Same Sex Marriage पर खाप पंचायतें भी हुईं मुखर- अनुचित और अव्यवहारिक होगी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता
खाप प्रतिनिधियों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने संबंधी प्रयासों की आलोचना करते हुए कहा कि इससे भारतीय संस्कृति, परंपरा, मूल्यों, विवाह पद्धति और परिवार व्यवस्था का पतन होना तय है। सर्वजातीय सर्वखाप महिला महापंचायत तो इसके विरोध में राष्ट्रपति से लेकर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश को पत्र लिखकर किसी भी सूरत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से रोकने का आग्रह करेगी।;
रवींद्र राठी. बहादुरगढ़। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने पर सुनवाई जारी है। केंद्र सरकार (Central government) ने इसके विरोध में शपथपत्र देते हुए अपनी दलीलें दी हैं। अब खाप पंचायतें भी इसके विरुद्ध मुखर हो रही हैं।
खाप प्रतिनिधियों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने संबंधी प्रयासों की आलोचना करते हुए कहा कि इससे भारतीय संस्कृति, परंपरा, मूल्यों, विवाह पद्धति और परिवार व्यवस्था का पतन होना तय है। सर्वजातीय सर्वखाप महिला महापंचायत तो इसके विरोध में राष्ट्रपति से लेकर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश को पत्र लिखकर किसी भी सूरत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से रोकने का आग्रह करेगी।
बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने को लेकर सुनवाई चल रही है। इसमें याचिकाकर्ता ने लैंगिक सूचक पति-पत्नी शब्द की बजाय जीवनसाथी कहे जाने के प्रावधान की मांग की है। उनकी मांग है कि पुरुष और महिला के स्थान पर व्यक्ति शब्द का उपयोग करते हुए इसे विवाह घोषित किया जाए। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड के अलावा चार अन्य न्यायाधीशों की संवैधानिक बेंच इस याचिका पर सुनवाई कर रही है। वहीं दूसरी ओर भारत सरकार का मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय को इसकी सुनवाई ही नहीं करनी चाहिए। साथ ही इसके विरोध में हलफनामा भी दायर किया गया है।
सर्वजातीय सर्वखाप महिला महापंचायत की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संतोष दहिया के अनुसार समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान करने संबंधी कानून बनाने का विचार और प्रयास सदियों पुरानी भारतीय विवाह पद्धति, परिवार व्यवस्था और भारतीय संस्कृति, संस्कारों एवं मूल्यों के खिलाफ है। इसका हर स्तर पर विरोध होना चाहिए। प्रोफेसर दहिया का मानना है कि समान लिंग विवाह का प्रस्तावित स्वरूप न तो प्राकृतिक दृष्टि से उचित है और न ही व्यवहारिक तौर पर सही ठहराया जा सकता। सर्वोच्च अदालत को यह ध्यान में रखना चाहिए कि भारतीय संस्कृति में सामाजिक व्यवस्था जिस परिवार नामक संस्था पर टिकी है, वह लिव इन या समलैंगिक विवाह के जरिए कायम नहीं रह सकेगी।
पालम-360 के प्रधान चौधरी सुरेंद्र सिंह सौलंकी के अनुसार समान लिंग विवाह को कानूनी मान्यता मिलने से सामाजिक विघटन की त्रासदी बढ़ जाएगी। उनका मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय को सामाजिक ताने-बाने को भी बनाए रखने की तरफ ध्यान देना चाहिए। चंद लोग अपनी मानसिक विकृति को कानून से अनुमति लेकर समाज पर थोपना चाहते हैं। मुट्ठी भर लोगों के लिए देश की अपनी संस्कृति और संस्कार को उपेक्षित करना न्यायोचित नहीं होगा। भारत जैसे देश में समलैंगिक विवाह को किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता। विविधताओं से भरे देश में चंद लोगों की इच्छा को पूरे समाज पर थोपना अनुचित है।
नौगामा राठी खाप के प्रधान डॉ. सोमबीर राठी के अनुसार भारत एक ऐतिहासिक, परंपरावादी और प्राचीनतम संस्कृति वाला देश है। यहां विवाह एक सामाजिक परंपरा और संस्कृति है। हमारे देश में समलैंगिक विवाह हर तरह से अप्राकृतिक है। अलग-अलग रीति-रिवाजों और परंपराओं वाले इस विविधतापूर्ण देश में समान लिंग विवाह को किसी भी तरह से कानूनी आधार नहीं मिलना चाहिए। भारतीय समाज इस जीवनशैली को कदापि सम्मान प्रदान नहीं कर सकता। यह मामला दो व्यक्तियों की निजी अभिरुचि या स्वतंत्रता का नहीं अपितु समाज में विवाह नामक व्यवस्था के समानांतर परिपाटी खड़ी करने का प्रयास है।