करोड़ों के वाहन थानों में हो रहे कबाड़ : दुर्घटना में मौत के बाद अशुभ मानकर अधिकांश मालिक लेकर नहीं जाते अपने वाहन
पुलिस थाना व पुलिस लाइन में पड़े-पड़े कबाड़ में तब्दील हो रहे दुर्घटनाग्रस्त व जब्त किए गए वाहन, जिस वाहनों से बड़ी दुर्घटना हुई उनकी सुपुर्दगी में ही लग जाता है लंबा समय।;
हरिभूमि न्यूज : नारनौल
किसी भी थाना में नजर दौड़ा लीजिए आपको वहां पर किसी ना किसी एक कोने में वाहन कबाड़ बने दिखाई देंगे। स्थिति ऐसी है कि सड़कों पर जितनी संख्या वाहनों की निरंतर बढ़ रही है, उसी तरह दुर्घटनाओं का ग्राफ भी बढ़ रहा है। सड़क पर कई बार हादसे ऐसे होते है, जिन्हें देखकर हर व्यक्ति के रौंगटे खड़े हो जाते हैं। यह धारणा भी बन गई है कि जिस वाहन में मौत हुई है, परिवार के लिए वह वाहन अशुभ बन जाता है। इस कारण थाना व पुलिस चौकियों में ऐसे वाहन कबाड़ बनकर पुलिस की सिरदर्दी ही बढ़ा रहे है। ऐसा भी नहीं है कि इन वाहनों को सुपुर्दारी पर नहीं दिया जाता, लेकिन अधिकांश मालिक अपने वाहन को लेकर ही नहीं जाते है।
जिले में इस समय थानों की संख्या नौ है। इनमें सिटी थाना नारनौल व महेंद्रगढ़ और बाकी सदर थाना नारनौल, नांगल चौधरी, अटेली, कनीना, महेंद्रगढ़ व सतनाली में है। जिला का ट्रैफिक थाना नारनौल में है। सात पुलिस चौकी की बात करें तो महावीर पुलिस चौकी, निजामपुर पुलिस चौकी, गहली पुलिस चौकी, अस्पताल पुलिस चौकी, फैजाबाद पुलिस चौकी, दौंगड़ा पुलिस चौकी व आकोदा पुलिस चौकी शामिल है। महिला थाना ही एकमात्र ऐसा थाना है जहां पर इस तरह के वाहन नहीं है। बाकी ट्रैफिक थाना सहित तमाम अन्य थानों में ऐसे वाहन कबाड़ में तब्दील हो रहे हैं। कारण, पुलिस की तरफ से एक निश्चित समय और पूरी प्रक्रिया अपनाने के बाद इन वाहनों को नीलाम किया जाता है लेकिन उस नीलामी के लिए भी दो से तीन साल तक का समय लग जाता है। जिला के तमाम थानों में दुर्घटनाग्रस्त हुए वाहन खड़े हैं।
पुलिस के पास करीब 972 दुपहिया, तीन पहिया व फॉरव्हीकल कबाड़ बनने की ओर है। सदर थाना व चौकियों में ऐसे वाहनों की संख्या सबसे ज्यादा है। यहां पर आबकारी अधिनियम व लावारिस हालत में मिले हुए वाहन अधिक है। कबाड़ बन रहे ये वाहन पुलिस के लिए भी बड़ी मुसीबत है क्याेंकि इनमें से अधिकांश का सामान गायब तक हो जाता है। लावारिस मिलने वाले वाहनों के बारे में पुलिस उनकी तहकीकात करके असल मालिक तक पहुंचने का प्रयास करती है तो इनमें अधिकांश वाहन ऐसे होते है जो कि चोरी हो चुके हैं चूंकि तीन माह तक चोरी वाहन के ट्रेस नहीं होने की स्थिति में पुलिस को अनट्रेस रिपोर्ट देनी होती है। जिसके बाद बीमा कंपनी मालिक को उसकी कीमत अदा कर देता है। ऐसे में लावारिस वाहनों को उनके असल मालिक देखने तो आ जाते है पर स्थिति देखकर लेकर ही नहीं जाते।
दुर्घटनाग्रस्त वाहनों की सबसे सर्वाधिक संख्या
पुलिस की ओर से जब्त किए गए थानों में सर्वाधिक वाहन दुर्घटनाग्रस्त वाले होते हैं। अगर किसी वाहन से दुर्घटना बड़ी हो जाती है तो जमानत प्रक्रिया भी बड़ी जटिल हो जाती है। ऐसे वाहन भी होते है, जिनके कागजात पूरे नहीं होते, उन्हें मालिक छुड़ा नहीं पाते। इस तरह के दुर्घटनाग्रस्त वाहनों को पुलिस उठाकर थाने में लाकर खड़ा कर देती है। सामान्य हादसे में तो मालिक अपने वाहनों की जमानत करवा लेते हैं।
सिटी थाना में कम, बाकी में वाहन ज्यादा
नारनौल व महेंद्रगढ़ शहरी थानों को छोड़ दें तो जिला के तमाम थानों व चौकियों में कबाड़ बने रहे वाहनों की संख्या सैंकड़ा से ज्यादा होगी। पुलिस प्रवक्ता सुमित कुमार की माने तो साल-2017 में 111 वाहन नीलाम किए थे। अभी कंडम वाहन करीब 972 है। इनमें दुपहिया बाइक व स्कूटी सबसे ज्यादा व तीन व चार पहिया वाहन भी है। बड़े वाहनों की संख्या गिनी-चुनी है। पुलिस की तरफ से एक लंबी जटिल प्रक्रिया के बाद इन वाहनों को नीलाम किया जाता है। किसी के पकड़े जाने की स्थिति में उसकी जमानत नहीं होने पर मालिक को नोटिस दिया जाता है। इसके बाद सार्वजनिक सूचना और फिर नोटिस दिया जाता है। अदालत से अनुमति मिलती है। इस प्रक्रिया में काफी समय लग जाता है।