राव तुलाराम की चौथी पीढ़ी राजनीतिक विरासत संभालने को तैयार, आरती के लिए 'राजा का ताज' सुरक्षित रखना चुनौती
अपने पिता की राजनीतिक विरासत के आधार को मजबूती से कायम रखते हुए राव इंद्रजीत सिंह ने क्षेत्र के लोगों के दिलों पर करीब साढ़े 4 दशक तक राज किया है। एक पीढ़ी आगे बढ़ते हुए अब यह जिम्मेदारी आरती राव के कंधों पर आने जा रही है।;
नरेन्द्र वत्स : रेवाड़ी
राव तुलाराम की विरासत को जिस अंदाज में पूर्व केंद्रीय मंत्री राव बिरेंद्र सिंह ने बखूबी संभालते हुए अहीरवाल की राजनीति में दशकों तक एकछत्र राज किया, उसी अंदाज में अपने पिता की राजनीतिक विरासत के आधार को मजबूती से कायम रखते हुए राव इंद्रजीत सिंह ने क्षेत्र के लोगों के दिलों पर करीब साढ़े 4 दशक तक राज किया है। एक पीढ़ी आगे बढ़ते हुए अब यह जिम्मेदारी आरती राव के कंधों पर आने जा रही है। पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए वर्ष 2024 के चुनाव राव परिवार के लिए निर्णायक साबित होने वाले हैं। सक्रिय राजनीति में रहते हुए बेटी को लोकसभा या विधानसभा की दहलीज पर कदम रखवाने का राव के लिए यह निर्णायक मोड़ साबित होगा।
पूर्व केंद्रीय मंत्री राव बिरेंद्र सिंह की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए उनके तीन बेटे सक्रिय थे। खुद एक्टिव पॉलिटिक्स में रहते हुए राव बिरेंद्र सिंह ने बड़े बेटे राव इंद्रजीत सिंह को वर्ष 1977 के विधानसभा चुनावों में जाटूसाना हलके से विधानसभा पहुंचा दिया था। उस समय अनुभव के मामले में राव इंद्रजीत सिंह राजनीति के नए खिलाड़ी थे, परंतु वर्ष 1996 में सक्रिय राजनीति से अलग होने से पहले राव बिरेंद्र सिंह ने इंद्रजीत को राजनीति के सभी गुणों से लबरेज कर दिया था। इसी बीच एक दौर ऐसा भी आया, जब राव बिरेंद्र सिंह के मंझले बेटे राव अजीत सिंह ने खुद को अहीरवाल की पॉलीटिक्स में एक्टिव करते हुए राव बिरेंद्र सिंह के समर्थकों को अपनी ओर खींचने का प्रयास किया। समर्थकों ने उनका पूरा सम्मान भी किया, लेकिन अधिकांश समर्थकों की आस्था राव इंद्रजीत सिंह में बनी रही। राव ने अपने पिता के खास समर्थकों को पूरा सम्मान देते हुए पूरी तरह अपने साथ जोड़ने में सफलता हासिल की।
आने वाले चुनाव राव इंद्रजीत सिंह के राजनीतिक जीवन का निर्णायक साबित होंगे। उम्र को देखते हुए वह इस चुनाव में राजनीतिक जीवन की संभवतया अंतिम पारी खेलने के लिए मैदान में होंगे। भाजपा की ओर से उम्र के लिहाज से टिकट की राह आसान नहीं होगी। इसके बावजूद राव इस चुनाव में हर हाल में आखिरी पारी खेलने के लिए मैदान में उतरेंगे। साथ ही उनके सामने अपनी राजनीतिक उत्तराधिकारी आरती राव को भी चुनाव मैदान में उतारने की बड़ी जिम्मेदारी होगी। भाजपा में रहते पिता और पुत्री दोनों के लिए एक साथ टिकट की राह आसान नजर नहीं आएगी। अगर भाजपा में ऐसा होता, तो गत विधानसभा चुनावों में ही शायद आरती विधानसभा की चौखट पर कदम रख चुकी होती। इसमें कोई संदेह नहीं कि पिता के सक्रिय राजनीति में रहते हुए इन चुनावों में आरती हर हाल में मैदान में होंगी। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती उन समर्थकों का विश्वास हासिल करने की होगी, जो राव बिरेंद्र सिंह के बाद उनके पिता राव इंद्रजीत सिंह के साथ जी-जान से जुटे रहे।
खुला रहेगा इंसाफ मंच का विकल्प
राव के करीबी सूत्रों के अनुसार इंद्रजीत सिंह अपनी अंतिम राजनीतिक पारी खेलने के लिए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से टकराव के मूड में नहीं रहेंगे। उनका कांग्रेस में वापसी का भी कोई इरादा नहीं हैं। अगर भाजपा उन्हें अपवाद के तौर पर उम्र को दरकिनार करते हुए लोकसभा टिकट देती है, तो आरती के लिए भाजपा की टिकट पर मैदान में उतरने का रास्ता बंद हो जाएगा। अगर पार्टी राव की जगह आरती को टिकट देने पर सहमत होती है, तो इससे राव के लिए अंतिम पारी खेलने का सपना अधूरा रह जाएगा। राव के सामने इस परिस्थिति से निकलने के लिए इंसाफ मंच एक ऐसा हथियार मौजूद है, जो विपरीत समय में काम आ सकता है। फिलहाल राव के सामने आरती को आने वाले चुनावों में मैदान में उतारने की और आरती के सामने पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने की बड़ी चुनौती है। पटौदा में आयोजित शहीदी दिवस रैली में राव इस बात के संकेत दे चुके हैं कि आरती अपना निर्णय लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है। ऐसे में यह भी माना जा रहा है कि अपने दादा राव बिरेंद्र सिंह की तर्ज पर इंसाफ पार्टी की कमान संभालकर आरती दक्षिणी हरियाणा में राव समर्थकों को जोड़कर नए सिरे से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत कर दें।