Corona संक्रमित मरीजों के उपचार के लिए दिया प्लाज्मा

कोरोना (Corona) को मात देकर ठीक होकर घर पहुंचने वाले ऐसे मरीज(patient) जिनमें कोरोना से संबंधित लक्षण दिखाई दिए थे, वे ठीक होने के 28 दिन बाद और 4 माह के अंदर प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं।;

Update: 2020-06-20 05:38 GMT

रवींद्र राठी : बहादुरगढ़

लगातार कोरोना पॉजिटिव(Corona positive) मरीजों की खबरों के बीच एक अच्छी खबर सुनने को मिली। कुछ दिन पहले ठीक हो चुके युवक ने आरजे अस्पताल में मेडिकल टीम की उपस्थिति में प्लाज्मा डोनेट (Plasma donate) किया। यह प्लाज्मा मेदांता अस्पताल में भर्ती एक वृद्ध कोरोना पॉजिटिव मरीज को चढ़ाया जाएगा, जो बुजुर्ग मरीज को जल्दी ठीक होने में मदद करेगा। हालांकि प्लाज्मा ना तो बिना लक्षण वाले मरीज को चढ़ाया जाता है, ना ही गंभीर मरीज को चढ़ाया जाता है, बल्कि जो मरीज इन दोनों ही स्थितियों के बीच में होता है, उसे प्लाज्मा चढ़ाया जाता है। 

बता दें कि कोरोना को मात देकर ठीक होकर घर पहुंचने वाले ऐसे मरीज, जिनमें कोरोना से संबंधित लक्षण दिखाई दिए थे, वे ठीक होने के 28 दिन बाद और 4 माह के अंदर प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं। भारतीय जनता युवा मोर्चा की ब्लड हेल्पलाइन के सदस्य चिराग पुरुथी ने बताया कि शहर की सब्जी मंडी में फल एवं सब्जी बेचने वाले युवक की 3 मई को कोविड-19 रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। जबकि करीब दस दिन में यह ठीक होकर घर लौट आए थे। इस युवक ने शुक्रवार को आरजे अस्पताल के आशीर्वाद ब्लड बैंक में प्लाज्मा डोनेट किया, जिसे मेदांता में उपचाराधीन कोरोना संक्रमित 83 वर्षीय बुजुर्ग को चढ़ाया गया। इससे पहले नेहरू पार्क निवासी एक महिला भी प्लाज्मा डोनेट कर चुकी हैं और शनिवार को उनके ही परिवार का एक युवक भी प्लाज्मा डोनेट करेगा।

प्लाज्मा उपचार को समझें

ब्लड बैंक के एक अधिकारी ने बताया कि ऐसा मरीज, जिसमें कोरोना के सिरदर्द, बुखार आदि लक्षण दिखाई दिए हों, उनका ही प्लाज्मा लिया जाता है। प्लाज्मा लेने के पहले हम उनको बताते है कि हम सिर्फ आपका प्लाज्मा लेंगे जबकि रक्त के अन्य कंपोनेंट वापस चढ़ा दिए जाएंगे। यह एक बहुत सामान्य प्रकिया है, जिससे घबराने की जरुरत नहीं है, इसकी जिम्मेदारी हमारी है।

ये प्लाज्मा देने की प्रक्रिया

प्लाज्मा कोरोना पॉजिटिव मरीज से लिया जाता है, जो ठीक हो चुका है। मरीज के ठीक होने के 14 दिन की रिपोर्ट निगेटिव आने के 28 दिन बाद और 4 माह के अंदर यह लिया जा सकता है। ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि इस दौरान उक्त व्यक्ति के अंदर उस वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी तैयार हो चुके होते हैं, जो इतने समय तक ही रहते हैं।  

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