हरियाणा मेडिकल काउंसिल की वेबसाइट पर ऑनलाइन नहीं हो पा रहे पंजीकरण
मेडिकल के स्टूडेंट्स व अभिभावकों ने बताया कि बड़ी उम्मीदों के साथ में दूर-दूर से वे यहां आते हैं, लेकिन आनलाइन सिस्टम फेल होने के कारण छोटे से छोटे काम के लिए उन्हें घंटों परेशान होना पड़ता है।;
योगेंद्र शर्मा: चंडीगढ़
हरियाणा मेडिकल काउंसिल (एचएमसी) में तमाम दावों के बावजूद अभी तक मैनुअल कामकाज जारी है। काउंसिल (Council) की ओऱ से कोई भी इस पर मुंह खोलने को तैयार नहीं है क्योंकि जिस निजी कंपनी को इस काम की जिम्मेवारी दी गई है, समयावधि समाप्त हो जाने के बाद भी उनसे ही काम लिया जा रहा है।
कईं तरह के पंजीकरण कराने के लिए दफ्तर पहुंचने वाले मेडिकल के विद्यार्थियों ने अब तमाम दिक्कतों को लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज को एक पत्र भेजकर इस ओऱ ध्यान देने की मांग की है। इतना ही नहीं इस संबंध में सेहत मंत्री विज की सेहत ठीक होते ही अभिभावक औऱ मेडिकल की पढ़ाई करने वाले उनसे मुलाकात कर सारी समस्या बताएंगे।
डाक्टरों के पंजीकरण के लिए गठित काउंसिल की खुद की वेबसाइट की हेल्थ खुद ही खराब हो, तो आप क्या कहेंगे ? मेडिकल के स्टूडेंट्स व अभिभावकों ने बताया कि बड़ी उम्मीदों के साथ में दूर-दूर से वे यहां आते हैं, लेकिन आनलाइन सिस्टम फेल होने के कारण छोटे से छोटे काम के लिए उन्हें घंटों परेशान होना पड़ता है। डाक्टरों के डाक्यूमेंट्स अपलोड करने, चेक लिस्ट से लेकर दर्जनों बिंदुओं को लेकर तकनीकी लोगों के पास जवाब नहीं है। एक दर्जन से ज्यादा तरह के पंजीकरण करने वाली कोंसिल में बैठे रजिस्ट्रार और अध्यक्ष खुद इस तरह की तकनीकी दिक्कतों को लेकर दुखी है। स्टाफ कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं। कईं बार आधार कार्ड, डिग्री अपलोड करने के बाद में प्रमाण पत्र जनरेट नहीं होते, होते हैं, तो आधी अधूरी सूचना, अथवा गलत फोटो वाले, जिसे देखने के बाद में कईं छात्र छात्राएं भड़क जाते हैं।
रोहतक निवासी रामनिवास सिंह और पानीपत के राजेंद्र पंवार ने बताया कि सारा ब्योरा भरने के बाद भी कोई रसीद (एक्नालेजमेंट) इस पर नहीं आती है। कौंसिल के दफ्तर में हर माह औसतन डेढ़ सौ आवेदन आते हैं, लेकिन सभी को कईं तरह की चुनौतियों से जूझना पड़ता है। पहले भी राज्य के स्वास्थ्य एवं गृहमंत्री अनिल विज के पास में मामला पहुंच चुका है। नोएडा बेस निजी कंपनी द्वारा पहले कोविडकाल व बाद में भी कामकाज को पटरी पर लाने के स्थान पर केवल आश्वासनों का झुनझुना पकड़ाया जा रहा है।
खास बात यह है कि कंपनी से अनुबंध समाप्त हो जाने के बाद भी अभी तक इस कंपनी के भरोसे ही कामकाज अटका हुआ है। दो माह के लिए दिए गए कामकाज को एक साल का समय होने जा रहा है। डाक्टर नवनीत व उनके साथी मुकेश कुमारी, संजीव व कईं अभिभावकों ने ने कहा कि इस संबंध में वे जल्द ही सीएम और सेहत मंत्री विज के ठीक होने पर मिलेंगे। इन लोगों का कहना है कि कौंसिल के अध्यक्ष रजिस्ट्रार व सदस्यों तक की नालेज में पूरा मामला डाल चुके हैं। मेडिकल स्टूडेंट्स और डाक्टरों के सामने आनी वाली दिक्कतों को पहले भी हरिभूमि ने उठाया था।
फीस देने के बाद भी लटक रहे काम
काउंसिल में दर्जनभर से ज्यादा पंजीकरण और अपने सर्टिफिकेट हासिल करने, एजूकेशन व स्थान अपडेट करने के लिए मैनुअल काम कराने के लिए दफ्तर में आने वाले डाक्टरोंद्वारा कईं बार स्टाफ को खरी खोटी सुनाई जा रही है। इनका सुझाव है कि आईटी क्रांति के युग में पासपोर्ट दफ्तर और क्यूआर कोडिंग आदि सर्टिफिकेट पर होनी चाहिए लेकिन देसी तौर तरीके से काम किया जा रहा है। एक स्टूडेंट ने कहा कि इस पूरी वैबसाइट पर प्रिंट का कोई विकल्प तक नहीं है।
स्वास्थ्य मंत्री ने लांच की थी वेबसाइट
इसी साल 3 जनवरी को काउंसिल द्वारा वsबसाइट लांच कर सर्टिफिकेट मंत्री अनिल विज के आफिस में जनरेट कर दिखाया गया था। लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि एक साल बीतने के बाद भी कंपनी अपने कामकाज को ठीक करने में सक्षम नजर नहीं आ रही है। विशेषज्ञ बताते हैं कि 16 तरह के सर्टिफिकेट निर्धारित फीस लेने के बाद में जारी किए जाते हैं। हरियाणा चिकित्सा परिषद में स्थायी पंजीकरण, अस्थानी पंजीकरण, अनापत्ति प्रमाम पत्र, गुड कंडैक्ट सर्टिफिकेट, सीएमई, आरटीआई शिकायत आदि जैसे कार्यों के लिए जाना होता है। आनलाइन कामकाज के दावे तो किए जा रहे हैं लेकिन कागजात अपलोड होने से लेकर फीस भरने तक का कोई कामकाज सुचारू रुप नहीं हो पा रहा है।