Haryana : राजस्व विभाग का कारनामा, निजी लोगों के नाम चढ़ा दी हड़प्पा संस्कृति के टीले की गिरदावरी

भारत सरकार के अंतर्गत काम करने वाले राष्ट्रीय मानव अधिकार एवं अपराध नियंत्रण ब्यूरो द्वारा धरोहर से जुड़े राजस्व रिकार्ड की समीक्षा का सिलसिला शुरू किया गया। दल उस समय हैरान रह गया जब राजस्व विभाग की वर्ष 2019-2020 की जमाबंदी में बालू टीला की गिरदावरी निजी क्षेत्र में 13 लोगों के नाम मिली।;

Update: 2022-09-13 06:53 GMT

हरिभूमि न्यूज. कलायत/ कैथल

कैथल के कलायत उप मंडल के गांव बालू में भारत की सबसे प्राचीन हड़प्पा संस्कृति को अपने अंदर समेटे पुरातात्विक स्थल टीले की कुल 13 एकड़ 5 कनाल 9 मरले भूमि की राजस्व विभाग द्वारा कुछ लोगों के नाम गिरदावरी करने का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। भारत सरकार के अंतर्गत काम करने वाले राष्ट्रीय मानव अधिकार एवं अपराध नियंत्रण ब्यूरो द्वारा धरोहर से जुड़े राजस्व रिकार्ड की समीक्षा का सिलसिला शुरू किया गया। दल उस समय हैरान रह गया जब राजस्व विभाग की वर्ष 2019-2020 की जमाबंदी में बालू टीला की गिरदावरी निजी क्षेत्र में 13 लोगों के नाम मिली। हालांकि भारत सरकार द्वारा 25 नवंबर 2009 को 17/24-87/3466 नंबर तहत उक्त भूमि का इंतकाल पुरातत्व विभाग के नाम दर्ज करने की अधिसूचना जारी की गई। इसके तहत 6 सितंबर 2018 को भूमि का इंतकाल प्राचीन पुरातात्विक स्थल टीला के नाम दर्ज हुआ। बावजूद इसके राष्ट्रीय संपदा की गिरदावरी निजी क्षेत्र के लोगों के नाम करना देश में अपनी तरह का बेहद चौंकाने वाला मामला है।

ये है भूमि का विवरण

राजस्व विभाग द्वारा वर्ष 2019-2020 में की गई जमाबंद में बालू टीला का हदबस्त नंबर 20 और खेवट नंबर 2297 है। सरकार की नीति अनुसार टीला भूमि का स्वरूप गैर मुमकिन होना चाहिए था। क्योंकि टीला भूमि पुरातत्व विभाग के अधीन और विभागीय नियमों के इस पर किसी भी प्रकार के निर्माण व खनन पर प्रतिबंध है।

अधिकारियों से ली जाएगी रिर्ग्ट

नायब तहसीलदार हरिंद्र पाल ने बताया मीडिया के माध्यम से यह मामला फिलहाल उनके संज्ञान में आया है। राजस्व विभाग के कानूनगो और पटवारियों से बालू टीला से जुड़े मामले की रिपोर्ट ली जाएगी। सरकार की नीति अनुसार धरोहर के संरक्षण को लेकर विभाग गंभीर है।

वर्षों से जारी है अवशेषों के मिलने का सिलसिला

कलायत के गांव बालू में हड़प्पा कालीन बालू टीले पर संस्कृति से जुड़े अवशेषों के मिलने का सिलसिला वर्षों से जारी है। इसमें मिट्टी की चूडि़यांं, पत्थर के बेडोल औजार, मिट्टी में दबी हुई दीवार शामिल हैं। जंगली वनस्पति के नीचे दफन होते जा रही संस्कृति के संरक्षण को लेकर राष्ट्रीय मानव अधिकार एवं अपराध नियंत्रण ब्यूरो की टीम ने धरोहर का दौरा किया था। इसमें ब्यूरो की जिला कैथल इकाई के चेयरमैन महेंद्र धानियां, कैथल सीएलजी चेयरमैन रुलदू राम, दलशेर सिंह, राजपाल सिंह, हवा सिंह, सुरेश लोधर, चांदी राम रंगा और मानव अधिकार एवं अपराध नियंत्रण ब्यूरो के अन्य सदस्य शामिल थे। बालू टीले के सिकुड़ते स्वरूप को लेकर प्रशासन के जरिये भारतीय पुरातत्व विभाग और सभ्यता के संरक्षण की जिम्मेवारी संभालने वाले अधिकारियों को वर्तमान स्थिति से अवगत करवाने का निर्णय लिया था।

हरियाणा, पंजाब, गुजराज और राजस्थान को माना जाता है संस्कृति का संवाहक

हड़प्पा संस्कृति को वास्तव में नगर की संस्कृति की संज्ञा दी गई है। पंजाब में रोपड़, हरियाणा प्रदेश में मिताथल, बनावाली व बालू, गुजरात में लोथल और राजस्थान में कालीबंगा को इस संस्कृति का संवाहक माना जाता रहा है। बावजूद इसके जिस प्रकार कलायत के गांव बालू में धरोहर की अनदेखी हो रही है उससे इतिहासवेत्ता भी निराश हैं। क्योंकि जिस प्रकार टीला जंगली वनस्पति से अटा है और भूमि की गिरदावरी निजी क्षेत्र के लोगों के नाम कर दी गई उससे विरासत का संरक्षण खतरे में पड़ता नजर आ रहा है।

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