सेम का नहीं किया समाधान, तो भुखमरी का शिकार होंगे किसान, हरियाणा के इस जिले में 50 हजार एकड़ उपजाऊ भूमि बची

खेती-किसानी को लेकर अक्टूबर 2021 में भू संरक्षण कार्यालय द्वारा एक तैयार की गई। जाे सरकार के पास भी मौजूद है। यह रिपोर्ट बेहद ही चिंताजनक है। रिपोर्ट को डरावनी भी कहा जा सकता है। क्योंकि जमीन में बढ़ रही सेम की समस्या का मर्ज साल दर साल बढ़ रहा है।;

Update: 2022-12-12 08:34 GMT

अमरजीत एस गिल : रोहतक। न तो प्रदेश का कृषि एवं किसान कल्याण विभाग अपने नाम के अनुरूप किसानों का कल्याण कर पा रहा है। और न ही किसान धान-गेहूं के फसल चक्र को तोड़ने के लिए तैयार हैं। अगर जमीनी हकीकत देखें तो किसान इस कुचक्र को फिलहाल तो तोड़ने के लिए सहमत भी नहीं होंगे। क्योंकि अब मामला कई किंतु-परंतु से कहीं आगे निकल चुका है। खेती-किसानी को लेकर अक्टूबर 2021 में भू संरक्षण कार्यालय द्वारा एक तैयार की गई। जाे सरकार के पास भी मौजूद है। यह रिपोर्ट बेहद ही चिंताजनक है। रिपोर्ट को डरावनी भी कहा जा सकता है। क्योंकि जमीन में बढ़ रही सेम की समस्या का मर्ज साल दर साल बढ़ रहा है। ऐसे में जो किसान परिवार अपने पेट के साथ-साथ दूसरों के लिए भी दो वक्त की रोटी का इंतजाम करता है। वह ही कहीं खुद भुखमरी का शिकार न हो जाएगा। जिले के कुल कृषि रकबा 412436 एकड़ में से केवल 50 हजार ही अब खेती के लायक बचा है। यानि की बाकि जमीन सेम की समस्या से ग्रस्त हो गई है।  

362361 एकड़ सेमग्रस्त : कृषि रकबा 412436 एकड़ है। इसमें 362361 एकड़ को सेमग्रस्त घोषित कर दिया गया है। इसमें से 330065 एकड़ अति संवेदनशील और 32266 एकड़ संवेदनशील श्रेणी का है। यानि के 330065 एकड़ में बारह महीने फसलों पर खतरा मंडराता रहता है। थोड़ी सी ज्यादा बारिश हुई और फसल तबाह। फिर किसानों के सामने हाथ मलने के सिवाय कोई चारा शेष नहीं बचता है। जो रकबा अति संवेदनशील श्रेणी में उसका जल स्तर 0-1.5 और संवेदनशील है उसके पानी का लेवल 1.5 से 3 मीटर तक है। जो 50 हजार एकड़ रकबा शेष बचा है,उसमें पानी का स्तर 3 मीटर से अधिक है। कहने को मतलब यह है कि इस जमीन में फसलें बरसाती पानी से बची रहती हैं। 

समस्या समझे सरकार

धान-गेहूं का फसल चक्र किसान नहीं तोड़ सकता है। क्योंकि अब यह मजबूरी बन चुका है। उदाहरण के तौर पर आप भी जान और समझ लें। पांच सौ एकड़ की पॉकेट में अगर धान की खेती की जाती है तो उसमें ज्वार-बाजरा, कपास समेत दूसरी उन फसलों की खेती किसी भी सूरत में नहीं हो सकती है, जो कम पानी से तैयार होती हैं। अगर किसी किसान धान के साथ कपास,बाजरा और ज्वार की बिजाई कर दी तो फसल नहीं होगी। क्योंकि धान में भरा गया पानी साथ खड़ी दूसरी फसलों को नष्ट कर देगा। 

यह है समाधान

अगर सरकार ने समस्या का समाधान करना है तो एक गांव की पूरी पॉकेट में धान की खेती पर प्रतिबंध लगवाना होगा। इसके एवज किसानों को प्रति एकड़ उतना पैसा दिया जाए, जो धान की बिक्री पर उसे प्राप्त होता है। इस पॉकेट में ज्वार-बाजरा समेत ऐसी फसलों की खेती करवाई जाए। यह प्रोजेक्ट कई साल तक चलेगा तभी जाकर उसके पाॅकेट के भूजल स्तर में कमी आएगी। अगर यह ज्यादा खर्चीला है तो इसी पॉकेट में टयूब्वेल लगाकर जमीन पानी की निकासी करवाई जाए।

जमीन पर लागू हों प्रोजेक्ट

पिछले दिनों प्रदेश के कृषि मंत्री जयप्रकाश दलाल ने जिले के कई गांवों का दौरा किया और अभी तक खेतों में भरे पानी की निकासी के आदेश प्रशासन को दिए। इसके बाद मंत्री ने प्रशासन के अधिकारियों की बैठक भी ली। जिसमें निर्देश दिए गए कि जलभराव की निकासी का स्थाई प्रोजेक्ट तैयार करवाया जाए। ताकि जनवरी में जब मुख्यमंत्री किसानों से संबंधित परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान करें तो प्रपोजल रखा जा सके। अब जो प्रोजेक्ट बनाया जाएगा, उससे पहले भी वर्ष 2021 में एक परियोजना का शुभारंभ किया गया था। लेकिन उस पर आज तक काम नहीं हुआ है। काम हो भी तो कैसे, बजट ही जारी नहीं हुआ। सात-आठ साल भी जिले का एक प्राेजेक्ट, जिसमें मुख्यमंत्री का गांव बनियानी भी था, सरकार को भेजा गया था। लेकिन उस पर क्या काम करवाया गया, यह जवाब संबंधित अधिकारियों के पास नहीं है।

यह बोले विशेषज्ञ

महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के प्रो. महताब सिंह राणा कहते हैं कि सरकार सेम की समस्या का समाधान तुरंत करे। नहीं तो वह दिन दूर नहीं है जब जिले का किसान बर्बाद हो जाएगा। बर्बादी के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव भी पड़ेंगे। जब व्यक्ति के सामने रोटी का संकट खड़ा होता है, वह कई बार गलत रास्ते पर भी चल पड़ता है।

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