हांसी में जीआरपी बैरक की छत गिरी : जीआरपी कर्मियों ने भागकर कर बचाई जान, सामान दब कर हुआ नष्ट

बैरक में सो रहे जीआरपी कर्मी हरपाल सिंह ने बताया कि वह साथी कर्मी राजेश के साथ बैरक में सो रहा था कि बैरक की छत के प्लास्टर के गिरने की आवाज से उसकी आंख खुली तो उसने राजेश को जगाया और तुरंत दोनों बैरक से बाहर की और भागे।;

Update: 2022-07-24 07:47 GMT

हरिभूमि न्यूज, हांसी

करीब तीन पूर्व हुई भारी बरसात व उसके बाद से हो रही थोड़ी बरसात के चलते रेलवे स्टेशन स्थित अंग्रेजों के जमाने में बनी एक बैरक का लैंटर व दीवार शनिवार देर रात करीब 2.30 बजे भरभरा कर गई। गनीमत रही कि बैरक में सो रहे जीआरपी कर्मियों की लैंटर गिरने से चंद मिनट पहले आंख खुल गई और वे समय रहते बैरक से बाहर निकल गए।

बैरक में सो रहे जीआरपी कर्मी हरपाल सिंह ने बताया कि वह साथी कर्मी राजेश के साथ बैरक में सो रहा था कि बैरक की छत के प्लास्टर के गिरने की आवाज से उसकी आंख खुली तो उसने राजेश को जगाया और तुरंत दोनों बैरक से बाहर की और भागे। हरपाल ने बताया कि जैसे ही वे लोग बैरक के बाहर निकले घर की छत वह एक दीवार  भरभरा कर गिर गई और बैरक में रखा उनका तथा अन्य पुलिस कर्मियों का सामान मलबे के नीचे दबने से नष्ट हो गया। उन्होंने बताया कि गनीमत रही कि समय रहते हैं उनकी आंख खुल गई और वे भाग कर बैरक से बाहर आ गए। अन्यथा हादसा बड़ा हो सकता था। हरपाल ने बताया कि बैरक की छत गिरने से बैरक के अंदर रखा उनका सामान कूलर, कुर्सियां सब नष्ट हो गई।


वहीं जीआरपी चौकी प्रभारी भूप सिंह ने बताया कि रेलवे स्टेशन पर बनी यह बैरक अंग्रेजों के जमाने में बनाई गई थी और अब इसकी हालत काफी जर्जर हो चुकी थी। उन्होंने बताया बिल्डिंग की हालत को देखते हुए उन्होंने विभाग को 16 अप्रैल को लेटर लिखा था कि बैरक की हालत काफी जर्जर हो चुकी है और यह कर्मचारियों के रहने के लिए उपयुक्त नहीं है लिहाजा इस बिल्डिंग की मरम्मत करवाई जाए या फिर इसे गिरा कर दोबारा से इस का निर्माण करवाया जाए। भूप सिंह ने बताया कि तीन महीने पहले लिखे गए पत्र पर विभाग ने कोई ध्यान नहीं दिया और रात को यह बिल्डिंग भरभरा कर गिर गई। उन्होंने कहा कि यह तो गनीमत रही कि बैरक के अंदर सो रहे पुलिस कर्मी बाहर निकल गए। अन्यथा बड़ा हादसा हो सकता था। पुलिस चौकी प्रभारी भूप सिंह ने बताया कि हांसी जीआरपी चौकी में महिला पुलिस कर्मियों सहित 13 मैंबर का स्टाफ तैनात हैं लेकिन उनके रहने के लिए स्टेशन पर उपयुक्त जगह नहीं है। और सारा स्टाफ दिन रात डर के साए में अपनी ड्यूटी करता है।

छत गिरने के बाद भी रेलवे स्टेशन पर रहने के लिए कर्मियों को नहीं मिली जगह


रेलवे स्टेशन पर बनी बैरक की छत व दीवार गिर जाने के जहां पुलिस कर्मियों ने सारी रात स्टेशन पर खुले आसमान के नीचे जाग कर बिताई वहीं दिन में भी उन्हें स्टेशन पर रहने या अपना सामान रखने के लिए जगह नहीं मिली।रेलवे अधिकारियों ने पुलिस कर्मियों से यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि हमारे पास आपको रहने के लिए देने को कोई कमरा खाली नहीं। खबर लिखे जाने तक पुलिस कर्मियों का सामान खुले आसमान के नीचे रखा हुआ था।

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