विदेशों तक पहुंचती है पूंडरी की बनी फिरनी, अंग्रेज भी बड़े स्वाद से खाते थे
फिरनी तैयार करने वाले हलवाई रघुबीर सैनी, कृष्ण सैनी, मन्गु, रघु सैनी, अशोक कुमार, सतीश सहित पूंडरी के हलवाइयाेंं ने बताया कि पूंडरी की फिरनी पूरे प्रदेश में मशहूर है। सावन के महीने में तीज के त्योहार पर भाई अपनी बहन के यहां ले जाने वाली कोथली में जब तक फिरनी नहीं ले जाता है, तब तक कोथली को संपूर्ण नहीं माना जाता।;
अश्वनी खुराना : पूडरी
देश में ही नहीं विदेशों में भी बड़े चाव से खाते है लोग पूंडरी-फतेहपुर में बनी फिरनी। सावन मास में हरियाणा सहित अन्य राज्यों के बड़े शहरों में अक्सर मिठाई की दुकानों व वाहन में रखी पूंडरी की मशहूर फिरनी आपको सहजता से दिखाई पड़ जायेगी। पूंडरी में बनने वाली फिरनी जैसा जायका अन्य जगह बनी फिरनी में आपको खाने में नहीं आयेगा। इसका मुख्य कारण जहां इसके बनाने की तकनीक है, वहीं पूंडरी के आसपास के पानी में शोरे की मात्रा नाममात्र है और मीठा पानी होने की वजह से फिरनी लच्छेदार और स्वादिष्ट बनती है।
फिरनी को उस समय अंग्रेजी शासनकाल में अंग्रेज अफसर बड़े चाव खाते थे और अपने साथ भी ले जाते थे। फिरनी तैयार करने वाले हलवाई रघुबीर सैनी, कृष्ण सैनी, मन्गु, रघु सैनी, अशोक कुमार, सतीश सहित पूंडरी के हलवाइयाेंं ने बताया कि पूंडरी की फिरनी पूरे प्रदेश में मशहूर है। सावन के महीने में तीज के त्योहार पर भाई अपनी बहन के यहां ले जाने वाली कोथली में जब तक फिरनी नहीं ले जाता है, तब तक कोथली को संपूर्ण नहीं माना जाता। इस प्रकार की प्रचलित परंपरा को देहाती बोली में कोथली कहा जाता है और पूंडरी-फतेहपुर में लगभग 80 दुकानों पर एक हजार कारीगर फिरनी व घेवर बनाने का काम करते है।
विदेश में रहने वाले भारतीय अपने साथ फिरनी ले जाना नहीं भूलते
विदेशों में रहने वाले भारतीय खासकर हरियाणावासी जब भी इन दिनों विदेश में जाते है या फिर अन्य कोई आता होता है तो उसके हाथ से फिरनी विशेष तौर पर मंगवाते है। फिरनी की प्रसिद्ध का इस बाद से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूंडरी व आसपास के गांव से अपनी दूर-दूर की रिश्तेदारी में जाने के लिए विशेष रूप से फिरनी लेकर जाते है। इसके अलावा देश के अलग-अलग रा'यों या फिर दिल्ली व चंडीगढ़ में रहने वाले लोग या नौकरी पेशा वाले लोग खास तौर पर फिरनी की ढ़िमांड करते है। पूंडरी निवासी रामपाल, शेरसिंह, राजा राम, सोहनलाल, खुशीराम व रामदिया ने बताया कि इन दिनों में खासकर फतेहपुर-पूंडरी के हर घर में मेहमानवाजी के लिए फिरनी परोसी जाती है। हर वर्ष उन्हें अपने रिश्तेदारों या परिचित के लोगों में 15 से 50 किलो. फिरनी भिजवानी पड़ती है।
प्रतिदिन लगभग 125 क्विंटल फिरनी तैयार की जाती है : जून से रक्षा बंधन तक चलने वाले फिरनी के सीजन से कारीगर अपनी वर्षभर जीविका चलाते है। दिनरात चलने वाले इस सीजन के दौरान प्रतिदिन पूंडरी-फतेहपुर में लगभग 80 दुकानों पर 125 क्विंटल फिरनी तैयार की जाती है। जिसमें से अधिकतर रिटेल में हर दिन बिक जाती है, उसके बावजूद दूसरे शहरों में भी थोक में जाती है। हलवाई एसोसिएशन के प्रधान रघुबीर सैनी व कृष्ण हलवाई ने बताया कि पहले की तुलना में अब फिरनी बनाना काफी आसान हो गया है, पहले तहां फिरनी के लिए आटा आदि हाथों से बहुत मेहनत के बाद तैयार किया जाता था, अब अधिकतर हलवाई मशीन से तैयार करते है। एक-एक पीस को हाथों से तैयार किया जाता है, उसके बाद उसे घी में तैयार किया जाता है और बाद में उस पर मीठा चढ़ाया जाता है। एक दिन पहले बनाकर फिरनी तैयार की जाती है, तब अगले दिन तक वह खाने के लायक होती है। शुगर के मरीजों के लिए भी कम मीठे या फिकी फिरनी भी तैयार की जाती है।
कभी व्यास की होती थी फिरनी फेमश, अब अधिकतर हलवाई बनाते है जायकेदार फिरनी : फतेहपुर में फिरनी बनने के शुरूआती दिनों व काफी वर्षों तक व्यास की फिरनी काफी मशहूर रही, लेकिन अब पूंडरी के अधिकतर हलवाई आधुनिक तरीके और ग्राहकों की पसंद को ध्यान में रखकर जायकेदार फिरनी तैयार करते है। जो लच्छेदार, छोटे आकर व कम मीठे की होती है। फिरनी बनाने वाले हलवाइयों ने बताया कि लगभग 80 वर्षोँ फिरनी बनती आ रही है।