Sonipat Municipal Election : सबक नहीं लिया भाजपा ने, स्थानीय नेताओं की अनदेखी पड़ी भारी

पहले तो बरोदा विधानसभा के उप-चुनावों में भाजपा ने कृषि मंत्री जेपी दलाल और सांसद संजय भाटिया को चुनाव का प्रभारी बनाया। इसके बाद अब शहर की सरकार के लिये भी शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर और सांसद संजय भाटिया को कमान सौंप दी गई। भाजपा ने बरोदा उप-चुनाव से कोई सबक नहीं लिया और सोनीपत नगर निगम में वही गलती दोहरा दी। बरोदा में भी बाहरी नेताओं के चुनाव प्रभारी होने के कारण स्थानीय मुद्दें चुनाव से गायब थे। ऐसे ही निगम चुनाव में भी बाहरी नेताओं के कारण स्थानीय मुद्दें हावी नहीं रह पाए।;

Update: 2020-12-31 06:18 GMT

सोनीपत : जजपा के साथ गठबंधन कर भाजपा ने सत्ता तो हासिल कर ली, लेकिन तीन माह में ही सिर्फ सोनीपत में ही दो चुनावों में मुंह की खानी पड़ी। पहले बरोदा के उप-चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को हार झेलनी पड़ी और अब सोनीपत के पहले नगर निगम चुनावों में भाजपा के मेयर प्रत्याशी को हार झेलनी पड़ी। हालांकि 20 में से 10 भाजपा के पार्षद जीते हैं, लेकिन ये मेयर की सीट खोने को गम भुलाने के लिये पर्याप्त नहीं है। भाजपा के इन दो चुनावों में हार की बड़ी वजह बाहरी नेताओं को कमान सौंपना रहा।

पहले तो बरोदा विधानसभा के उप-चुनावों में भाजपा ने कृषि मंत्री जेपी दलाल और सांसद संजय भाटिया को चुनाव का प्रभारी बनाया। इसके बाद अब शहर की सरकार के लिये भी शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर और सांसद संजय भाटिया को कमान सौंप दी गई। भाजपा ने बरोदा उप-चुनाव से कोई सबक नहीं लिया और सोनीपत नगर निगम में वही गलती दोहरा दी। बरोदा में भी बाहरी नेताओं के चुनाव प्रभारी होने के कारण स्थानीय मुद्दें चुनाव से गायब थे। ऐसे ही निगम चुनाव में भी बाहरी नेताओं के कारण स्थानीय मुद्दें हावी नहीं रह पाए। स्थानीय स्तर पर लगातार दो बार के सांसद रमेश कौशिक, पूर्व मंत्री कविता जैन, सीएम के मीडिया सलाहकार राजीव जैन, रामचंद्र जांगड़ा जैसे वरिष्ठ नेताओं के होते हुए भी बाहर के नेताओं को जिस तरह से चुनावी कमान सौंपी गई। उस वजह से भाजपा स्थानीय मुद्दों पर पकड़ नहीं बना पाई।

बाहरी नेताओं के चुनाव प्रभारी होने के कारण स्थानीय नेता जिनकी जनता पर और स्थानीय मुद्दों पर पकड़ थी, वे हाशिये पर आ गए। इसी वजह से मेयर के पद से भाजपा को हाथ धोना पड़ा। हालांकि पार्षद पदों पर 10 प्रत्याशियों की जीत प्रत्याशियों के व्यक्तिगत प्रभाव और समीकरणों के आधार पर हुई है। वैसे भी पार्षद का चुनाव सिर्फ एक वार्ड तक सीमित था और मेयर का चुनाव शहर से भी आगे तक विस्तृत था। अगर स्थानीय नेताओं को चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी जाती तो वो नेताओं की नाक का सवाल बन जाता और परिणाम कुछ और भी हो सकते थे। वैसे भी 2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने जिले में अपनी स्थिति मजबूत की थी। 2014 में 6 विधानसभाओं में से 1 सीट जीतने वाली भाजपा को 2 सीटें मिली थी। इसके बावजूद इस वर्ष पहले बरोदा और अब सोनीपत नगर निगम में हार के चलते भाजपा के वर्चस्व को नुकसान पहुंचा है।

जजपा को पूरी तरह से नकारा, एक भी सीट नहीं आई

नगर निगम चुनाव में जजपा को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है। यहां भाजपा के साथ मिलकर जजपा चुनाव लड़ रही थी। 15 सीटों पर भाजपा तो 5 सीटों पर जजपा के प्रत्याशी मैदान में थे, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से एक भी सीट पर जजपा के प्रत्याशी नहीं जीत दर्ज नहीं कर पाए। जजपा को जिन 5 वाडार्ें में टिकट दी गई थी, उनमें से वार्ड-5 में निर्दलीय तो शेष चारों वार्डों मेंकांग्रेस के प्रत्याशियों की जीत हुई है। माना जा रहा है कि जजपा का वोट बैंक कांग्रेस की ओर शिफ्ट हुआ है। साथ ही अजीत बात ये है कि बड़े नेताओं की बात दूर, स्थानीय नेता भी जजपा के वाडार्ें में प्रचार के लिए नहीं पहुंचे।

दीपेंद्र के पास थी कांग्रेस की कमान, दो चुनाव जितवाए

जिस तरह से भाजपा के वर्चस्व में कमी आई है। उसी तरह से कांग्रेस का वर्चस्व बढ़ा है और विशेषतौर पर कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के पुत्र एवं राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा का वर्चस्व बढ़ा है। बरोदा में भी और सोनीपत नगर निगम में भी चुनाव की कमान दीपेंद्र हुड्डा ने संभाल रखी थी। बरोदा में भी दीपेंद्र के नेतृत्व में कांग्रेस प्रत्याशी इंदुराज नरवाल ने जीत दर्ज की और अब नगर निगम में निखिल मदान ने जीत दर्ज की। हालांकि, यहां पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा भी प्रचार के लिए पहुंचे थे, लेकिन वे यहां केवल एक ही दिन आए थे, जबकि दीपेंद्र हुड्डा ने लगातार सोनीपत में रहकर यहां लगभग हर वार्ड का दौरा किया और पार्षदों के लिए भी प्रचार किया। उन्होंने निखिल मदान के साथ दर्जनभर से ज्यादा कार्यक्रम किए।

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