Holashtak : होलाष्टक आज से शुरू, अगले आठ दिन तक भूलकर भी ना करें ऐसे काम

होलिका दहन से आठ दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाता है। इस बार होलिका दहन वीरवार 17 मार्च और शुक्रवार 18 मार्च को होली का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा।;

Update: 2022-03-09 23:30 GMT

हरिभूमि न्यूज : बहादुरगढ़

वीरवार 10 मार्च को फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से होलाष्टक ( holashtak ) लग रहा है, यह 18 मार्च तक रहेगा। इस तरह होलिका दहन तक अगले 8 दिनों में शुभ कार्य पूर्ण रूप से वर्जित रहेंगे। विदित है कि होलिका दहन से आठ दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाता है। इस बार होलिका दहन ( Holika Dahan ) वीरवार 17 मार्च और शुक्रवार 18 मार्च को होली का त्योहार ( Holi 2022 ) हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। होलिका दहन के बाद होलाष्टक की समाप्ति हो जाती है।

फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि से पूर्णिमा तक भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा करने की परंपरा है। होलिका पूजन करने के लिए होली से आठ दिन पूर्व होलाष्टक प्रारम्भ होने पर होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इन दिनों में प्रारंभ किया गया कार्य कभी सफल नहीं होता। होलाष्टक के आठ दिनों में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, मकान, जमीन तथा वाहन क्रय-विक्रय पूर्णतया निषेध माने गए हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि नई शादी हुई लड़कियों को ससुराल की पहली होली भी नहीं देखनी चाहिए।

हालांकि देवी देवताओं की आराधना के लिए यह समय श्रेष्ठ माना गया है। पंडित महेंद्र शर्मा के अनुसार होलाष्टक की इस अवधि में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव अधिक होता है, इसलिए इस अवधि में भजन, जप, तप अवश्य करना चाहिए। इन आठ दिनों में ग्रह अपना स्थान बदलते हैं। ऐसे में व्रत और दान करने से भी लाभ प्राप्त होता है। होलाष्टक में उत्पन्न हुई नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव समाप्त करने के लिए होलिका का निर्माण किया जाता है।

क्या है पौराणिक कथा

होली का दहन करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। होलाष्टक को लेकर एक कथा प्रचलित भी है कि कश्यप ऋषि की दिती नामक पत्नी से 2 पुत्रों हिरण्यकश्यपु व हिरण्याक्ष तथा पुत्री होलिका का जन्म हुआ था। हिरण्यकश्यपु जहां ईश्वर का उपासक था, वहीं हिरण्याक्ष भगवान का घोर विरोधी था। पौराणिक कथा में यह भी उल्लेख है कि जब भगवान विष्णु हिरण्याक्ष के अनीतिपूर्ण कार्यों के कारण उसका वध कर दिया तो हिरण्यकश्यपु भी भगवान विष्णु का विरोधी हो गया था। लेकिन प्रारंभिक भगवान भक्ति का प्रभाव हिरण्यकश्यपु के पुत्र प्रह्लाद पर पड़ा था और उसकी ईश्वर में बड़ी आस्था थी। प्रह्लाद का भगवान में विश्वास होने से हिरण्यकश्यपु सदैव क्रोधित रहता था। उसने क्रोधित होकर प्रह्लाद व उसकी बहन होलिका को अग्नि में भस्म करने का आदेश दे दिया था। होलिका इस आदेश से विचलित हो गई।

हिरण्यकश्यपु ने कहा कि यदि वह ऐसा नहीं करेगी तो वह उसकी हत्या कर देगा। होलिका ने सोचा कि पिता की आज्ञा का पालन करना ही पड़ेगा और यदि मरना ही है तो प्रह्लाद को बचाकर मरे। होलिका को ये वरदान था कि वो आग उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। इन आठ दिनों में प्रहलाद के साथ जो हुआ, उसके कारण होलाष्टक लगते हैं। इस कार्य के लिए होलिका इन 8 दिनों में स्वयं को तैयार करती है। वह सकारात्मकता को बचा लेने की तैयारी करती है। होलिका अग्नि में प्रह्लाद को तो बचा लेती है, लेकिन स्वयं भस्म हो जाती है। तभी से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है। होलाष्टक के दौरान सभी धार्मिक कार्य बंद कर दिए जाते हैं।

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