सुशील राजेश का लेख : गांधी बनाम सावरकर विवाद निरर्थक
दरअसल ऐतिहासिक तथ्य यह है कि 1920 में सावरकर के छोटे भाई नारायण राव गांधी से मिले थे। तब गांधी ने आग्रह किया था कि सावरकर को दया-याचिका लिखनी चाहिए, क्योंकि वह रणनीतिक कदम साबित होगा। 1921 में गांधी ने सावरकर के बारे में लिखा था-वह चतुर हैं, साहसी हैं और देशभक्त भी हैं। गांधी ने ही नहीं, भीमराव आंंबेडकर ने भी उस कालखंड में सावरकर का समर्थन किया था।;
सुशील राजेश
महान क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर एक बार फिर चर्चा में हैं। एक बार फिर उन्हें 'नफरत का खलनायक' साबित करने की कोशिशें जारी हैं। देश की स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और मानसिक वीरता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। ब्रिटिश हुकूमत का दया-याचिका लिखने के मद्देनजर सावरकर को 'कायर' करार दिया जा रहा है। कानूनी परिभाषा में 'माफीनामा' और 'दया-याचिका' में गहरे बुनियादी अंतर हैं।
सावरकर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की 'प्रेरक शक्ति' बताया जा रहा है। एक सांप्रदायिक पार्टी के स्वयंभू नेता ने दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया है कि आरएसएस और भाजपा की सियासत है कि एक दिन सावरकर को 'राष्ट्रपिता' घोषित कर दिया जाए और गांधी को विस्मृत करने का सिलसिला शुरू हो! क्या गांधी, सावरकर, सुभाष, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, अशफाकुल्ला व लाला लाजपतराय सरीखे आज़ादी के रणबांकुरों की आपसी तुलना की जा सकती है? क्या उनकी लड़ाई और क्रांति की परिस्थितियां व उनके कालखंड समान थे? वीर सावरकर की शख्सियत और 'काला पानी' जेल की यातनापूर्ण सजा को लेकर विरोधाभास व भ्रम फैलाए जाते रहे हैं।स्वतंत्रता के योद्धाओं की गिनती असंख्य है। उनकी आपसी तुलना कैसे संभव है? सावरकर ने स्वतंत्रता की लड़ाई और 'हिन्दुत्व' की अलग-अलग व्याख्याएं की थीं। गांधी के भारत लौटने से पहले ही उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई थी। उनके स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्हें 25-25 साल जेल की दो सजाएं सुनाई गई थीं। क्या सावरकर ने कोई निजी, जघन्य अपराध किया था? अथवा वह पेशेवर अपराधी थे? सवाल यह भी होना चाहिए कि किस कांग्रेस नेता, गांधी समेत, को 'काला पानी' की सजा सुनाई गई और खौफनाक सेलुलर जेल में कैद किया गया? सावरकर ने जेल की यातनाएं ही नहीं झेलीं, बल्कि उन्हें हररोज़ बैल की जगह कोल्हू में जुतना पड़ता था। उन्हें हथकड़ी और बेड़ियों में बांध कर जेल की सजा दी गई। कोड़े भी बरसाए गए। क्या सावरकर कोई दुर्दान्त अपराधी थे? उन्होंने ब्रिटिश सिंहासन को चुनौती जरूर दी थी। उनके विरोधियों को एहसास तक नहीं होता कि उन्होंने स्वतंत्रता के क्रांतिकारी के तौर पर बर्बर यातनाएं सहीं। जेल में ही नाखूनों और ईंट-पत्थरों से खुरच-खुरच कर उन्होंने चार महाकाव्य लिख दिए। आत्मकथा भी लिखी। 'काला पानी' की सजा के अनुभव भी लिखे। क्या कोई मानसिक और बौद्धिक स्तर पर कायर व्यक्ति ऐसी सजाएं झेल सकता है?
वरिष्ठ पत्रकार एवं अब भारत सरकार में सूचना आयुक्त उदय माहुरकर ने नये सिरे से सावरकर पर एक किताब लिखी है। चूंकि किताब का विमोचन केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और आरएसएस के सरसंघचालक डाॅ. मोहन भागवत ने किया था, लिहाजा लेखक पर संघी और भगवा का लेवल चिपका दिया गया। संघी और भाजपाई होना कानूनन जुर्म है क्या? इसी दृष्टिकोण से विश्लेषण किए जा रहे हैं कि सावरकर बुनियादी तौर पर 'कायर' थे, लिहाजा उन्होंने अंग्रेजों की सरकार को आधा दर्जन माफीनामे लिखे थे। यह तथ्यात्मक रूप से गलत सूचना है। उनपर भारत को 'हिन्दू राष्ट्र' बनाने की सोच के भी आरोप चस्पां किए गए। बेशक वह 'हिन्दू महासभा' के तत्कालीन अध्यक्ष थे। उसमें डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी पदाधिकारी थे, जिन्होंने बाद में 'जनसंघ' की स्थापना की। डाॅ. मुखर्जी को खुद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कैबिनेट मंत्री का पद स्वीकार करने का आग्रह किया था। ऐसा ही आग्रह डाॅ. भीमराव आंंबेडकर से भी किया गया था। दोनों भारत की प्रथम राष्ट्रीय सरकार में क्रमशः उद्योग-वाणिज्य मंत्री और कानून मंत्री बने। उनके पत्र और जीवनी प्रकाशित हो चुके हैं। प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल के साथ उनके पत्र-व्यवहार भी सार्वजनिक हो चुके हैं। मैंने डाॅ. मुखर्जी की जीवनी का अनुवाद किया है। उसमें 'हिन्दू महासभा' की भीतरी बैठकों के ब्यौरे दिए गए हैं। उनसे खुलासा हो जाता है कि महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में सावरकर, डाॅ. मुखर्जी व हिन्दू महासभा की कोई उकसाऊ और निर्णायक भूमिका नहीं थी। सावरकर की 1966 में मृत्यु तक पूर्वाग्रही आरोप साबित नहीं हो सका।
किताब पर बोलते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने खुलासा किया कि गांधी के कहने पर सावरकर ने दया-याचिका दी थी। इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है कि वह जेल में रहने से डरते थे, लिहाजा जेल में डाल देने के कुछ अंतराल बाद ही उन्होंने ब्रिटिश शासन को 'माफीनामा' लिखना शुरू किया। कुछ मुस्लिमवादी या सेकुलर गैंग के नेता यह दुष्प्रचार करते रहे हैं। रक्षा मंत्री की इस टिप्प्णी ने बहस का नया पिटारा खोल दिया। नेता और पार्टियां अपने-अपने इतिहास लेकर मैदान में उतरी हैं। दरअसल ऐतिहासिक तथ्य यह है कि 1920 में सावरकर के छोटे भाई नारायण राव गांधी से मिले थे। तब गांधी ने आग्रह किया था कि सावरकर को दया-याचिका लिखनी चाहिए, क्योंकि वह रणनीतिक कदम साबित होगा। 1921 में गांधी ने सावरकर के बारे में लिखा था-वह चतुर हैं, साहसी हैं और देशभक्त भी हैं। गांधी ने ही नहीं, अंबेडकर ने भी उस कालखंड में सावरकर का समर्थन किया था। दरअसल सावरकर पर हर बार बहस इसलिए छिड़ती है, क्योंकि वह हमारी एकता और अखंडता के प्रतीक हैं। इसे अस्वीकार कर विरोधी उन्हें अपमानित करते रहे हैं। सावरकर कभी भी महात्मा गांधी के समानांतर नहीं रहे, लिहाजा दोनों महानेताओं के संबंधों पर टिप्पणी करना बेमानी है। यह तथ्य भी विवादास्पद् कहा जा रहा है कि जिस गांधी ने अपने क्रांति-काल के दौरान कभी भी माफीनामे या दया-याचिका का इस्तेमाल नहीं किया और न ही पैरवी की, वह सावरकर को ऐसा करने पर सुझाव क्यों देंगे? उपलब्ध दस्तावेज तो पुष्टि करते हैं कि गांधी ने सावरकर तक संदेश पहुंचाया था कि दया-याचिका दी जाए और वह भी सभी 'काला पानी' के सजायाफ्ता भारतीयों के लिए।
बहरहाल सावरकर अपने निधन के 55 साल बाद भी विवादास्पद् और नफरत के पात्र बने हैं। नई पीढ़ी तो उनकी क्रांति के बारे में जानती ही नहीं होगी। शिवसेना और भाजपा में कभी-कभार स्वर उभरते हैं कि वाीर सावरकर को 'भारत-रत्न' से सम्मानित किया जाए। जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तो उनकी सरकार ने 2000 में ऐसा प्रस्ताव राष्ट्रपति केआर नारायणन को भेजा था, जिसे खारिज कर दिया गया। उसके बाद कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया। अब तो राष्ट्रपति भी भाजपा पृष्ठभूमि के हैं और केंद्र में भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार है। 'भारत-रत्न' पर ही सवाल हैं, तो सावरकर को कोई भी 'राष्ट्रपिता' कैसे घोषित कर सकता है?