Sunday Special : नारनौल-अंबाला हाईवे में दफन हो गए हड़प्पा कालीन सभ्यता के राज

हड़प्पाकालीन सभ्यता के रिहायशी क्षेत्र के अवशेषों को हाइवे पर डालने का यह खेल रात को खेला गया। कई दिन तक रात के समय यहां से मिट्टी उठाकर हाईवे पर ढोई गई। अब किसानों ने खेती के लिए जमीन को समतल करके खेतों की की जुताई करनी शुरू कर दी है।;

Update: 2021-09-12 01:45 GMT

राज कुमार बड़ाला : महम

पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते महम में हड़प्पा कालीन सभ्यता का मुख्य केंद्र दक्ष खेड़ा नष्ट हो रहा है। पिछले कई साल से यहां पर खुदाई का काम बंद पड़ा है। जिस वजह से किसानों ने यहां पर दक्ष खेड़ा के टीले की जमीन को समतल कर लिया है। अब इस हड़प्पाकालीन सभ्यता के राज नारनौल अंबाला हाईवे में दफन हो गए हैं। पिछले दिनों यहां के टिेले की मिट्टी को उठाकर निर्माणाधीन नारनौल-अंबाला हाईवे पर डाल दिया गया। हड़प्पाकालीन सभ्यता के रिहायशी क्षेत्र के अवशेषों को हाईवे पर डालने का यह खेल रात को खेला गया। कई दिन तक रात के समय यहां से मिट्टी उठाकर हाईवे पर ढोई गई। अब किसानों ने खेती के लिए जमीन को समतल करके खेतों की की जुताई करनी शुरू कर दी है। हड़प्पा सभ्यता को नष्ट करने लिए पूरी तरह से पुरातत्व विभाग जिम्मेवार है। क्योंकि न तो पुरातत्व विभाग ने इस क्षेत्र को अधिगृहित किया और न ही किसानों को मुआवजा दिया गया। जिसका नतीजा यह है कि हड़पाकालीन सभ्यता की एक मुख्य साइट खत्म होने के कगार पर है।

बता दें कि  वर्ष 2009 में पुरातत्व विभाग ने दक्ष खेड़ा में खुदाई करवाई थी। 2009 में ही प्रदेश की तत्कालीन पुरातत्व विभाग की मंत्री मीना मण्डल व महम के तत्कालीन विधायक आनंद सिंह दांगी ने हड़प्पन साइट का दौरा किया था। 

यहां पर हुई खुदाई से पता चला है कि पांच हजार साल पहले फरमाणा, सैमाण और भैणीचंद्रपाल गांवों की सीमा पर स्थित दक्ष खेड़ा देश का मुख्य व्यापारिक केंद्र होता था। यहां से दूसरे इरान, गुजरात व राजस्थान सहित अन्य देशों के साथ व्यापार होता था। दक्ष खेड़ा से करीब एक किलोमीटर दूरी पर ढाई हजार ईसा पूर्व का एक कब्रिस्तान भी मिला है, जो अन्य हड़प्पाकालीन कब्रिस्तानों से अलग प्रकार का है। बावजूद इसके पुरातत्व विभाग ने अब तक इस जगह का अधिग्रहण नहीं किया है। कब्रिस्तान में आजकल बारिश का पानी भरा हुआ है। कई साल पहले यहां पर जापान के रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमनिटी एंड नेचर, डक्कन कॉलेज पूना और एमडीयू ने मिलकर उत्खनन कार्य किया था। इस दौरान यहां मिले अवशेषों से इसकी महत्ता पुरातत्त्ववेत्ताओं के लिए और भी बढ गई। यहां पर चले शोध के बाद कई साल पहले यहां पर हरियाणा के पुरातत्व विभाग की तत्कालीन मंत्री मीना मंडल यहां पर खुदाई के दौरान आई थीं। यहां आकर उन्होंने किसानों के समक्ष दक्ष खेड़ा को हैरिटेज के रूप में विकसित किए जाने की बात कही थी। उस समय स्थानीय विधायक आनंद सिंह दांगी और विभाग के उच्च अधिकारी भी उनके साथ थे। लेकिन सालों बीत जाने के बाद यहां पर कुछ नहीं हुआ। भू मालिकों ने सरकार का इंतजार करके अब यहां पर खेती करनी शुरू कर दी है। समय रहते सरकार व विभाग ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जिस वजह से यहां पर दफन हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष नष्ट हो गए। जिससे शोधार्थियों, पुरातत्त्ववेत्ताओं, सम्बंधित संस्थाओं और पुरातत्व विभाग को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। साथ ही यहां के इतिहास की सही जानकारी मिलना कठिन होगा।

इरान से मिलती है दक्ष खेड़ा की सभ्यता

फरमाणा-सैमाण मार्ग पर स्थित दक्षखेड़ा की सभ्यता ईरान से मिलती है। यहां मिले अवशेषों को देखकर पुरातत्वविदों को आश्चर्य है, कि यहां की सभ्यता हड़प्पा कालीन से कहीं आगे इरान से मिलती जुलती है। यहां का कब्रिस्तान हड़प्पा कालीन कब्रिस्तानों से अलग प्रकार का है। यह कब्रिस्तान अंतराष्ट्रीय महत्त्व का है। पाकिस्तान की हड़प्पा, हरियाणा की कालीबंगा और बानावली सभ्यता में कोई विशेष विविधता नहीं है, जबकि दक्षखेड़ा की सभ्यता उनसे अलग है। पूना डक्कन कॉलेज के संयुक्त निदेशक डॉ. वसंत शिंदे के मुताबिक यहां के हड़प्पन लोगों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी। यहां के लोगों का रहन सहन उच्च स्तर का था। यहां के लोगों के इरान की मैसापोटामिया सभ्यता के लोगों से व्यापारिक सम्बंध थे। इसी वजह से यहां से लिए गए अवशेषों को जापान भेजा गया था। इसके अलावा यहां के अवशेष लखनऊ की बीरबल साहनी लैबोरेट्री में भी भेजे गए थे।

कैसी थी यहां की सभ्यता

यहां पर हुई खुदाई से पता चला है कि यहां यह हड़प्पाकालीन स्थल राखीगढ़ी के बाद दूसरे नम्बर का स्थल है। पांच हजार वर्ष पुराना यह स्थल  दर्भ  व विशेषताओं से परिपूर्ण है। यहां पर नगर योजना के पहलुओं को बारिकी से देखने पर पता चला है कि यहां की मुख्य गलियां उत्तर दक्षिण और छोटी गलियां पूर्व पश्चिम की ओर बनी हुई हैं। जबकि अन्य स्थलों पर ऐसा नहीं है। यहां की गलियां समकोण पर एक दूसरे को काटती हुई पाई गई हैं। यहां पर अधिकतर दीवारें कच्ची मिट्टी की हैं। जबकि पक्की र्इंटें कुछ अलग किस्म की मिली हैं। स्रानागार में लगी पक्की ईँटों का ऊपरी सिरा तंग और निचला सिरा चौड़ा होता था। पुरातात्विक भाषा में ईँटों के इस आकार को वेज आकार कहा जाता है। साथ ही यहां के मकानों में रसोई में चूल्हे के साथ पक्की ईँटों का स्टोरेज जार रखा जाता था। जिसमें कई दिन का राशन आसानी से रखा जा सकता था।

महम : क्या-क्या अवशेष मिले हैं यहां पर :  यहां से उत्खनन के दौरान हड़प्पाकाल के कई प्रकार के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जिनमें मृदभांड के रूप में छोटे बर्तनों से लेकर बड़े जार तक मिले हैं। यहां से बीकर, गोबलेट, मिनियेचर, पोट, घड़े, हांडी, बड़े-बड़े औजार, टैरोकोट, केक, पशुओं व जानवरों की हड्डियां, पेंटिंग किए हुए पक्की मिट्टी के बर्तन, उपरत्न जैसे मिट्टी की अंगुठियां, हार, मनके, चूड़ियां, अगहेट, जसपर, कार्लेनियन के मनके, कुंडल और अन्य आभूषण यहां मिले हैं।

पांच हजार वर्ष पूर्व के पशु और जानवर

महम में पांच हजार साल पहले के पशु और जानवरों के यहां पर अवशेष मिले थे । यहां पर घरेलू, जंगली पशु, गाय, भैंस, घोड़, बकरी, बिल्ली, कुत्ता, सुअर, हिरण, नीलगाय आदि पशुओं की हड्डियां मिली थी। इसके अलावा यहां पर बने कब्रिस्तान में दफनाए गए लोगों की हड्डियों से पता चला है कि उस समय के लोगों की ऊंचाई इस युग के लोगों से अधिक होती थी।

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