कर्मचारियों के वेतन भत्ते जारी करने का आदेश देने वाले पूर्व जज खुद लड़ रहे अपने वेतन की लड़ाई, पहुंचे हाईकोर्ट

कई स्तर पर कोशिश करने के बावजूद जब उनको बकाया वेतन जारी नहीं हुआ तो अब दोनों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कोर्ट से उनको वेतन जारी करने की गुहार लगाई है।;

Update: 2022-05-23 15:53 GMT

कर्मचारियों को उनके वेतन भत्ते जारी करने का सरकार को आदेश जारी करने वाले हाईकोर्ट के दो पूर्व जज अब खुद सरकार से अपने वेतन की लडाई लड़ रहे हैं। कई स्तर पर कोशिश करने के बावजूद जब उनको बकाया वेतन जारी नहीं हुआ तो अब दोनों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कोर्ट से उनको वेतन जारी करने की गुहार लगाई है। सोमवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया कि दोनों जजों ने अपने वेतन कटौती खिलाफ मुख्य सचिव को जो मांग पत्र दिया है उस पर मुख्य सचिव आठ। सप्ताह में निर्णय लें और चार सप्ताह में कटौती वेतन जारी किया जाए।

पंजाब एवम हरियाणा हाई कोर्ट के दो पूर्व जज, जस्टिस एन के सूद और जस्टिस प्रीतम पाल ने हरियाणा सरकार द्वारा लोकायुक्त के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान वेतन से काटे गए पैसे के भुगतान के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। याचिका में लोकायुक्त के रूप में उन्हें दिए जाने वाले वेतन से हरियाणा सरकार द्वारा उनकी हाई कोर्ट जज की पेंशन समायोजन करने को नियमों के खिलाफ बताया गया ही। जस्टिस सूद ने 2006 से 2011 तक और जस्टिस प्रीतम पाल ने 2011 से 2016 तक लोकायुक्त के तौर पर सेवा दी थी।याचिका में उन्होंने हरियाणा लोकायुक्त अधिनियम 2002 के प्रावधानों के अनुसार लोकायुक्त हरियाणा के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान देय वेतन के अंतर का भुगतान करने के निर्देश मांगे हैं। नियमो के अनुसार उनको हाई कोर्ट के जज के बराबर पूर्ण वेतन, बिना पूर्व जज के तौर पर मिल रही पेंशन काटे भुगतान करना चाहिए था।

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वे सेवानिवृत्ति पर ग्रेच्युटी, छुट्टी कैश सहित हाई कोर्ट के एक मौजूदा जज के समान वेतन और भत्ते के हकदार हैं। पूर्व जजों ने कहा है कि वर्तमान मामले में मुद्दा यह है कि उन्हें उपरोक्त पेंशन के बाद गलत तरीके से भुगतान किया गया था। पेंशन उनको सेवानिवृत्ति पर हाई कोर्ट के जज के रूप में की गई सेवा के बदले में भुगतान है व पेंशन पिछली सेवा से संबंधित है और लोकायुक्त के रूप में प्रदान की गई सेवाओं के लिए देय वेतन से कोई संबंध नहीं है। लेकिन हरियाणा सरकार ने वेतन से पेंशन से मिल रही राशि कटौती करके जारी की जो 2002 के अधिनियम में निहित वेतन का उल्लंघन है। हाई कोर्ट के जज रूप में पेंशन और लोकायुक्त के रूप में वेतन स्वतंत्र अधिकार हैं और किसी भी समायोजन की अनुमति नहीं है।

अपनी दलीलों का समर्थन करने के लिए, याचिकाकर्ताओं ने जस्टिस देवेंद्र मोहन पटनायक बनाम उड़ीसा राज्य और अन्य के मामले में उड़ीसा हाई कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश का हवाला दिया।यह आदेश इस सवाल से संबंधित है कि क्या राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष जो रिटायर हाई कोर्ट जज है जिसे पूर्णकालिक आधार पर नियुक्त किया गया था, क्या वह हाई कोर्ट के जज के रूप में अर्जित पेंशन की कटौती के बिना देय वेतन और भत्ते प्राप्त करने के हकदार थे। उस मामले में उड़ीसा हाई कोर्ट ने माना था कि राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष , हाई कोर्ट के जज के समान वेतन और भत्ते के हकदार थे और हाई कोर्ट के जज के रूप में उनके द्वारा अर्जित पेंशन को देय वेतन से नहीं काटा जा सकता है। 29 जुलाई, 2021 को याचिकाकर्ताओं ने हरियाणा सरकार को एक मांग पत्र दिया था लेकिन आज तक उस कोई निर्णय नहीं लिया गया है और न ही याचिकाकर्ताओं को व्यक्तिगत सुनवाई के लिए बुलाया गया है।

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