दिल्ली में प्रदूषण पर फिर से सियासत गर्म : हरियाणा के गृह मंत्री ने सीएम अरविंद केजरीवाल पर साधा निशाना

हरियाणा से भी गृह एवं सेहत मंत्री विज ने एक बार फिर से दोहराया कि दिल्ली सीएम को दोषारोपण करने के स्थान पर समस्या का वास्तविक हल ढ़ूंढ़ना चाहिए, वास्तव में बताएं इसे कम करने के लिए क्या प्रयास कर रहे हैं ?;

Update: 2021-11-16 06:57 GMT

योगेंद्र शर्मा. चंडीगढ़

दिल्ली में फैल रहे प्रदूषण को लेकर ठोस हल ढ़ूंढ़ने के स्थान पर एक बार फिर से सियासत तेज हो गई है। दिल्ली सीएम द्वारा हर साल की तरह इस बार भी पंजाब, हरियाणा, यूपी की पराली को पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराने जैसे बयानों की प्रदेशों में जमकर आलोचना हो रही है। पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञ भी दिल्ली के प्रदूषण को लेकर दूसरे प्रदेशों पर जिम्मा डालने को सही नहीं मानते, इतना जरूर है कि दिवाली पर मनाही और खास दिशा निर्देशों के बावजूद भी पटाखे जलाने वालों की संख्या अच्छी खासी रही, साथ ही पराली जलाने का क्रम भी जारी रहा। यह बात दीगर है कि हर साल पराली जलाने वालों की संख्या में भारी कमी आती जा रही है। दीपावली पर कई दिनों का अवकाश होने के कारण संबंधित टीमें भी फील्ड में मानीटरिंग के लिए नहीं रहीं ।

सोमवार को सुप्रीम अदालत द्वारा पराली जलाने जैसे आरोपों को लेकर जब असल ब्यौरा देखा, तो उसमें चार फीसदी कारण ही पराली से पाया गया है। जिसके कारण दिल्ली सरकार को फटकार भी लगी औऱ अब पूरे मामले में सभी राज्यों को गंभीरता से काम करना होगा। इस बीच दिल्ली के प्रदूषण को लेकर इस साल भी सियासी माहौल गर्म है, पंजाब और हरियाणा दोनों ही राज्यों के नेता दिल्ली सीएम अरिवंद केजरीवाल को कोसने का काम कर रहे हैं। हरियाणा से भी गृह एवं सेहत मंत्री विज ने एक बार फिर से दोहराया कि दिल्ली सीएम को दोषारोपण करने के स्थान पर समस्या का वास्तविक हल ढ़ूंढ़ना चाहिए, वास्तव में बताएं इसे कम करने के लिए क्या प्रयास कर रहे हैं ?

यहां पर बता दें कि दिवाली के आसपास हर साल ही यह समस्या पैदा हो जाती है। दिल्ली की ओर से पंजाब व हरियाणा प्रदेशों में जलने वाली पराली को बहाना बना दिया जाता है। कुल मिलाकर इस बार एनसीआर के जिलों में पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पूरी तरह से बैन था। उसके बाद भी पराली धान अवशेष खूब जलाए गए और लोगों ने पटाखों का इस्तेमाल भी किया। हर साल इसके पीछे अहम कारण यह भी रहता है कि त्योहारी सीजन में अफसर और कर्मियों की सरकारी छुटियां कईं-कईं होने के कारण फील्ड में कम ही लोग दिखाई देते हैं। कई सरकारी अवकाश होने के कारण फील्ड में लोगों में डर भय वाली बात नहीं रहती। जिसके कारण पटाखे हों या फिर पराली दोनों ही जलाए गए। फील्ड में काम करने वाली टीमों गतिविधियां त्योहारी सीजन में बेहद कम होने के कारण इसका प्रतिकूल प्रभाव होता है।

सुप्रीम अदालत में रखे गए आंकड़ों और तथ्यात्मक रिपोर्ट में मात्र चार फीसदी ही पराली को काऱण माना गया है, कुछ विशेषज्ञ इसे दस फीसदी तक मानते हैं। इसके अलावा बाकी बड़े कारण वे बिल्डिंग निर्माण, औद्योगिक इकाइयों के साथ साथ में दिल्ली और एनसीआर में बड़ी संख्या में दैनिक रुप सड़कों पर दौड़ते वाहन बड़ा कारण है। दिल्ली एनसीआर में निर्माण बड़े व्यापक रूप में हो रहा है, जिसके कारण हाईवे, स्टेट हाईवे और बाकी मार्गों रिहायशी स्थलों पर धूल ही धूल का धुआं देखा जा सकता है।

हरियाणा में नवंबर के पहले सप्ताह पर गौर करें, तो सात आठ नवंबर तक पराली जलाने के सर्वाधिक मामले सामने आए हैं। गत दो सप्ताह में पराली जलाए जाने की 2557 घटनाएं हुई हैं। हरियाणा का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जिला प्रशासन हर साल इनके विरुद्ध एक्शन लेकर जुरमाना वसूलने के साथ साथ मे केस भी दर्ज कराता है।

फील्ड में जिस समय तक अफसरों की टीमें और जिला प्रशासन सख्ती करता है, तो पराली जलाने की घटनाएं कम ही होती हैं। लेकिन त्योहारी सीजन के बहाने और दीवाली के आसपास इस तरह की घटनाएं ज्यादा होती हैं। प्रदूषण से निपटने के लिए हरियाणा की ओऱ से बड़े कदम उठाए जा रहे हैं, इस संबंध में सरकार के आला अफसरों ने एनजीटी और सुप्रीम अदालत में अपनी कार्रवाई का ब्योरा भी दिया है। प्रदेश के आधे से ज्यादा जिले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आते हैं, 14 जिलों में दिवाली पर आतिशबाजी, पटाखों के इस्तेमाल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह बात अलग है कि उसके बावजूद भी लोग चोरी छिपे चलाने और शगुन के तौर पर इस्तेमाल जरूर करते हैं।

प्रतिबंध का असर लोगों में किस हद तक है, यह सभी जानते हैं। पराली जलाने के केसों भी इन दिनों उछाल आता है। सुप्रीम अदालत में सौंपी रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि प्रदूषण के लिए पराली का जलाया जाना बेहद ही कम है, इस दिशा में चल रहे गंभीर प्रयासों के बारे में भी बताया गया है। 90 बाकी कारणों से हो रहा है, जिसमें औद्योगिक इकाइयों, सड़कों पर दौड़ते डीजल व पेट्रोल वाहन, निर्माण स्थलों की धूल दर्जनों कारण हैं।

राज्य में 15 सितंबर से लेकर अभी तक पराली जलाने के 5595 मामले हुए हैं। जो पिछले साल की तुलना करें, तो तुलना में तकरीबन 40 फीसदी तक कमी आई है। पिछले साल इस अवधि के दौरान 8831 मामले दर्ज हुए थे। नवंबर के पहले सप्ताह की शुरूआत होते ही पराली जलाने के मामलों में तेजी आई। दो सप्ताह के दौरान आंकड़ा तीन हजार से बढ़ा और पांच हजार को पार कर गया। पहुंच गया। राज्य का कृषि विभाग और इसके अफसर आंकड़े को संतोषजनक मान रहे हैं, क्योंकि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष 3236 मामले कम दर्ज किए हैं।

केजरीवाल करें गंभीरता से प्रयास हम सहयोग करेंगे : विज

हरियाणा के गृह एवं सेहत मंत्री अनिल विज का कहन है कि प्रदूषण को लेकर दिल्ली सीएम सारे प्रदूषण फैलाने कारणों का गंभीरता से अध्ययन करें, हरियाण अपने स्तर पर गंभीर प्रयास कर रहा है। उसके बाद भी उन्हें कोई सहयोग चाहिए, तो करने के लिए तैयार हैं। विज का कहना है कि दिल्ली का अपना खुद का प्रदूषण ही बेहद गंभीर औऱ खतरनाक है। इसके लिए हमें सियासत नहीं करके कारण और निवारण करने होंगे ताकि आम आदमी को बेहतर जिंदगी मिल सके।

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