नीतू घनघस के गोल्डन पंच से बढ़ा छोटी काशी का मान, 2012 में की थी मुक्केबाजी की शुरुआत, गांव में मनाया जश्न

नीतू घनघस ने शनिवार को कनाड़ा की भारतीय मूल की खिलाड़ी ढिल्लो प्रियंका को एक तरफा मुकाबले में हराकर फाइनल में जगह बनाई थी तो क्वार्टर फाइनल मुकाबले में नीतू ने आयरलैंड की निकाले क्लायड को हराकर अपना ब्रांज मेडल पहले ही पक्का कर लिया था।;

Update: 2022-08-07 12:29 GMT

हरिभूमि न्यूज  : भिवानी

इंग्लैंड के बर्मिंघम में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम ( commonwealth games ) के दौरान रविवार को रिंग में धनाना की बेटी नीतू घनघस ( Neetu Ghanghas ) ने स्वर्ण पंच जड़ छोटी काशी का नाम एक बार फिर से सुनहरे अक्षरों में दर्ज करवा दिया है। शनिवार को सिल्वर पदक प्राप्त करने वाली नीतू घनघस ने 24 घंटे के दौरान ही पदक का रंग बदल कर उसे स्वर्ण में तब्दील कर दिखा दिया कि छोटी काशी को मिनी क्यूबा के नाम से जाना जाता है।

नीतू के स्वर्ण पंच ने परिजनों और ग्रामीणों को जश्न मनाने का अवसर प्रदान किया है। नीतू घनघस ने शनिवार को कनाड़ा की भारतीय मूल की खिलाड़ी ढिल्लो प्रियंका को एक तरफा मुकाबले में हराकर फाइनल में जगह बनाई थी तो क्वार्टर फाइनल मुकाबले में नीतू ने आयरलैंड की निकाले क्लायड को हराकर अपना ब्रांज मेडल पहले ही पक्का कर लिया था। रविवार को जब नीतू रिंग में उतरी तो पंचों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि छोटी काशी को मिनी क्यूबा क्यों कहा जाता है।

2012 में की थी मुक्केबाजी की शुरूआत

नीतू घनघस के केरियर की बात करें तो उनके पिता जयभगवान की प्रेरणा से वर्ष 2012 से नीतू ने मुक्केबाजी की शुरूआत की। 19 अक्टूबर 2000 को जन्मी नीतू के पिता चंडीगढ़ विधानसभा में सरकारी नौकरी करते है। नीतू हरियाणा के भिवानी जिला के गांव धनाना में रहकर मुक्केबाजी करती रही है। भिवाीन के मुक्केबाज बिजेंद्र ने जब 2008 में देश के लिए ओलंपिक मेडल लिया था, उसके बाद से ही नीतू घनघस के पिता व नीतू के दिमाग में मुक्केबाजी के खेल की तरफ रूझान बनाया था। जिसकी शुरूआत वर्ष 2012 में की गई। नीतू को अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज मैरिकाम के उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखा जाता है।

ये है नीतू घनघस की उपलब्धियां

नीतू ने 2017 में आईबा यूथ वूमैन बॉक्सिंग प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। वर्ष 2018 में एशियन यूथ बॉक्सिंग में भी गोल्ड मेडल प्राप्त किया। वर्ष 2022 में बुल्गारिया में हुई 73वें सरांडजा बॉक्सिंग टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल प्राप्त किया। हालांकि इन उपलब्धियों के दोरान वर्ष 2016 व 2019 में नीतू घनघस को शोल्डर इंजरी का सामना भी करना पड़ा। वर्ष 2016 में पैल्विक इंजरी से रिक्वर होने के बाद नीतू घनघस ने आईबा यूथ बॉक्सिंग में मेडल लिया, लेकिन 2019 में हुई शोल्डर इंजरी ने उसे लगभग दो साल तक मुक्केबाजी से दूर रखा। नीतू ने कॉमनवेल्थ खेलों में जाने से पहले कहा था कि उसे अपनी मेहनत पर पूरा भरोसा है कि कॉमनवेल्थ में गोल्ड आएगा और आज यह बात नीतू ने सही साबित कर दिखाई।

बचपन से ही संजोया था मुक्केबाजी का सपना

नीतू के पिता जयभगवान घणघस, ताऊ रणबीर व भिवानी बॉक्सिंग क्लब के प्रधान कमल सिंह ने बताया कि नीतू एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी है। इसने बचपन से ही मुक्केबाज बनने का सपना संजोया था। आज कॉमनवेल्थ जैसी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर इसने भारत व हरियाणा का नाम रोशन किया है। उन्होंने बताया कि कॉमनवेल्थ खेलों से लौटने के बाद नीतू एशियन गेम और फिर ओलंपिक की तैयारी में जुटेगी। वही नीतू की माता मुकेश ने बताया कि उन्होंने नीतू घनघस के खेल को लेकर काफी मेहनत करनी पड़ी। हरियाणा को दूध-दही के खाने वाला प्रदेश माना जाता है। इसीलिए नीतू की खुराक में घी, दूध, दही का विशेष प्रबंध किया जाता रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि आमतौर पर मुक्केबाजी को लड़कों का खेल माना जाता है, परन्तु उन्होंने इस लिंगभेद से उपर उठकर नीतू को लड़के की तर्ज पर मुक्केबाजी खेल में डाला तथा उन्हे सफलता मिली। उन्होंने देश के हर बेटी की माता-पिता से यह भी अपील की कि अपनी बेटियों को पीछे न रहने दे तथा वे जो भी खेलना चाहे या पढ़ना चाहे, उन्हे निसंकोच आगे बढ़ाएं। क्योंकि बेटियां किन्ही भी मायनों में बेटों से कम नहीं हैं।


  मैच जीतने के बाद खुशी जताते हुए परिजन।

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