Mushroom Farming : अंबाला के किसानों की मशरूम का जायका ले रहे हैं नेपाल- लखनऊ व चंडीगढ़ के लोग

प्रदेश में ऐसे कई किसान हैं जो अन्य किसानों के लिए उदाहरण बन कर उभरे हैं। गांव रज्जुमाजरा के युवा प्रगतिशील किसान गुरदेव व संदीप इन किसानों में से एक हैं। इनका कहना है कि मशरूम की फार्मिंग करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।;

Update: 2021-10-13 08:07 GMT

हरिभूमि न्यूज. अंबाला

बदलते परिवेश में फसलों का विविधीकरण जोर पकड़ रहा है। किसान परंपरागत खेती में बदलाव करते हुए अब फलों, फूलों, सब्जियों, दलहन, तिलहन, मशरूम की खेती की करने लगे हैं। अब किसानों का प्रति एकड़ में अधिक उत्पादन के साथ साथ प्रति एकड़ में आय की ओर भी रूझान बढ़ने लगा है। नकद फसलों की ओर किसानों को बढ़ता रूझान जहां एक ओर किसानों को समृद्ध कर रहा है, वहीं दूसरी ओर देश की अर्थव्यवस्था में भी ऐसे किसानों का प्रेरणादायक योगदान है।

प्रदेश में ऐसे कई किसान हैं जो अन्य किसानों के लिए उदाहरण बन कर उभरे हैं। गांव रज्जुमाजरा के युवा प्रगतिशील किसान गुरदेव व संदीप इन किसानों में से एक हैं। इनका कहना है कि मशरूम की फार्मिंग करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा बागवानी विभाग के माध्यम से योजनाएं भी चलाई जा रही हैं, जिसके माध्यम से किसानों को जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें अनुदान भी दिया जाता है। प्रगतिशील किसान गुरदेव व संदीप द्वारा एमआईडीएच (मिशन फॉर इंटीग्रेटिड डिवेलपमेंट ऑफ होर्टीकल्चर) स्कीम का लाभ लेते मशरूम फार्मिंग की जा रही है। इसके लिये इन्होंने प्रोडक्शन तथा कंपोस्ट यूनिट के लिए 20-20 लाख रुपये का ऋण इस स्कीम के माध्यम से लिया है, जिस पर उन्हें 16 लाख रुपये का अनुदान मिला है।

11 साल से कर रहे हैं मशरुम की खेती

युवा किसान संदीप व गुरदेव ने बताया कि वे लगभग पिछले 11 सालों से मशरूम फार्मिंग कर रहे हैं। पहले वे किराए पर यूनिट लेकर यह काम करते थे। अब उन्होंने गांव रज्जू माजरा में भी मशरूम प्रोडक्शन तथा कंपोस्ट यूनिट लगाई है। उन्होंने बताया कि प्रोडक्शन यूनिट पूरी तरह से एयरकंडीशन है। उन्होंने बताया कि वे बटन व मल्किी मशरूम की फार्मिंग करते हैं जोकि बेहद लाभदायक है। लगभग आधा एकड़ खेत में यह यूनिट स्थापित की है और प्रोडक्शन यूनिट में एक बार में 12500 बैग रखने की व्यवस्था है। साल में यहां 4 बार बैग रखे जाते हैं। एक बैग में 10 किलोग्राम कंपोस्ट तथा बीज रखा जाता है। जिससे दो किलो मशरूम तैयार होती है।

कई शहरों में जाती है मशरुम

प्रगतिशील किसानों ने बताया कि उनके यहां तैयार हुई मशरूम चंडीगढ़, अंबाला, नेपाल, लखनऊ तक जाती है। उन्हें न तो इसके उत्पादन में और न ही इसकी बक्रिी में किसी प्रकार की कोई दक्कित आती है। उनकी यूनिट से ही खरीददार तैयार मशरूम ले जाते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी यूनिट में 5 रूम हैं, जिनमें 45 दिन में मशरूम तैयार हो जाती है। 3.5 से 4 क्विंटल मशरूम प्रतिदिन तैयार होती है जिसे 200 ग्राम की डब्बिी में पैक किया जाता है। इन युवा किसानों ने मशरूम फार्मिंग से न सर्फि स्वंय के लिए नई खेती की क्षेत्र में शुरूआत कर मुनाफा कमाया है बल्कि 30 से अधिक अन्य लोगों को भी रोजगार दिया जा रहा है। इनकी प्रोडक्शन और कंपोस्ट यूनिट में कंपोस्ट तैयार करने से लेकर मशरूम फार्मिंग तथा पैकेजिंग के काम में लोगों को रोजगार दिया जा रहा है। किसानों की मानें तो खर्च निकालने के बाद उन्हें लगभग 10 लाख रुपये की आमदन हो जाती है। मशरूम का बीज लगभग 80 रूपये प्रतिकिलो की दर से मिलता है।

तूड़े एवं पराली से तैयार होती है कंपोस्ट

कंपोस्ट यूनिट में तूड़े व पराली के द्वारा कंपोस्ट तैयार की जाती है जोकि ऑर्गेनिक खाद होती है। मशरूम के उत्पादन के बाद इसको भी किसान बिक्री भी कर सकते हैं। अपने खेत में इसे डालकर उपजाऊ शक्ति भी बढ़ाई जा सकती है यानि इस इसका रिसाइकिल यूज किया जा सकता है। जिला बागवानी अधिकारी डॉ. अजेश कुमार ने बताया कि किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। मशरूम की खेती के लिये यह आवश्यक है कि इसकी तकनीक और इसकी फार्मिंग की पूरी जानकारी किसान को होनी चाहिए। इसकी खेती के लिये यह आवश्यक है कि यूनिट के अंदर का तापमान मेनटेन रहे। उन्होंने कहा कि किसान मशरूम की खेती के लिये बागवानी विभाग से संपर्क कर सकते हैं। 

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