दीपेन्द्र हुड्डा बोले- राजहठ छोड़कर राजधर्म निभाए सरकार, किसानों की सारी मांगें जायज

राज्य सभा सांसद ने कहा, सरकार के अड़ियल रवैये से ऐसा लगता है कि वो चंद सरमायेदारों के हाथों की कठपुतली बनी हुई है। जिस तरह से उद्योग और व्यापार पर चंद घरानों का कब्ज़ा होता जा रहा है, उसी तरह सरकार कृषि जगत को भी चंद सरमायेदारों के हाथों में सौंप देना चाहती है।;

Update: 2020-12-02 10:06 GMT

रोहतक : राज्य सभा सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने आज कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार हठधर्मिता पर आ गई है। उसका रवैया पूरी तरह दुराग्रहपूर्ण है। सरकार ने एक बार भी ऐसा संकेत नहीं दिया कि वो किसानों की मांगों पर सकारात्मक रूख अपनाएगी। सरकार के अड़ियल रवैये से ऐसा लगता है कि वो चंद सरमायेदारों के हाथों की कठपुतली बनी हुई है। जिस तरह से उद्योग और व्यापार पर चंद घरानों का कब्ज़ा होता जा रहा है, उसी तरह सरकार कृषि जगत को भी चंद सरमायेदारों के हाथों में सौंप देना चाहती है।

उन्होंने कहा कि किसानों की ऐसी कोई मांग नहीं है जो सरकार न मान सके। अपनी जिद पर न अड़े सरकार, किसानों की सारी मांगें जायज हैं उन्हें स्वीकार करे। अगर सरकार सचमुच किसानों का भला चाहती है तो सबसे पहले तीनों कानूनों को रद्द करे, किसान संगठनों को बुलाकर उनकी समस्याओं को जाने। फिर समिति बनाकर व्यापक बहस के बाद किसानों की सहमति से क़ानून बनाया जाए।

उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने जो कमेटी बनाने की पेशकश की है वो प्रक्रिया संसद में कानून बनाने से पहले की है। जिसका सरकार ने पूरी तरह से उल्लंघन किया। उन्होंने बताया कि वो स्वयं कृषि मामलों के स्थायी संसदीय समिति के सदस्य रहे हैं और कृषि से संबंधित बिलों के लिये ये परंपरा रही है कि सभी किसान संगठनों को इस पर चर्चा के लिये आमंत्रित किया जाता है। उनकी राय ली जाती है, विशेषज्ञों की राय जानी जाती है और तब जाकर बिल में आवश्यक सुधार के बाद उसे सर्वसम्मति से पारित किया जाता है।

दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि सरकार इन 3 कृषि कानूनों को अब तक के सबसे बड़े कृषि सुधार के तौर पर बता रही है तो फिर इन्हें अध्यादेश के जरिये क्यों लाया गया? कोरोना की आड़ में अध्यादेशों को क्यों जारी किया गया? इन बिलों की मांग किसने की थी? किसानों की मांगे बेहद सीधी हैं। MSP का कानूनी प्रावधान किये बिना किसी क़ानून का कोई मतलब नहीं। सरकार समिति के जाल में उलझाकर किसानों की मांगों को ठंडे बस्ते में डालने और उन्हें गुमराह करने की कोशिश न करे।

सांसद दीपेन्द्र ने यह भी कहा कि एक तरफ सरकार बेमन से बातचीत का दिखावा कर रही है और दूसरी तरफ इन तीन किसान विरोधी कानूनों को सही भी ठहरा रही है। यही कारण है कि किसानों को सरकार की जुबानी बात पर भरोसा नहीं हो रहा है। न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी और एमएसपी से कम पर खरीदने वाले के लिए सजा का कानूनी प्रावधान जब तक नहीं होगा तब तक किसी क़ानून का किसानों के लिए कोई औचित्य नहीं है।

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