विधवा ने अगर पति के भाई से कर ली शादी तो भी फैमिली पेंशन की हकदार : हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने यह सेना के एक पूर्व कर्मचारी की विधवा की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया उसे वह अन्य जीवित पात्र उत्तराधिकारियों की देखभाल भी करनी होगी।;
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि विधवा अगर पति के भाई से शादी करे तो भी वह फैमिली पेंशन की हकदार होगी। हाई कोर्ट ने यह सेना के एक पूर्व कर्मचारी की विधवा की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया उसे वह अन्य जीवित पात्र उत्तराधिकारियों की देखभाल भी करनी होगी।
हाई कोर्ट ने कहा कि किसी ऐसे व्यक्ति की विधवा से भेदभाव नहीं होना चाहिए। जिसकी मृत्यु सैन्य सेवा में ड्यूटी के दौरान हुई हो या फिर उसकी मौत तबीयत बिगड़ने के कारण हुई हो। जस्टिस एम एस रामचंद्र राव और जस्टिस सुखविंदर कौर की खंडपीठ ने कहा कि यह मौजूदा मामले में भी लागू होता है। अगर हम सैन्य सेवा शब्द के स्थान पर सरकारी सेवा शब्द का जिक्र करते हैं।
हाई कोर्ट के जस्टिस एम एस रामचंद्र राव और जस्टिस सुखविंदर कौर की खंडपीठ ने पंजाब के फतेहगढ़ साहिब की निवासी सुखजीत कौर द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए ये आदेश पारित किए हैं। उसने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) चंडीगढ़ द्वारा 29 अप्रैल, 2016 को पारित आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें पारिवारिक पेंशन के लिए उसके दावे को खारिज कर दिया गया था।
याचिका के अनुसार उसके पहले पति मोहिंदर सिंह ने 4 जनवरी, 1964 को भारतीय वायु सेना में सैनिक सेवा की थी लेकिन 21 नवंबर, 1971 को चिकित्सा आधार पर सेवा से छुट्टी कर दी गई थी और उन्हें विकलांगता पेंशन दी गई। कुछ समय बाद, मोहिंदर सिंह एक सामान्य कर्मचारी के रूप में भारतीय वायुसेना में शामिल हो गए। 26 जून 1974 को याचिकाकर्ता ने मोहिंदर से शादी कर ली। मोहिंदर की सेवा के दौरान 27 मार्च, 1975 को मृत्यु हो गई। अप्रैल 1975 में एक लड़की का जन्म हुआ। मोहिंदर की मौत के बाद याचिकाकर्ता को फैमिली पेंशन दी गई। बाद में याचिकाकर्ता ने स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार मृतक मोहिंदर के छोटे भाई से शादी कर ली। इसका पता चलने पर, अप्रैल 1982 में, याचिकाकर्ता को स्वीकृत पारिवारिक पेंशन को केंद्र द्वारा इस आधार पर रोक दिया गया कि उसने मृत पति के छोटे भाई से दूसरी शादी कर ली थी।
अप्रैल 2016 में कैट चंडीगढ़ द्वारा पेंशन की बहाली के लिए उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि सीसीएस (असाधारण पेंशन) नियमों के नियम के तहत उसे पेंशन नहीं दी जा सकती। उक्त नियम केवल सरकारी सेवा के दौरान मृत्यु या विकलांगता की स्थिति में लागू होते हैं।इस कारण वह परिवार पेंशन के लिए पात्र नहीं है। इसके बाद विधवा ने कैट के आदेशों को हाई कोर्ट में चुनौती दी।
कोर्ट ने कहा कि सेवा में या सेवा के बाद मृत्यु होने के बाद दोनों स्थितियों में विधवाओं के सामने आने वाली समस्याएं समान हैं और मृत्यु के कारण में अंतर को पेंशन के मूल्य के अंतर के रूप में नहीं बनाया जा सकता है। इसी के साथ हाई कोर्ट ने महिला को पेंशन जारी करने के आदेश जारी किए।