स्वतंत्रता दिवस : आजादी की लड़ाई में पुरुषों से कम नहीं रहीं हरियाणा की महिलाएं, आंदोलन किए, जेल भी गईं

वर्ष 1857 से लेकर 1947 तक की काल अवधि में हिसार, सिरसा, अम्बाला, रोहतक, गुड़गांव, उकलाना, टोहाना आदि क्षेत्रों से ऐसी महिलाओं की सूची काफी लंबी बनाई जा सकती है जिन्होंने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया।;

Update: 2021-08-14 09:07 GMT

हिसार/शमशेर सैनी

देश के स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा के योगदान पर चर्चा चल रही हो और उसमें प्रदेश की वीर नारियों का जिक्र न हो तो इतिहास अधूरा ही लगेगा। आजादी की लड़ाई में प्रदेश की महिलाओं का विशेष योगदान रहा है। स्वतंत्रता आंदोलनों में प्रदेश की महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, यहां तक कि जेल की यात्रा भी करनी पड़ी। वर्ष 1857 से लेकर 1947 तक की काल अवधि में हिसार, सिरसा, अम्बाला, रोहतक, गुड़गांव, उकलाना, टोहाना आदि क्षेत्रों से ऐसी महिलाओं की सूची काफी लंबी बनाई जा सकती है जिन्होंने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। हरियाणा की वीर बेटियों ने पूरी हिम्मत और वीरता के साथ अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। इनमें चांदबाई, तारावती, लक्ष्मीबाई आर्य, गायत्री देवी, कस्तूरी देवी, मोहिनी देवी, मन्नोदेवी, सोहाग रानी, सोमवती, शन्नो देवी, कस्तूरीबाई प्रमुख रहीं।

चांदबाई की असहयोग आंदोलन में बड़ी भूमिका

बाबू श्यामलाल की पत्नी चांदबाई जिनका जन्म 1892 में एक वैष्य परिवार में सिरसा में हुआ था। अपने पुत्र मदनगोपाल को साथ लेकर सत्याग्रह आंदोलन में कूद पड़ी जबकि उन दिनों महिलाएं घर के बाहर पैर नहीं रखती थी। अपने पति के साथ 1923 के कोकानाड़ा, 1924 के बेलगांव व 1925 के कानपुर के कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुई। 1922-23 तक गांधी जी के आश्रम साबरमती में भी रही। चांदबाई हिसार की पहली महिला थी जन्हिें असहयोग आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चांदबाई की पुत्रवधू तारावती भी अपनी सास से प्रेरणा लेकर अपनी सास के साथ कांग्रेस तथा स्वदेशी प्रचार कार्यों के लिए हांसी, टोहाना, उकलाना, सिरसा आदि स्थानों पर जाकर जन सभाएं की तथा कई बार आन्दोलनों में जेल भी गई। चांदबाई देश की आजादी में सक्रिय भूमिका निभाना चाहती थी, वह केवल प्रचार कार्य से सन्तुष्ट नहीं थी।

गर्भवती होने के कारण नहीं दे पाई गिरफ्तारी

चांदबाई को हिसार के कटला रामलीला मैदान में युद्ध विरोधी नारे लगाते हुए गिरफ्तार किया गया तथा 22 फरवरी 1941 को 6 महीने की सजा दी गई तथा 24 फरवरी 1941 को महिला कारागार लाहौर भेज दिया गया। गर्भवती होने के कारण इनकी पुत्रबधू तारावती अपनी गिरफ्तारी नहीं दे पार्इं।

सत्याग्रह आंदोलन में जाना पड़ा जेल

वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह में गायत्री देवी गांव गड़कुंडल, सोनीपत ने महिलाओं का नेतृत्व किया और जेल गई। बेरी, रोहतक की कस्तूरी देवी 1930 में कांग्रेस में शामिल हो र्गईं और महिलाओं का नेतृत्व करते हुए जिला रोहतक में जेल खाने के सामने धरना दिया। इस धरने में गांव ड़िघल, झज्जर की मन्नो देवी भी थी। पुलिस की चेतावनी पर लोग तितर-बितर नहीं हुए तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया तथा 12 सत्याग्रहियों को गिरफ्तार किया जिसमें कस्तूरी देवी व मन्नो देवी भी थी। वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने और जेल की यात्रा करने वाली नारियों में सोमवती व मोहिनी देवी का नाम उल्लेखनीय हैं।

सोहाग रानी ने जेल में सहनी पड़ी यातनाएं

वर्ष 1907 में लाहौर में जन्मी सोहाग रानी का सारा जीवन हरियाणा में ही बीता। 1930 के नमक सत्याग्रह आंदोलन में बढ़-चढकर भाग लिया। विदेशी कपड़े और शराब की दुकानों पर पिकेटिंग करना, जलसे करना तथा जुलूस निकालना इनकी दिनचर्या थी। शहीद भगत सिंह के फांसी के समय विरोध सभा में भाग लेने पर इन्हें 9 महीने की सजा हुई तथा उन्हें जेल में काफी कष्ट दिए गए।

लक्ष्मी आर्य को हुई 6 महीने की कैद

गांव रोहण, रोहतक की लक्ष्मी आर्य छोटी उम्र में विधवा हो गई थी। वर्ष 1932 में लक्ष्मी आर्य गांधी जी के पास साबरमती आश्रम में चली गई और वहां कपड़े की दुकान पर पिकेटिंग करती पकड़ी गई और 6 महीने की सजा हुई। व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन के समाप्त होते ही अंग्रेजी सरकार ने राजनीतिक कैदियों की रिहाई शुरू कर दी। इस दौरान यहां की नारियों ने जिनमें लक्ष्मी देवी, लक्ष्मी बाई आर्य, रोहण, रोहतक, सोमवती, शन्नों देवी ने अन्य सदस्यों के साथ इंकलाब जन्दिाबाद और भारत छोड़ों के नारे लगाए और गिरफ्तार हो गईं। गुड़गांव से कमला भार्गव ने भी भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया।

विरोध हुआ तो भेजना पड़ा जेल

ओमप्रकाश त्रिखा की पत्नी लक्ष्मी देवी ने वर्ष 1932 में अपने पति की गिरफ्तारी के बाद से कपड़े व शराब की दूकानों पर पिकेटिंग करना, जुलूस निकालना, नारे लगाना जारी रखा। ब्रिटिश सरकार ने इन पर मुकद्मा चलाया और गिरफ्तार कर जेल में रखा। इस जेल में कोई राजनीतिक महिला नहीं थी। इसलिए पूरे शहर में विरोध हुआ और अंत में इन्हें लाहौर की महिला जेल में भेज दिया गया। अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा साकार हुआ। अंग्रेजों को भारत छोड़ कर जाना पड़ा और 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। इतना ही नहीं आजादी के बाद वर्ष 1948 में रोहण, रोहतक की लक्ष्मीबाई आर्य भारत सरकार की तरफ से महिलाओं को पाकिस्तान लाहौर से लाने के लिए गई।





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