महाभारत के युधिष्ठिर बोले- स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल हों रामायण व महाभारत, हर 5 साल में दूरदर्शन पर भी दिखाई जाएं
गजेंद्र चौहान ने हरिभूमि के सप्ताह के अतिथि कार्यक्रम में कहा कि हम अपने बच्चों को विरासत में रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों से मिलने वाली शिक्षा देकर जाएं। यही उनके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी होगी।;
हरिभूमि न्यूज: रोहतक
पंडित लख्मी चंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ परफॉरर्मिंग एंड विजुअल आर्ट्स के नए वीसी गजेंद्र चौहान ने कहा कि सुपवा में टैलेंट की भरमार है, बस थोड़ा तराशने और जरूरी मार्गदर्शन देने की जरूरत है। यहां के हर बच्चा एक आर्टिस्ट है। अभी यहां ज्वाइन किया है, सारी चीजों को बारीकी से समझ रहा हूूं। सुपवा को बुलंदियों तक पहुंचाना है। पूरे भारत में इसकी अलग पहचान होगी। बहुत जल्द परिणाम सबके सामने होगा।
यहां विद्यार्थियों को मुंबई जाने का रास्ता तो पता है लेकिन वहां कैसे काम करना है और क्या करना हैं ये नहीं पता। महाभारत धारावाहिक में धर्मराज युधिष्ठिर की भूिमका निभाने वाले गजेंद्र चौहान ने हरिभूमि के सप्ताह के अतिथि कार्यक्रम में कहा कि पहले तो एक्टर की अगर डॉयरेक्टर से मुलाकात हो जाती थी तो उसे काम मिला समझो, मगर आज चेन बहुत लंबी है। मेरा मकसद यही रहेगा कि सुपवा के विद्यार्थी अपनी कला से पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाएं। इसी लक्ष्य को साथ लेकर आगे बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि पंडित लख्मी चंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ परफॉरर्मिंग एंड विजुअल आर्ट्स को ब्रांडिंग की जरूरत है। कार्यक्रम में कुलपित गजेंद्र चौहान के साथ सुपवा के परीक्षा नियंत्रक और उनके ओएसडी वेदपाल नांदल भी मौजूद रहे।
रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ सबसे बड़ी पूंजी
गजेंद्र चौहान ने कहा कि महाभारत और रामायण को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए। जिससे कि आने वाली पीढ़ी को भी नैतिक शिक्षा और हमारे इतिहास के बारे में पता चले। जरूरी है कि हम अपने बच्चों को विरासत में रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों से मिलने वाली शिक्षा देकर जाएं। यही उनके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी होगी। वहीं उन्होंने ये भी कहा कि रामायण और महाभारत दूरदर्शन के माध्यम से हर पांच साल बाद दिखाया जाना चाहिए।
चुनौतियों भरा रहा सफर हार नहीं मानी
14 अक्तूबर 1956 को दिल्ली के गांव खामपुर मेें जन्में गजेंद्र का सफर चुनौतियों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अपने पिता को अपना प्रेरणास्रोत मानने वाले गजेंद्र कहते हैं कि हर बच्चे की लाइफ में हीरो पिता होता है। उनके पिता का विजन था कि पढ़ो और बढ़ो जो आज सभी अपने जीवन में लागू करते हैं। पिता कहते थे कि पढ़ाई किसी भी हालात में नहीं छोड़नी चाहिए।
1983 में काम मिलना शुरू हुआ
गजेंद्र चौहान ने कहा कि वह अपने आप को बहुत खुश किस्मत मानते हैं कि उन्हें पहले ही दिन से काम मिलना शुरू हो गया था। 1983 में सीरियल और फिल्मों में छोटे रोल मिलने शुरू हुए। जिसकी बदौलत उन्हें अनुभव होता चला गया। रजनी, दर्पण, पेइंग गेस्ट सहित कई धारावहिकों में भूमिका निभाई। आईएमपीए टैलेंट में वह अव्वल स्थान पर रहे। यह कांटेस्ट नए कलाकार की खोज के लिए था।
एफटीआईआई से सीखी एक्टिंग की बारीकियां
मुंबई में उन्होंने एफटीआईआई से कला की बारिकियां सीखी। उनके बैच में गोविंदा, चंकी पांडे सहित कई नामचीन कलाकार थे। उस समय वह अंधेरी में रहते थे। जहां खाने की थाली 2 रुपये 25 पैसे की मिलती थी और बांद्रा में 2 रुपये की। संघर्ष के दौर में पच्चीस पैसे भी बहुत मायने रखते थे। अंधेरी से बांद्रा की दूरी आठ किलाेमीटर थी जहां केवल 25 पैसे बचाने के लिए वह पैदल चलकर जाते और वापिस आते थे। आज जब वह पीछे मुड़कर संघर्ष के दिनों को याद करते हैं तो उन्हें हौंसला मिलता है कि वह अब जो भी हैं अपने उन्हीं संघर्ष के दिनों और हार न मानने की जिद की वजह से हैं।