गांव तक रास्ता होता तो आग में जलने से बच सकते थे कई घर, 150 परिवार हुए बेघर
हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के कुल्लू जिले के गांव मलाणा (Village Malana) में बुधवार सुबह लगी आग में 17 घर जलकर खाक को गए। गांव वालों का कहना है कि अगर गांव के लिए रास्ता होता तो इतना नुकसान नहीं होता है।;
हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के कुल्लू जिले के गांव मलाणा (Village Malana) में बुधवार सुबह लगी आग में 17 घर जलकर खाक को गए। गांव वालों का कहना है कि अगर गांव के लिए रास्ता होता तो इतना नुकसान नहीं होता है। आग पर काबू पाया जा सकता था। गांव के लिए रास्ता ना होना भी एक बड़ी समस्या है। दशकों से मलाणा के 1000 से अधिक ग्रामीणों को चुनावी बेला में हर राजनीतिक दल सड़क और अन्य आधुनिक सुविधाओं का लॉलीपॉप दे जाता है, लेकिन वोट के आगे किसी का जमीर जागता ही नहीं। राजनेताओं को प्रशासन की अनदेखी ने मलाणा के 150 परिवारों को बेघर कर दिया। आग की लपटें उठने के बाद अग्निशमन विभाग की टीम आधे घंटे के बाद मलाणा के लिए कुल्लू से निकली, लेकिन मलाणा तक पहुंचने में दो घंटों से भी अधिक का समय लग गया। जरी से आगे मलाणा सड़क की खस्ताहालत के चलते घंटों तक अग्निशमन टीम हिचकोले खाती रही।
मजबूरन विभाग की टीम को सामान स्पैन के जरिए यहां तक भेजना पड़ा तो पानी के लिए नाले से पाइप बिछानी पड़ी। जानकारों के अनुसार अगर सड़क की सुविधा गांव तक होती तो कई घरों को पहले ही बचाया जा सकता था। मलाणा गांव के लिए सड़क से करीब अढ़ाई किलोमीटर से अधिक का पैदल खड़ा रास्ता है, जिसमें पौने से एक घंटा तक का समय लग जाता है। गांव तक सड़क पहुंचाने के लिए एक पुल बनाने और सड़क बनाने के लिए प्रस्ताव तैयार है और योजना भी बनी है, लेकिन कई सालों से इस सड़क का काम सिरे नहीं चढ़ पा रहा है। बताया जा रहा है कि वन भूमि और अन्य तकनीकी जरूरतों का पूरा नहीं हो पाने के कारण सड़क का कार्य लटका हुआ है।
बता दें कि मलाणा के ग्रामीणों के अनुसार सालों से सड़कों की मांग को उठाया जा रहा है, लेकिन अभी तक यह काम पूरा नहीं हो पा रहा है। ऐसे में एक ओर सियासी हुकमरान अपने लिए वोट मांगने में डटे हैं। डुंखरा में मलाणा प्रोजेक्ट की दो इकाईयां है और इनके पास अपने अग्निशमन यंत्र भी है, लेकिन बिडंबना और प्रशासन की तालमेल की कमी का नमूना यह है कि इन अग्निशमन यंत्रों को गांव में लगी आग बुझाने में कभी प्रयोग में लाया ही नहीं जाता है। इस पर सालों से सवाल भी होते रहे हैं, लेकिन प्रशासन और प्रबंधन हर बार खामोशी से आगे कुछ सोचता ही नहीं।