डॉ. मोनिका शर्मा का लेख : युद्ध के समय में न फैलाएं भ्रम

यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद जो हालात बने हैं, ऐसे हालात में वहां फंसे भारतीय नागरिकाें की वापसी के लिए भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं और फिक्र और प्रार्थनाओं का ऐसा समय पूरे देश को एक परिवार बना देता है। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो साेशल मीडिया के जरिये युद्ध की तस्वीरों के साथ नकारात्मक विचारों को जोड़कर भ्रम फैला रहे हैं। संकट की स्थिति में हमें विवेक के साथ काम लेना चाहिए, इसलिए ऐसे समय में थोड़े ठहराव का भाव आवश्यक है। हाल ही में अफगानिस्तान से भी भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी हुई थी। जरूरी है कि यूक्रेन संकट के समय भी अपने देश के बच्चों और दूसरे लोगों की सुरक्षित वापसी तक अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर भ्रम न फैलाया जाए।;

Update: 2022-03-05 09:30 GMT

डॉ. मोनिका शर्मा 

पल पल लोगों तक पहुंच रहे समाचारों में युद्धग्रस्त यूक्रेन से सुरक्षित निकाले जा रहे भारतीयों की संख्या बढ़ रही है। यूं भी संकट के समय अपनों को घर लाने से जुड़े 'ऑपरेशन गंगा' जैसे अभियान संख्या से कहीं ज्यादा भावनाओं और चिंताओं से जुड़े होते हैं। ऐसे क्षेत्रों में फंसे हर एक देशवासी की वापसी और सलामती चाहने का भाव लिए होते हैं। फिक्र और प्रार्थनाओं का ऐसा समय पूरे देश को एक परिवार बना देता है।

इन हालात में आपातकाल में प्रशासनिक अमले से ही नहीं देश के हर नागरिक से जिम्मेदार व्यवहार की आशा की जाती है। यही वजह है कि हर देश में संकट के समय आम नागरिकों के लिए और किसी अन्य देश में संकट में फंसे अपने नागरिकों के लिए बाकायदा कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किए जाते हैं। इन नियमों के अंतर्गत सुरक्षित रहने के लिए बरती जाने वाली सजगता ही नहीं सूचनाओं और अफवाहों को लेकर सतर्क रहने के आदेश भी शामिल होते हैं, जिनका अनुसरण करना न केवल नागरिकों की जिम्मेदारी है, बल्कि संकट के इस समय में अपनी सरकार और देश के साथ खड़े होने का भाव भी दर्शाता है।

दुखद है कि सोशल मीडिया पर मिली कुछ भी कह देने की छूट से यह भाव छीज रहा है। यूक्रेन में फंसे भारतीय विद्यार्थियों के मामले में भी भ्रमित करती सूचनाओं और द्वेषपूर्ण विचारों को साझा करने के मामले में लोग पीछे नहीं हैं, जबकि यह समझना मुश्किल तो नहीं कि ऐसे संकटग्रस्त इलाकों से अपने नागरिकों को निकालने के लिए हरसंभव कोशिश की जा रही है। भारत सरकार की ओर से चार केन्द्रीय मंत्री भी इस अभियान से जोड़े गए हैं। साथ ही वायुसेना के बड़े विमान भी भारतीय विद्यार्थियों को लाने के लिए भेजे गए हैं। गौरतलब है काफी समय से बन रही आफत की इन परिस्थितियों के बीच जनवरी के अंतिम सप्ताह में भारतीय दूतावास की ओर से एडवाइजरी जारी किए जाने के बाद से लगभग 17,000 भारतीय नागरिक युद्धग्रस्त यूक्रेन को छोड़चुके हैं।

भारतीय नागरिक यूक्रेन की अलग-अलग सीमाओं के रास्ते वहां से निकलकर अपने आए हैं। यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई कर रहे देश रूस के साथ भी भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकले जाने को लेकर बातचीत हो रही है। यह सच है कि बड़ी संख्या में भारतीय बच्चे वहां युद्ध के जीवन छीनने वाले हालात में गए। हाल ही में यूक्रेन के खारकीव में एक छात्र की मौत ने तो हमारी केंद्र सरकार और वहां फंसे बच्चों के परिजनों की चिंता बढ़ा दी है। ऐसे में भारत में बैठे नागरिकों के लिए भी वहां फंसे अपने देश के बच्चों की परेशानियांे को समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए। वहां के हालात कितने मुश्किल हैं, यह समाचारों और सोशल मीडिया में छाई तस्वीरों और वीडियोज को देखकर समझा जा सकता है। इस समझ के साथ यह भी आवश्यक है कि युद्ध की तस्वीरों और विद्यार्थियों के वीडियोज के साथ अपने नकारात्मक विचार जोड़कर आगे न फैलाएं, यह किसी के हित में नही है। संकट की स्थिति में हमें विवेक के साथ काम लेना चाहिए, इसलिए ऐसे समय में थोड़े ठहराव का भाव आवश्यक है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आमजन के लिए ऐसे अभियानों की जद्दोजहद समझना मुश्किल है, पर अर्थहीन एवं भ्रम फैलाती खबरों को आगे बढाते रहने और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से बचना तो उनके हाथ है ही|

हाल के बरसों में पीड़ादायी परिस्थितियों में लगभग हर बार सोशल मीडिया में ऐसा बहुत कुछ लिखा और साझा किया जाने लगा है, जो चंद घंटों में कभी फेक न्यूज साबित होता है तो कभी किसी के व्यक्तिगत द्वेषपूर्ण विचारों की बानगी। दुर्भायपूर्ण है कई बार ऐसी सोची-समझी वैचारिक रणनीति संकट के दौर में और गफलत पैदा कर देती है। सवाल यह भी है कि सोशल मीडिया में सरकारी स्तर पर बनाई जा रही कूटनीति में मीन-मेख निकालने और अपने ही देश की नकारात्मक छवि बनाने में जुटे लोग आखिर कैसी मानसिकता के शिकार हैं? जो आपातकालीन हालात में संवाद और सलाहों के नाम पर कोलाहल मचा रहे हैं। भय और भ्रम की स्थिति पैदा करने में भागीदार बने हैं। हमें याद रखना होगा कि भारत ने अपने नागरिकों की सुरक्षित स्वदेश वापसी को हमेशा प्राथमिकता पर रखा है। पराई धरती पर संकटग्रस्त हालात में फंसे भारतीय नागरिकों को तत्परता और राजनीतिक सूझबूझ के साथ निकालने या उन तक सहायता पहुंचाने की कोशिशें सदैव की जाती रही हैं। सरकार चाहे किसी भी दल की रही हो, हमारे सैन्य बलों और प्रशासनिक अमले ने सदैव संकटग्रस्त इलाकों में फंसे देशवासियों की वापसी का काम पूरे मान और मनोबल के साथ किया है, पर यहां पर हमारे लिए यह समझना भी आवश्यक है कि सैन्य कार्रवाई, आपदा में अपनी सीमाओं को बंदकर देने के पड़ोसी देशों के नियम और हवाई यातायात पर पाबंदी जैसे कई नियम और औपचारिकताएं ऐसे वापसी अभियानों की मुश्किलों को और बढ़ाती हैं। कूटनीतिक पक्ष से लेकर मानवीय पहलुओं तक, कितना कुछ अचानक आ घेरता है, जिसके बीच से राह निकालते हुए अपने नागरिकों को सही सलामत देश लाना होता है।

देश के नागरिक सरकार की रीढ़ होते हैं| ऐसे में विपत्ति के दौर में एकजुट होकर अपने वतन के साथ खड़े होने का भाव आवश्यक है। मौजूदा दौर में जब सोशल मीडिया के माध्यम से फ़ैल रही भ्रम पैदा करने वाली जानकरियों, डराने वाली तस्वीरों और उनके साथ मन-मुताबिक जोड़ी जा रहीं बातों का दोहराव, पूरे परिवेश को नकारात्मक बनाने के लिए काफी है, नागरिकों में संयम और ठहराव आवश्यक है। याद रहे कि युद्धग्रस्त सीरिया और अफगानिस्तान जैसे देशों से भी अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी हुई थी। 'ऑपरेशन राहत' में तो कुल 41 देशों के नागरिकों को युद्धग्रस्त यमन से निकाला गया था।

गौरतलब है कि इस ऑपरेशन में 5600 लोगों का बचाया गया, जिसमें 4640 भारतीय और 960 विदेशी भी थे। दक्षिण सूडान में फंसे भारतीयों के एयर लिफ्ट की व्यवस्था 'ऑपरेशन संकटमोचन' के तहत की गई थी जो काफी सफल रहा था। हाल ही में अफगानिस्तान से भी भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी हुई थी। जरूरी है कि यूक्रेन संकट के समय भी अपने देश के बच्चों और दूसरे लोगों की सुरक्षित वापसी तक अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर भ्रम बिल्कुल न फैलाया जाए। आभासी संवाद के दौर में आम लोगों का सार्थक संवाद और सधी अभिव्यक्ति किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।) लेख पर अपनी प्रतिक्रिया edit@haribhoomi.com पर दे सकते हैं।

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