Tokyo Olympic : हरियाणा के लाडले रवि दहिया ने निभाया परिवार से किया वादा, गरीबी में बीता था बचपन

पहलवान रवि कुमार दहिया का जन्म 12 दिसंबर 1997 को सोनीपत जिले के नाहरी गांव में हुआ था। उनके पिता एक किसान हैं, लेकिन उनके पास खुद की कोई जमीन नहीं है। वह दूसरे के खेतों को किराये पर लेकर खेती करते थे।;

Update: 2021-08-04 12:11 GMT

हरिभूमि न्यूज : सोनीपत

ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए जब रवि दहिया टोक्यो ( Tokyo ) पहुंचे थे तो उन्होंने वीडियो कॉल के जरिये परिजनों से बात करते हुए वादा किया था कि ऐसा खेल दिखाऊंगा सभी दंग रह जाएंगे, रवि ने अपने किए वादे को पूरा करते हुए पहले ही दिन जोरदार खेल दिखाते हुए फाइनल तक का सफर तय किया। परिजनों को पूरी उम्मीद है कि रवि देश की झोली में स्वर्ण पदक जरूर डालेगा। जिले के गांव नाहरी निवासी पहलवान रवि दहिया ( Ravi Dahiya ) ने बुधवार को देशवासियों को झूमने का दोहरा अवसर प्रदान किया।

रवि ने सुबह प्री क्वार्टर फाइनल में कोलंबिया के ऑस्कर एडुआर्डो डिग्रेरोस को 13-2 से व क्वार्टर फाइनल में बुल्गारिया के जियोर्जी वेलेंटिनोव वांगेलोव को 14-4 से मात देकर सेमीफाइनल में जगह बनाई। वहीं दोपहर बाद हुए सेमीफाइनल मुकाबले में कजाकिस्तान के पहलवान के नुरीस्लाम सनायेव को मात देकर फाइनल में जगह बनाते हुए पदक पक्का किया। रवि दहिया की जीत के साथ ही सभी खुशी से झूम रहे हैं।

पट्टे पर जमीन लेकर खेती करते थे रवि के पिता

टोक्यो ओलंपिक में फ्री-स्टाईल कुश्ती के लिए 57 किलोग्राम भारवर्ग में चुने गए गांव नाहरी निवासी रवि से देश को सफल प्रदर्शन की उम्मीद है। रवि दहिया एक प्रतिभाशाली पहलवान है, जो अपने पिता के स्वप्न को साकार करने की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ा रहे हैं। रवि कुमार दहिया का जन्म 12 दिसंबर 1997 को सोनीपत जिले के नाहरी गांव में हुआ था। रवि दहिया के पिता का नाम राकेश दहिया है। रवि दहिया का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता एक किसान हैं, लेकिन उनके पास खुद की कोई जमीन नहीं है। वह दूसरे के खेतों को किराये पर लेकर खेती करते थे।

पिता का सपना पूरा करने के लिए चुनी कुश्ती

रवि दहिया के पिता राकेश कुमार आर्थिक स्थिति मजबूत न होने के कारण कुश्ती में आगे नहीं बढ़ सके थे। वे स्वयं भी कुश्ती करते थे और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक हासिल करना चाहते थे, किंतु वे घर की गुजर-बसर करने के लिए पट्टे पर जमीन लेकर खेती में जुट गए। भले ही वे कुश्ती से दूर हो गए हों, लेकिन उनके अंदर का खिलाड़ी हमेशा जीवित रहा, यही कारण रहा कि उन्होंने अपने बेटों को कुश्ती के लिए प्रेरित किया। अपने बेटे को वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए स्वर्णिम प्रदर्शन करते देखना चाहते थे। रवि राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के बाद अब ओलंपिक में भी अपने जलवे दिखा रहे हैं। खेलों के महाकुंभ ओलंपिक में रवि से देशवासियों को स्वर्ण पदक की पूरी उम्मीद है।

संत हंसराज ले गए थे पहलवानी के लिए

नाहरी के मूल निवासी रवि को गांव के संत हंसराज पहलवानी के लिए लेकर गए। गांव में ही उन्होंने रवि को अखाड़े में कुश्ती के दांव-पेंच सिखाने शुरू किये। कुश्ती में रवि का मन ऐसा रमा कि उसने कुश्ती के दांव-पेंच सीखने के लिए पूरी जी-जान लगा दी। कुश्ती के गुर सिखने के साथ ही वह खेत में काम कर रहे किसान पिता का हाथ भी बंटाते थे। कुश्ती के प्रति जुनून देख 10 वर्ष की आयु में ही रवि को छत्रसाल स्टेडियम भेजा गया, जहां वे दिन-प्रतिदिन निखरते चले गए। वर्ष 2017 में घुटने की चोट के कारण उन्हें सीनियर नेशनल गेम्स में सेमिफाइनल तक पहुंचकर भी उन्हें प्रतियोगिता से बाहर होना पड़ा था। हालांकि कुछ समय उपरांत फिट होकर दोबारा अभ्यास शुरू कर दिया।

अब तक की उपलब्धियां

वर्ष 2013 अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में रजत पदक जीता।

वर्ष 2014 में जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में रजत पदक जीता।

# वर्ष 2015 में जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में रजत पदक जीता।

# वर्ष 2017 में हुई सीनियर नेशनल्स गेम्स में शानदार प्रदर्शन कर सेमीफाइनल में पहुंचे, लेकिन चोट के कारण उन्हें बाहर होना पड़ा।

# वर्ष 2018 में विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में रजत पदक जीता।

# वर्ष 2019 में विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता।

# वर्ष 2019 व 2020 में लगातार दो बार एशियन चैंपियन रहे।

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