मानहानि नोटिस से पीजीआई में मचा हड़कंप, पढ़ें पूरा मामला
नोटिस में लिखा है कि 15 दिन में सार्वजनिक माफी मांगें या 5 करोड़ रुपये का हर्जाना देने के लिए तैयार रहें। डॉ. सिवाच के वकील ने यह नोटिस 5 जून को रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा भिजवा दिया है। दरअसल मामला खानुपर मेडिकल कॉलेज से जुड़ा हुआ है।;
हरिभूमि न्यूज:रोहतक
काफी दिनों से शांत चल रही पीजीआई का पारा फिर चढ़ गया है। इस बार हड्डी रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. आरसी सिवाच के मानहानि नोटिस ने हड़कंप मचा दिया। डॉ. सिवाच ने छवि को नुकसान पहुंचाने, मानसिक, शारीरिक, आर्थिक क्षति पहुंचाने का आरोप लगाते हुए 5 करोड़ की मानहानि का दावा किया है। उन्होंने हेल्थ यूनिवर्सिटी के कुलपति समेत 26 लोगों को यह नोटिस भिजवाया है। नोटिस में लिखा है कि 15 दिन में सार्वजनिक माफी मांगें या 5 करोड़ रुपये का हर्जाना देने के लिए तैयार रहें। डॉ. सिवाच के वकील ने यह नोटिस 5 जून को रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा भिजवा दिया है। दरअसल मामला खानुपर मेडिकल कॉलेज से जुड़ा हुआ है।
डॉ. सिवाच यहां डायरेक्टर थे। 2016 में पीजीआई में हड्डी रोग विभागाध्यक्ष के पद पर आ गए थे। उनके डायरेक्टर रहने की अवधि के दौरान करीब 25 तरह के आरोप लगाकर जांच की गई थी। पहली जांच के आधार पर उन्हें सस्पेंड कर दिया था, विभागाध्यक्ष का पद भी छीन लिया गया था। दूसरी जांच में उन्हें क्लीन चिट मिल गई। आरोप निराधार पाए जाने पर अब उन्होंने मानहानी का दावा ठोक दिया है। नोटिस काे लेकर हेल्थ यूनिवर्सिटी के बड़े अधिकारी को फोन किया गया तो संपर्क नहीं हो पाया।
इस तरह के आरोप लगे थे : डॉ. सिवाच पर सबसे बड़ा आरोप खानपुर मेडिकल कॉलेज में बिना क्वालिफाई और बिना इंटरव्यू के भर्ती करने का था। इसके साथ-साथ एडवरटाइज मेंट में क्वालिफिकेशन बदलने का आरोप भी था। कॉलेज में कॉपरेटिव मैस खोलने की भी जांच की गई थी। इसके अलावा कोड ऑफ कंडक्ट में वेटिंग लिस्ट की नर्सों को अपॉइंट करवाने और होली व दिवाली पर रुपये इकट्ठे करने जैसे करीब 25 आरोपों की जान की गई थी। डॉ. सिवाच के अनुसार इन आरोपों को लेकर किसी ने कोई शिकायत तक नहीं की थी।
ऐसे हुई मामले की जांच : डॉ. आरसी सिवाच 2011 से 2016 तक खानपुर मेडिकल कॉलेज के निदेशक थे। 2016 में उन्होंने पीजीआई में हड्डी रोग विभाग अध्यक्ष के पद पर ज्वाइन कर लिया था। बाद में उन पर कई आरोप लगे और डॉ. आरबी सिह से जांच करवाई गई। यह जांच 2016-17 में चली। इसके आधार पर कुलपति डॉ. ओपी कालरा ने उन्हें 2018 में सस्पेंड कर दिया और विभागाध्यक्ष का पद भी छीन लिया गया। डॉ. सिवाच का आरोप है कि जांच हो रही थी लेकिन उनके बयान तक दर्ज नहीं किए गए। इसके बाद पूर्व सेशन जज आरपी भसीन ने डेढ़ साल तक आरोपों की जांच के बाद 121 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की और डॉ. सिवाच पर लगाए सभी 25 आरोप निराधार पाए गए।
फरवरी में फिर एचओडी : फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के बाद रेगुलर जांच हुई तो उसकी रिपोर्ट फरवरी में आ गई। क्लीन चिट मिली तो डॉ. सिवाच ने करीब दो साल बाद फिर से फरवरी 2021 में हड्डी रोग विभागाध्यक्ष के पद पर ज्वाइन कर लिया। अब उन्होंने मानहानी का दावा किया है। पूरे मामले में एनाटोमी के विभागाध्यक्ष डॉ. एपीएस बतरा, पूर्व चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एमएस पूनिया और पीजीआईएमएस के एमई ब्रांच के अधीक्षक महेंद्र सिंह को बतौर गवाह पेश किया। नोटिस में डॉ. सिवाच का आरोप है कि सभी ने दस्तावेजों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया।
नोटिस में ये दावा किया गया
डॉ. सिवाच के वकील वीएस राठी ने कानूनी नोटिस में कुलपति व कार्यकारी परिषद (इसी) के सदस्यों पर आरोप लगाए हैं। दावा किया गया है कि अधिकारियों ने अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया। बड़े अधिकारी ने मंत्री से छुपाया कि डॉ. आरबी सिंह जांच के लिए उचित अधिकारी नहीं है क्योंकि डॉ. आरबी सिंह और डॉक्टर सिवाच में का वरिष्ठता का विवाद है।
छवि धूमिल हुई : डॉ. सिवाच : डॉ. आरसी सिवाच, अध्यक्ष, हड्डी रोग विभाग ने कहा कि इंक्वायरी ऑफिसर ने साफ लिखा है कि मानव अधिकार आयोग के लोगों की रिपोर्ट से मेरी छवि धूमिल हुई है। कानूनी नोटिस में साफ कहा गया है कि ये सब माफी लायक नहीं है फिर भी इन सभी 26 लोगों को 15 दिन का सार्वजनिक रूप से माफी मांगने का समय दिया गया है। या तो वे माफी मांगे या 5 करोड़ की मानहानि का दावा झेलने को तैयार रहें। हमने 5 जून को नोटिस पोस्ट द्वारा भिजवा दिया है।