यूक्रेन से निकलने में विद्यार्थियों की राह मुश्किल बना रहा भारतीय पासपोर्ट, इमिग्रेशन क्लियर करने में हो रही परेशानी

यूक्रेन से रेवाड़ी पहुंचे दो छात्रों ने बताया कि कई परेशानियों का सामना करने के बाद हम यूक्रेन बॉर्डर तो पहुंच गए, लेकिन वहां भारतीय पासपोर्ट होने के कारण निकलने में परेशानी का सामना करना पड़ा। तकनीकी रूप से स्ट्रांग पासपोर्ट होने के कारण यूक्रेनिस्ट को इमिग्रेशन क्रॉस करने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी।;

Update: 2022-03-04 12:19 GMT

हरिभूमि न्यूज : रेवाड़ी

कई परेशानियों का सामना करने के बाद हम यूक्रेन बॉर्डर तो पहुंच गए, लेकिन वहां भारतीय पासपोर्ट होने के कारण निकलने में परेशानी का सामना करना पड़ा। तकनीकी रूप से स्ट्रांग पासपोर्ट होने के कारण यूक्रेनिस्ट को इमिग्रेशन क्रॉस करने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। इमिग्रेशन पर भारी भीड़ होने के कारण हमें एक दिन वापस जाना पड़ा। इसके बाद दूसरे दिन ही बॉर्डर क्रॉस करने के लिए नंबर आया। यह कहना है कि डहीना निवासी ललित और उसके चचेरे भाई अरविंद का, जो शुक्रवार सुबह नई दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचने के बाद घर आ गए। दोनों बच्चों के घर पहुंचने के बाद परिवार में उत्सव जैसा माहौल बन गया।

ललित और अरविंद दोनों चचेरे भाई हैं। दोनों के पिता विनोद और यादवेंद्र सगे भाई हैं। दोनों सीबीआई में सेवारत हैं। अरविंद एमबीबीएस पांचवें साल का और ललित चौथे वर्ष का छात्र है। यूक्रेन पर रूस का हमला होते ही इस परिवार के सदस्यों की चिंता बढ़ गई थी। ललित की माता कविता देवी प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं, जबकि अरविंद की मां कृष्णा देवी गृहणी हैं। कविता ने बताया कि यूक्रेन में हालात खराब होने के बाद वह फोन पर दोनों बच्चों से बार-बार संपर्क करती रहती थी। जब कभी फोन नहीं लगता, तो दिल में अजीब सा डर महसूस होने लगता था। दोनों भाईयों के यूक्रेन बॉर्डर क्रॉस करने के बाद उनकी चिंता कम हो गई थी। इसके बाद सिर्फ फ्लाइट के लिए उनका नंबर आने का इंतजार था। उन्होंने बताया कि दोनों बच्चों के सकुशल घर लौट आने से पूरे परिवार में खुशी का माहौल है। कविता ने कहा कि वह भगवान से बात की प्रार्थना करती हैं कि अभी भी यूक्रेन और बॉर्डर पर फंसे बच्चे जल्द से जल्द अपने वतन आ जाएं। उन्होंने कहा कि पूरे परिवार को दोनों बच्चों के घर लौटने अपार खुशी हो रही है।

यूक्रेन के बच्चों को बॉर्डर पार करने में आसानी

उन्होंने बताया कि यूक्रेन बॉर्डर पर इमिग्रेशन क्लियर करने में भारतीय बच्चों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इमिग्रेशन पर बच्चों की भारी संख्या होती है, जबकि जांच के लिए वहां 14 पुलिसकर्मी ही तैनात हैं। इमिग्रेशन का गेट एक बर में सिर्फ 50 लोगों के लिए ही खुलता है। तकनीकी रूप से स्ट्रांग पासपोर्ट होने के कारण यूक्रेनिस्ट को निकलने में ज्यादा समय नहीं लगता, जबकि भारतीय बच्चों को अपने पासपोर्ट के कारण लंबा इंतजार करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि यूक्रेन से भारत के अधिकांश बच्चे सीमा से बाहर आ चुके हैं। वह पड़ौस के देशों में सुरक्षित स्थानों पर ठहरे हुए हैं, जहां भारत सरकार की ओर से उनके लिए पर्याप्त इंतजाम किए हुए हैं।

रोमानिया के एनजीओ और सरकार को सराहा

दोनों छात्रों ने बताया कि यूक्रेन से भारतीय बच्चों को बाहर निकालने के लिए भारत सरकार की ओर से अच्छे प्रयास किए जा रहे हैं, परंतु वहां के आंतरिक हालात बच्चों की मदद करने की राह में बाधा साबित हो रहे हैं। एक बार बॉर्डर क्रॉस करने के बाद भारत सरकार की ओर से किए जाने वाले प्रबंधों का बच्चों को पूरा लाभ मिल रहा है। उन्होंने बताया कि रोमानिया पहुंचने के बाद वहां की सरकार और एनजीओ की ओर भारतीय बच्चों को हर तरह की सुविधाएं दी जा रही हैं। उनके लिए रहने और खाने से लेकर सभी मूलभूत सुविधाएं मुफ्त दी जा रही हैं।

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