Success Story : कभी भट्टे पर ईंट ढोता था हरियाणा का यह युवा, आज करोड़ों का मालिक, विदेशों में चलती हैं कंपनी, जानिए सफलता का राज

हिसार के गांव रावलवास खुर्द के रहने वाले सुनील कुमार की कामयाबी का सितारा आज बुलंदी पर हैं। मगर उनका बचपन बिल्कुल अभावग्रस्त बीता। सुनील आज करोड़ों के मालिक हैं।;

Update: 2022-04-16 09:28 GMT

डॉ. अनिल असीजा : हिसार

कुछ लोग जब पैदा होते हैं तो उनके मुंह में चांदी की चम्मच होती है। आमतौर पर ऐसे बच्चे के पिता के पास कामयाब बिजनेस होता है। इसलिए ऐसे बच्चे की पढ़ाई किसी ख्यातिनाम स्कूल से होती है। व्यवसाय में वही बच्चा अगर आगे चलकर पिता की विरासत को आगे बढ़ाए तो किसी के लिए कोई हैरत की बात नहीं होगी। लेकिन जो बालक घर पर दीये की रोशनी में सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए यूनिवर्सिटी की पढ़ाई करे और विदेश जाकर लाखों डॉलर कमाए यह उस बच्चे की यह असामान्य कामयाबी हो सकती है।

अभाव में बीता बचपन

हिसार के गांव रावलवास खुर्द का रहने वाला वह बच्चा सुनील कुमार की कामयाबी का सितारा आज बुलंदी पर हैं। मगर उसका बचपन बिल्कुल अभावग्रस्त बीता। होश संभालने के साथ ही सुनील कुमार अभिभावकोंं के साथ अपने ननिहाल रावलवास खुर्द गांव में आया। गांव के सरकारी स्कूल में दसवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने तक भी उसके घर में बिजली का कनेक्शन नहीं था। दीये की रोशनी में उसने पढ़ाई की। माता-पिता उसे तथा उसके भाई-बहनों के पालन-पोषण के लिए ईंटें ढोते थे। सुनील खुद भी माता-पिता के साथ बाल मजूदर बना। मैट्रिक के बाद हायर एजुकेशन के लिए हिसार में रोजाना बस से जाता था।


बचपन में अपनी मां के साथ सुनील कुमार

ट्यूशन भी पढ़ाया

अपने परिवार से मिलने भारत आए सुनील बताते हैं कि चंद पैसे जमा करने के लिए वह घर से पांच किलोमीटर पैदल चलकर साथ लगते गांव धीरणवास से सुबह पांच बजे बस पकड़कर हिसार में लोगों के घरों में ट्यूशन पढ़ाने जाया करते थे। उसके गांव में कुछ लोग तथा सगे-संबंधी तब यह चर्चा करते थे कि सुनील को कभी न कभी कामयाबी जरूर मिलेगी। अपनों की दुआ का ही असर रहा कि सुनील आज करोड़ों का मालिक है। सुनील ने एमएससी करने के बाद जेएनयू में दाखिला लिया और रोबोटिक्स में पीएचडी की। आज उसकी सफलता की मिसाल गांव वाले अपने बच्चों को देते हुए उन्हें सुनील जैसा बनने की नसीहत देते हैं। सिर्फ पढ़ाई के जुनून और काबिलियत के दम पर वह आर्थिक रूप से मजबूत बना। सुनील युवाओं को संदेश देते हैं कि कामयाबी पाने के लिए वह सोच बड़ी रखें। जीवन में असंभव कुछ नहीं है।

तेजी से बदला सुनील का करियर 

एक समय ओपन बोर्ड से प्लस टू करने के बाद सुनील आम युवा की तरह सरकारी नौकरी की तलाश में रहा। घर खर्च के लिए एक होलसेल एजेंसी पर छोटे किरयाणा स्टोर्स पर चाय सप्लाई करने की नौकरी की। इस समय तक परिवार के बड़ों में कोई शिक्षित नहीं होने से सुनील का करियर को लेकर कुछ समय तक दिशाहीन रहा। किसी ने कहा कि पशुओं का डॉक्टर बन जाओ तो नौकरी मिलनी तय है। सुनील ने हिसार के हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से वीएलडीए कोर्स में दाखिला ले लिया और फीस भरने के लिए छोटे बच्चों को पार्ट टाइम ट्यूशन पढ़ाने लगा। सुनील के मुताबिक जल्द उसे अहसास हुआ कि वीएलडीए कोर्स में आगे चलकर तरक्की के ज्यादा रास्ते नहीं हैं। ऐसे में उसने तकनीकी शिक्षा के लिए हिसार के राजकीय पॉलीटेक्नीक कॉलेज में दाखिला लिया और टेक्सटाइल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।

अब तक उसे अहसास हो चला था कि ज्यादा तरक्की के लिए और पढ़ाई करनी चाहिए। सुनील घर से दूर अलग-अलग शिक्षण संस्थानों से पढ़ाई में मेहनत करता रहा और बी टेक, एमटेक करने के साथ अपने विषय में नेट क्वालीफाई करने के साथ पीएचडी तक सभी डिग्रियां स्कॉलरशिप के साथ लीं। उच्च शिक्षा के बाद उसने जॉब के लिए यूरोप का रुख किया। वहां कुछ साल प्रतिष्ठित कम्पनियों में नौकरी भी अच्छी चली। इस दौरान पैसे जमा करते हुए महत्वाकांक्षी सुनील ने अमेरिका में खुद का बिजनेस करने की ठानी और अमेरिका में सेटल होने का लक्ष्य पूरा किया। अब उसके पास कई जगहों पर घर हैं। शानदार फार्म हाउस तथा घर के बाहर कई लग्जरी गाड़ियां हैं। आज उसकी नेक्स्टजेन यूनिकॉन, रॉक सेंसर तथा एस 3 बी ग्लोबल नाम से तीन कम्पनियां हैं। अमेरिका में एक कम्पनी होने के अलावा एक कम्पनी न्यूजीलैंड तथा एक कम्पनी इंडिया में है। मिलेनियर सुनील कुमार की कम्पनियों में इस समय दर्जनों कर्मचारी काम करते हैं। अब सुनील कुमार बतौर सीईओ अपने मातहत कर्मचारियों को कामयाबी के टिप्स देते हैं। खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के साथ उसके दो बच्चे हैं।

कभी मां के साथ मुफलिसी में गुजारा था बचपन

परिवारवालों को सुनील की कामयाबी पर नाज है। किसी समय मजदूरी करने वाली मां ज्ञानी देवी बतातीं हैं कि उसका उसका घर पक्का हो गया हैं। ग्रामीण जीवनशैली पसंद होने की वजह से उसके घर अब कई पशु बंधे हैं। पिता कृष्ण चंद कहते हैं कि उन्हें इससे बढ़कर क्या खुशी होगी कि गांव वाले अब उसे बेटे से नाम से जानते हैं। बहन सुमन का कहना है कि उसे तब बड़ी खुशी मिलती है जब उसके ससुराल में चर्चा होती है कि उसका भाई सुनील कितना पैसे वाला हो गया है। बचपन के दिनों को लेकर सुमन याद करतीं है कि शादी से पहले हम दोनों भाई बहन संडे के दिन भ्ाी हिसार में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने जाते थे। घर पर कोई रिसोर्स नहीं होने पर दसवीं पहुंचने तक सुनील अक्सर कहता था कि कामयाबी पाने के लिए हमारे पास पढ़ाई के अलावा कोई जरिया नहीं है।     

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