हस्तशिल्प एवं सांस्कृतिक उत्सव : शिल्पकला की सच्ची संवाहक बनीं साक्षी और ममता

बहादुरगढ़ में शुरू की गई आर्ट एंड क्राफ्ट प्रदर्शनी ने अनेक युवाओं को कलाकार बनने के लिए प्रेरित किया। ऐसी ही दो बेटियां इन दिनों 'कला जगत' में अपनी बुलंदियों के झंडे गाड़ रही हैं।;

Update: 2023-11-03 05:51 GMT

रवींद्र राठी. बहादुरगढ़। करीब दस साल पूर्व प्राचीन कारीगर एसोसिएशन द्वारा बहादुरगढ़ में शुरू की गई आर्ट एंड क्राफ्ट प्रदर्शनी ने अनेक युवाओं को कलाकार बनने के लिए प्रेरित किया। ऐसी ही दो बेटियां इन दिनों 'कला जगत' में अपनी बुलंदियों के झंडे गाड़ रही हैं। शिल्पकला की सच्ची संवाहक के रूप में एक तरफ जहां साक्षी गर्ग ने सांझी पेपर आर्ट की दिशा में लगातार कड़ी मेहनत और संघर्ष किया। वहीं दूसरी तरफ ममता त्रिपाठी ने क्ले आर्ट में पारंगत होकर स्वयं को आत्मनिर्भर बनाया है।

सांझी कला के संवर्धन में जुटी साक्षी

बहादुरगढ़ की अनाज मंडी निवासी साक्षी गर्ग वर्ष 2015 में प्राचीन कारीगर एसोसिएशन द्वारा बहादुरगढ़ की देवकरण धर्मशाला में लगाई गई आर्ट एंड क्राफ्ट प्रदर्शनी देखने पहुंची थी। वहां साक्षी को राजस्थान निवासी नेशनल अवार्डी राम सोनी के पेपर कटिंग आर्ट ने प्रभावित किया। तभी से दुर्लभ सांझी कला के संरक्षण और संवर्धन को लेकर साक्षी पूरी तरह समर्पित हो गई। दिल्ली विश्वविद्यालय से बीकॉम करने वाली साक्षी ने कागज से महज 5 मिलीमीटर गुणा एक मिलीमीटर की नाव तैयार की। ग्लोबल रिकॉडर्स एंड रिसर्च फाउंडेशन ने उस मिनियेचर पेपर बोट को 8 मई 2018 को नेशनल रिकॉर्ड में दर्ज किया। पेंसिल के लेड सिक्के पर हरियाणा शब्द उकेरकर साक्षी ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। फ्रेंच भाषा सीख चुकी साक्षी कागज पर तस्वीर उकेरती है और फिर उसे काटने व संवारने में लग जाती है। सुरभी वन उसकी बेहतरीन कलाकृतियों में श्रेष्ठ है। पिता राजेश गर्ग व मां सोनू गर्ग के प्रोत्साहन से साक्षी पेपर कटिंग अर्थात सांझी कला को बचाने के साथ निखारने में अनवरत जुटी है।

मिट्टी के आभूषणों में ममता को महारत

मूल रूप से उत्तरप्रदेश के गोरखपुर की रहने वाली ममता त्रिपाठी के पति बहादुरगढ़ में नौकरी करते थे। वह स्वयं भी एक निजी स्कूल में आर्ट टीचर के रूप में कार्यरत थी। कई साल पहले वह भी आर्ट एंड क्राफ्ट प्रदर्शनी का अवलोकन करने पहुंची। यहां अर्चना पंवार और चंद्रकांत बोंदवाल के संपर्क में आई ममता ने क्ले आर्ट का प्रशिक्षण लिया। फिर उसने सिरेमिक पाउडर से पेंटिंग्स भी बनाई। लेकिन फिर वह मिट्टी के आभूषण बनाने लगी। ममता पहले गीली मिट्टी से आभूषण के हिस्से बनानी है। फिर उन्हें उपलों की आंच में पकाती है। आखिरी चरण में उन पर अलग तरह के रंग भरती है। आज उसके हाथ एक से बढ़कर एक कलाकृतियां बना रहे हैं। ममता द्वारा मिट्टी के विभिन्न आकर्षक आभूषण तैयार किए जा रहे हैं। जिसे देखते ही महिलाएं मोहित हो जाती हैं। ममता के अनुसार उत्तर भारत में क्ले आर्ट की एक वृहद परम्परा रही है। हालांकि यह आधुनिकता के आगे दम तोड़ रही है। इसके संरक्षण के लिए जागरूकता की जरूरत है।

युवा कलाकार ही सच्चे संवाहक

शिल्पगुरु राजेंद्र प्रसाद बोंदवाल के अनुसार बहादुरगढ़ जैसे नगरों में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, उन्हें उपयुक्त मंचों के माध्यम से निखारने की जरूरत है। युवा कलाकार ही शिल्पकला के सच्चे संवाहक हैं। वे मानते हैं कि धरोहरों से कटा हुआ समाज जड़ से उखड़े पेड़ की तरह होता है। कला जीवन में नए उत्साह का संचार करती हैं और हमें जमीन से जोड़े रखती हैं।

बता दें कि बहादुरगढ़ के सेक्टर-6 में स्थित कम्युनिटी सेंटर में 10 दिवसीय शिल्पकला और सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन हो रहा है। प्रदर्शनी 5 नवंबर तक चलेगी।

ये भी पढ़ें- Rohtak PGIMS : मरीजों को एक छत के नीचे मिलेंगी सुविधाएं, हेल्थ यूनिवर्सिटी में आईसीटीसी के नए परिसर का उद्घाटन


Tags:    

Similar News