प्रमोद भार्गव का दो- टूक : सूर्य नमस्कार का विरोध ठीक नहीं
सूर्य नमस्कार योग की क्रियाएं हैं, इनका किसी धर्म से कोई वास्ता नहीं है। हम जिम जाते हैं, वहां अनेक शारीरिक क्रियाएं ऐसी होती हैं, जिनसे लगता है कि हम सिजदे में जा रहे हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है। सूर्य नमस्कार को भी इसी दृष्टि से देखने की जरूरत है। देशभर में हजारों शिक्षक योग और संस्कृत के अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। इनके पाठों में सूर्य नमस्कार से लेकर प्रकृति की प्रार्थनाएं श्लोकों के उच्चारण के साथ पढ़ाई जाती हैं, तब क्या इस्लाम प्रभावित नहीं होता? समरसता विरोधी यह मानसिकता तो अलगाववाद का प्रतिनिधित्व करने वाली है। धर्म की आड़ में ऐसी आपत्तियां स्वंयभू झंडाबरदार मुस्लिम समाज की छवि कट्टर बनाने के अलावा कुछ नहीं कर रहे।;
प्रमोद भार्गव
सूर्य ब्रह्मांड का एक ग्रह है। यह दुनिया को प्रकाश देने के साथ जीवन भी देता है। इसके बावजूद सूर्य की ये देनें, उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने की बजाय, धर्म के आधार पर आपात्ति बन रही हैं। आल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने फतवा जारी किया है कि 'सूर्य की उपासना करना इस्लाम धर्म के अनुसार उचित नहीं है, इसलिए सरकार को इससे जुड़े विद्यालयों को दिए दिशा-निर्देश वापस ले लेने चाहिए, जिससे धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का आदर बना रहे।' रहमानी ने कहा है कि 'भारत एक धर्मनिरपेक्ष, बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक देश है। इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर हमारा संविधान बना है। संविधान हमें इसकी अनुमति नहीं देता कि सरकार शिक्षण संस्थानों में किसी धर्म विशेष की शिक्षाएं देने का उपाय करे या किसी धर्म विशेष समूह की मान्यताओं के आधार पर उत्सव आयोजित किए जाएं। अतएव यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान सरकार देश के सभी वर्गों पर बहुसंख्यक समुदाय की सोच और परंपरा को थोपने का प्रयास कर रही है।'
दरअसल भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर तीस राज्यों के सूर्य नमस्कार की परियोजना को जमीन पर उतारने का फैसला किया है। इसमें देश के तीस हजार विद्यालयों को पहले चरण में शामिल किया जाएगा। 1 से 7 जनवरी तक यह कार्यक्रम स्कूलों में होना है। तत्पश्चात 26 जनवरी को सूर्य नमस्कार प्रक्रिया के साथ बड़े पैमाने पर संगीत कार्यक्रम भी प्रस्तावित है। सूर्य की इस स्तुति के दौरान सूर्य के सम्मान में योग की कुछ आसनों का भी प्रयोग किया जाता है, जो मानव शरीर के लिए स्वास्थ्य की दृष्टि से विशेष रूप से लाभदायी हैं। मौलाना रहमानी इन्हीं आसनों को सनातन हिंदू धर्म और परंपराओं से जुड़ी होने के कारण आपत्ति जता रहे हैं। इस नाते सूर्य नमस्कार की विधि इतर संप्रदाय पर थोपने के अलावा कुछ नहीं है? हालांकि मौलाना की इस आपत्ति के विरोध में इस्लाम के अनुयायी ही मुखर होने लगे हैं। रांची के एक विद्यालय की योग शिक्षिका राफिया नाज ने बोर्ड को तर्कसंगत सीख देते हुए कहा है कि 'सूर्य नमस्कार का अर्थ यह नहीं होता कि हम सूर्य की पूजा करें, बल्कि ये बारह ऐसे आसन हैं, जो योग के माध्यम से शरीर को स्वस्थ रखने का काम करते हैं। यदि किसी को योग से जुड़े मंत्र नहीं पढ़ने हैं तो यह बाध्यकारी नहीं है कि आप मंत्रोच्चार के साथ ही योगासन और सूर्य नमस्कार करें। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (महिला प्रकोष्ठ) की संयोजिका शालिनी अली, शिया स्कॉलर रजा हुसैन रिजवी और उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष बिलाल रहमान ने भी मौलाना रहमानी के बयान को खारिज किया है। मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्व-विद्यालय, हैदराबाद के कुलाधिपति फिरोज बख्त अहमद ने तो दो टूक शब्दों में यहां तक कह दिया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, मुस्लिमों का ठेकेदार नहीं है। सूर्य नमस्कार योग की क्रियाएं हैं, इनका किसी धर्म से कोई वास्ता नहीं है। हम जिम जाते हैं, वहां अनेक शारीरिक क्रियाएं ऐसी होती हैं, जिनसे लगता है कि हम सिजदे में जा रहे हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है। सूर्य नमस्कार को भी इसी दृष्टि से देखने की जरूरत है।
देशभर में हजारों शिक्षक योग और संस्कृत के अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। इनके पाठों में सूर्य नमस्कार से लेकर प्रकृति की प्रार्थनाएं श्लोकों के उच्चारण के साथ पढ़ाई जाती हैं, तब क्या इस्लाम प्रभावित नहीं होता? यह नहीं भूलना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र संघ के आह्वान पर 177 से भी ज्यादा देश प्रति वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाते हैं। इनमें दर्जनों इस्लाम धर्मावलंबी देश भी हैं। सूर्य की मान्यता केवल भारत में हो ऐसा नहीं है। प्राचीन मिस्र में रे, रा या एमोन रे आदि रूपों में सूर्य की बड़ी प्रतिष्ठा थी। सुमेरिया की सभ्यता में वह उतु नाम से पूजा जाता है। बेबीलोन के धर्म में 'शम्स' के रूप में सूर्य की मान्यता है। असीरियावासी 'अश्शुर' नाम के सूर्यदेव के उपासक थे। ईरानी सूर्य को 'मित्रा' के रूप में मानते थे। यूनान में 'हेलिओस' और 'एपेलो' नामक देवता सूर्य का प्रतिनिधत्व करते थे। पेरू और मैक्सिको में भारत की तरह ही सूर्य मंदिर बनाए जाने की परंपरा थी। पेरू में 'इंका' जाति के लोग खुद को सूर्यवंशी मानते हैं। मध्य अमेरिकी की मय-सभ्यता सूर्य को 'अह-किंचिल' के प्रतीक के रूप में देखती थी। मसलन सूर्य की मान्यता और महिमा विश्वव्यापी है। दरअसल योग को किसी धार्मिक नहीं स्वास्थ्य-लाभ के एजेंडे में शामिल करके योग दिवस के रूप में मान्यता दी गई है। इसकी प्रस्तावना में कहा है कि 'योग स्वास्थ्य लाभ की आवश्यकता पूर्ति के लिए सभी प्रकार की ऊर्जाओं की आपूर्ति करता है। इन ऊर्जाओं की शरीर में आपूर्ति तभी संभव है, जब सूर्य नमस्कार से जुड़ी योगासनों को अमल में लाया जाए। अतएव योग को किसी संप्रदाय को आहत करने की मंशा के रूप में नहीं देखना चाहिए। योगासन का विरोध केवल इस्लाम धर्मावलंबी करते हों, ऐसा भी नहीं है, एक समय अमेरिका, ब्रिटेन और कैलिफोर्निया के धर्मगुरुओं ने भी इसे अस्वीकार किया था। तब उन्हें योग ईसाइयत को प्रभावित करने वाला लगा था, किंतु अब इसे ईसाई धर्मावलंबी स्वीकार कर आत्मसात कर रहे हैं।
आजकल उत्तर-प्रदेश के एहसान राव पुलिस सुरक्षा में इसलिए रह रहे हैं, क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गृहमंत्री अमित शाह के जुलूस में जय श्रीराम और भारत माता के नारे लगाए थे। इस पर आपत्ति जताते हुए देवबंद के आलिम और मदरसा श्ोखुल हिंद के मुफ्ती कासमी ने राव की नारेबाजी पर कहा था कि इस्लाम में इसकी कतई गुजांइश नहीं है। कुछ समय पहले राष्ट्रगीत वंदे मातरम महाराष्ट्र व तमिलनाडु के विद्यालयों में अनिवार्य करने के कारण चर्चा में आए थे। तब वंदे मातरम को लेकर मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग और राजनीतिक दलों ने विरोध जताया था। राष्ट्रगीत का बहिष्कार संसद और विधानसभाओं में होना कोई नई बात नहीं है, जबकि संविधान के इस प्रावधान का अपमान अलगाववादी मानसिकता का प्रतीक है। यह मामला तब और गंभीर हो जाता है, जब निर्वाचित सांसद और विधायक राष्ट्रगान की जानबूझकर अवहेलना करते है, जबकि कोई भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि न केवल बहुधर्मी और बहुजातीय मतदाताओं के बहुमत से संसद में पहुंचता है, बल्कि धर्म व जातीयता से ऊपर उठकर संविधान, देश व जनहित की शपथ लेकर अपने कर्तव्य का पालन शुरू करता है। सूर्य नमस्कार को लेकर मौलाना रहमानी संविधान व धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा के लिए आपत्ति जताते हैं, लेकिन जब इसी संविधान की शपथ लेकर भारतमाता और राष्ट्रगान की अवहेलना मुस्लिम सांसद व विधायकों द्वारा की जाती है तो होंठ सिल लेते हैं। तब यह कैसे बहु-धर्मिकता और बहु-सांस्कृतिकता का सम्मान हुआ? समरसता विरोधी यह मानसिकता तो अलगाववाद का प्रतिनिधित्व करने वाली है। धर्म की आड़ में ऐसी आपत्तियां मुस्लिम समाज के स्वंयभू झंडाबरदार मुस्लिम समाज की छवि कट्टर और रूढ़िवादी बनाने के अलावा कुछ नहीं कर रहे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।