं। भावुकता भरे स्वरों में प्रदीप ने कहा कि कोरोना संक्रमण के कारण 4 मई को एक साथ मेरे पिता व दादी की मौत हो गई थी, जिससे उनके घर की खुशियों को ग्रहण लगा दिया। बच्चा रोता रहा और बोला अब पढ़ाई कैसे करूंगा, उसका भविष्य अंधकारमय हो गया। उसने बताया कि पिता लीडर, मार्गदर्शक और प्रतीक का काम करते थे। अगर पिता अपने बच्चों को समय न दे तो वह अपनी छवि नहीं बना पाते, क्योंकि पुरुष होने की असली महत्व को बच्चे कम्प्यूटर गेम से नहीं बल्कि अपने पिता से समझते हैं।

जन्मदिन के अवसर पर देते थे तोहफा

शांति निकेतन सीनियर सेकेंडरी स्कूल भूना में बारहवीं कक्षा के छात्र प्रदीप गोदारा ने अपनी पुरानी कहानी बयां करते हुए कहा कि पिताजी उनका जन्म दिवस प्रति वर्ष मनाते थे और एक से बढ़कर एक उपहार भेंट करते थे। अब भविष्य में पापा का प्यार और आशीर्वाद कैसे मिलेगा। पिता के साथ बीते लम्हों को याद करके प्रदीप की आंखों से पुन: आंसू बहने लगते हैं और बोलते हुए रुक जाता हैं।

रिटायरमेंट के तीन महीने बाद परिवार से हुए अलविदा

गांव ढाणी गोपाल के 59 वर्षीय नहरी पटवारी सतबीर सिंह गोदारा फरवरी 2021 में सरकारी सेवाओं से रिटायर्ड हो गए थे। परिवारिक सदस्यों के बीच पटवारी सतबीर सिंह बड़े खुश थे। वे सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। नहरी पटवारी पद से रिटायर्ड होने के बाद वे गांव के हनुमान मंदिर व बाबा लखी नाथ डेरा के धार्मिक कार्यों में आगे रहते थे। 30 अप्रैल को उन्हें मामूली बुखार हुआ। जब उनका सैंपल लिया गया तो कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट आई। इसके बाद उनकी तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ और 4 मई को सतबीर सिंह का निधन हो गया, जबकि घर में 2 दिन पहले से बुखार में पीड़ित 82 वर्षीय शांति देवी की भी कोरोना संक्रमित होने से मौत हो गई हो गई थी। गांव में एक साथ मां-बेटे की अर्थी उठी तो पूरे गांव में मातम पसर गया था।

परिवार के सामने आर्थिक संकट

रिटायर्ड पटवारी सतबीर सिंह अपने पीछे पत्नी संतोष देवी के अतिरिक्त पांच संतान छोड़ कर चले गए हैं। इनमें सबसे छोटा इकलौता बेटा प्रदीप गोदारा है, जबकि चार बेटियों में से तीन शादीशुदा और एक अविवाहित है। पटवारी करीब 4 एकड़ जमीन का किसान भी था, परंतु घर का पूरा बोझ सतबीर सिंह के कंधों पर ही टिका हुआ था। जिस घर में एक महीने पहले जहां खुशियों की बौछार लगी हुई थी, वहां आज सन्नाटा और मातम पसरा हुआ है।

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